आगरा: एसपी सिंह बघेल के जाति प्रमाणपत्र के मामले में वादी अधिवक्ता ने की कोर्ट में बहस

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अमर उजाला ब्यूरो, आगरा
Published by: मुकेश कुमार
Updated Fri, 18 Feb 2022 07:54 PM IST

सार

अधिवक्ता ने कहा कि प्रोफेसर बघेल ने आगरा के पत्ते से जाति प्रमाण पत्र बनवाया है, जो स्वत: ही निरस्त करने योग्य है। प्रमाणपत्र बनाने वालों ने नियमों का पालन नहीं किया है।

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आगरा के सांसद एवं केंद्रीय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल के जाति प्रमाणपत्र के मामले में वादी अधिवक्ता सुरेश चंद्र सोनी ने शुक्रवार को स्पेशल जज (एमएलए-एमपी) की कोर्ट में बहस की। बहस में अधिवक्ता ने कहा कि प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल औरैया प्रदेश के मूल निवासी हैं। इसलिए नियमानुसार उनका जाति प्रमाण पत्र निवास स्थान के अनुसार बनना चाहिए था।

इस बाबत अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग और सरकार के आदेश की प्रति कोर्ट के समक्ष रखी। अधिवक्ता ने कहा कि प्रोफेसर बघेल ने आगरा के पत्ते से जाति प्रमाण पत्र बनवाया है, जो स्वत: ही निरस्त करने योग्य है। प्रमाणपत्र बनाने वालों ने नियमों का पालन नहीं किया है। प्रमाणपत्र पर किसी भी अधिकारी की मुहर नहीं है। वैसे भी धनगर जाति अनुसूचित जाति में नहीं आती है। 

अधिवक्ता सुरेश चंद्र सोनी ने अपने तर्कों के आधार को महत्वपूर्ण और अतिआवश्यक बताते हुए प्रार्थना पत्र को परिवाद के रूप में दर्ज करने की अपील की। कोर्ट ने बहस सुनने के बाद पत्रावली आदेश हेतु अपने पास रख ली है।

अधिवक्ता सुरेश चंद्र सोनी ने 11 फरवरी को कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था। अधिवक्ता ने वाद पत्र में कहा है कि एसपी सिंह बघेल अन्य पिछड़ी जाति से हैं। मगर, उन्होंने आगरा लोकसभा क्षेत्र, जो सुरक्षित है, वहां पर इनके द्वारा नामांकन प्रस्तुत किया गया। इसमें भी उन्होंने अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र लगाया। अधिवक्ता ने इस मामले में धोखाधड़ी, कूटरचना और एससी-एसटी एक्ट में परिवाद दर्ज कराने को प्रार्थना पत्र दिया था। 

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विस्तार

आगरा के सांसद एवं केंद्रीय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल के जाति प्रमाणपत्र के मामले में वादी अधिवक्ता सुरेश चंद्र सोनी ने शुक्रवार को स्पेशल जज (एमएलए-एमपी) की कोर्ट में बहस की। बहस में अधिवक्ता ने कहा कि प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल औरैया प्रदेश के मूल निवासी हैं। इसलिए नियमानुसार उनका जाति प्रमाण पत्र निवास स्थान के अनुसार बनना चाहिए था।

इस बाबत अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग और सरकार के आदेश की प्रति कोर्ट के समक्ष रखी। अधिवक्ता ने कहा कि प्रोफेसर बघेल ने आगरा के पत्ते से जाति प्रमाण पत्र बनवाया है, जो स्वत: ही निरस्त करने योग्य है। प्रमाणपत्र बनाने वालों ने नियमों का पालन नहीं किया है। प्रमाणपत्र पर किसी भी अधिकारी की मुहर नहीं है। वैसे भी धनगर जाति अनुसूचित जाति में नहीं आती है। 

अधिवक्ता सुरेश चंद्र सोनी ने अपने तर्कों के आधार को महत्वपूर्ण और अतिआवश्यक बताते हुए प्रार्थना पत्र को परिवाद के रूप में दर्ज करने की अपील की। कोर्ट ने बहस सुनने के बाद पत्रावली आदेश हेतु अपने पास रख ली है।

अधिवक्ता सुरेश चंद्र सोनी ने 11 फरवरी को कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया था। अधिवक्ता ने वाद पत्र में कहा है कि एसपी सिंह बघेल अन्य पिछड़ी जाति से हैं। मगर, उन्होंने आगरा लोकसभा क्षेत्र, जो सुरक्षित है, वहां पर इनके द्वारा नामांकन प्रस्तुत किया गया। इसमें भी उन्होंने अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र लगाया। अधिवक्ता ने इस मामले में धोखाधड़ी, कूटरचना और एससी-एसटी एक्ट में परिवाद दर्ज कराने को प्रार्थना पत्र दिया था। 

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