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मधुमक्खी का बक्सा दिखाते मधुमक्खी पालक चर्तुभुज यादव
– फोटो : अमर उजाला
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देश का युवा वर्ग जहां बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल करने के बावजूद बेरोजगारी के लिए खुद को कोसते नहीं थकता, वहीं हाथरस जिले के एक युवा किसान ने आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है। उन्होंने छोटे से निवेश से मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू कर बुलंदी हासिल की है। पिछले साल उनका टर्न ओवर 20 लाख रुपये का था।
नगर से सटे गांव बाद नगला अठवरिया निवासी चतुर्भुज यादव ने दसवीं कक्षा की पढ़ाई कर मात्र 60 हजार रुपये के निवेश से मधुमक्खी पालन का व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने बताया कि साल 1997 में उनके गांव में सहारनपुर के मधुमक्खी पालक आए थे। उन्हें देखकर और उनसे सीखकर गांव के कुछ लोगों ने मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया था। गांव के लोगों से ही सीखकर चतुर्भुज यादव ने साल 2003 में 10 मधुमक्खी के बक्सों से व्यवसाय शुरू किया था। पहले साल उनका शहद लगभग 60 हजार रुपये का बिका था। इन रुपयों से उन्होंने तीस बक्से और खरीदे। अब उनके पास 40 मधुमक्खी के बक्से थे। धीरे-धीरे उनका व्यवसाय बढ़ता गया।
इसके बाद उन्होंने उद्यान विभाग से भी मदद मिली। साल 2018 में उन्हें उद्यान विभाग की तरफ से 88 हजार रुपये की सब्सिडी मिली, जिससे उनके व्यवसाय को नई ऊंचाई मिली। चतुर्भुज यादव का कहना है कि अब उनके पास मधुमक्खी के 500 बक्से हैं। इनसे हर साल 15 से 20 टन शहद का उत्पादन होता है। पिछले साल उनका टर्न ओवर 20 लाख रुपये का था। वह अपने फार्म में पांच लोगों को रोजगार भी देते हैं। गांव के कुछ अन्य लोग भी मधुमक्खी पालन का व्यवसाय करते हैं। उनका कहना है कि इस व्यवसाय में अगर शहद का भाव अच्छा मिले तो नुकसान की आशंका न के बराबर होती है। चतुर्भुज यादव का कहना है कि सामान्य तौर पर शहद को बेचने का झंझट नहीं रहता है। ट्रेडर्स फार्म से ही सीधे शहद खरीदकर ले जाते हैं। उनके फार्म का शहद 100 प्रतिशत शुद्ध होता है।
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