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सार
युद्धग्रस्त यूक्रेन से एटा के दो छात्र सकुशल घर वापस आ गए हैं। दोनों के घर पहुंचते ही परिवार में खुशियां लौट आईं। छात्रों ने बताया कि जब हॉस्टल के ऊपर से लड़ाकू विमान गुजरते थे, तो लगता था कि कहीं बम न गिरा दे।
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को हॉस्टल में एक प्लेट में दाल-चावल दिया जाता था। उसमें भी पांच लोगों को खाना होता था। हॉस्टल के ऊपर से अक्सर रूसी सेना के एयरक्राफ्ट (जंगी जहाज) उड़ते थे। जिनकी आवाज से हम लोग सहम उठते थे। यह हालात यूक्रेन से घर लौटे एटा के छात्र अभिषेक लोधी ने बताए। उनके साथ पिलुआ कस्बा के रविराज यादव भी यूक्रेन से लौटकर आ गए हैं। छात्रों की सकुशल वापसी से परिवारों में खुशियां लौट आई हैं।
गांव कुठिला रामनगर के रहने वाले अभिषेक लोधी की मेडिकल की पढ़ाई की यह पहली ही साल है। वह दिसंबर में यूक्रेन गए थे। उन्हें उजरोज नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिला। अभिषेक ने बताया कि 21 फरवरी से वहां सब कुछ बंद हो गया था। हम लोगों को हॉस्टल से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। बाजार भी पूरी तरह बंद थे। खाने-पीने तक का सामान नहीं मिल रहा था। हॉस्टल की मेस में जो भी उपलब्ध था, उसे सभी छात्रों में थोड़ा-थोड़ा दे दिया जाता था।
…कहीं बम न गिरा दे
अभिषेक ने कहा कि जैसे ही हॉस्टल के ऊपर से कोई एयरक्राफ्ट गुजरता तो डर लगता था कहीं बम न गिरा दे। एक समय तो लगने लगा कि यहां से निकल ही नहीं पाएंगे। दिन-रात दहशत रहती थी। फिर भारत सरकार ने ऑपरेशन गंगा शुरू किया तो उम्मीद बंधी। फर्स्ट इयर के छात्रों को सबसे पहले भेजा गया। हम लोग जुहानी बॉर्डर से होते हुए बुडापेस्ट पहुंचे, जहां से फ्लाइट मिली। यहां परिवार के बीच आकर काफी राहत महसूस की।
यूक्रेन से लौटे अभिषेक की पिता लंकुश सिंह से अभी मुलाकात नहीं हो सकी है। वह बदायूं में पुलिस उपनिरीक्षक के रूप में तैनात हैं। एक-दो दिन में छुट्टी मिलने पर आएंगे। मां निवेदिता सिंह ने कहा कि जब तक अभिषेक यूक्रेन में था, काफी चिंता होती थी। उसके आने पर सभी लोग खुश हैं।
सोमवार रात को घर पहुंचे रविराज यादव
कस्बा पिलुआ के रहने वाले रविराज यादव जकारपट्टिया ओब्लास्ट में इसी यूनिवर्सिटी से मेडिकल की तीसरे वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं। सोमवार रात दो बजे वह गांव में पहुंचे। सभी परिवारीजन जागकर उनका इंतजार कर रहे थे। उनके पहुंचते ही सूनसान रात के बीच उत्सव जैसा माहौल हो गया।
रविराज ने बताया कि खारकीव, कीव आदि शहरों की अपेक्षा जकारपट्टिया के हालात बेहतर थे। हंगरी बॉर्डर तक हम लोग बस के जरिये आसानी से पहुंच गए। दिल्ली में हवाई अड्डे पर पहुंचने के बाद हम लोग उत्तर प्रदेश भवन पहुंचे। जहां हम लोगों के आराम और भोजन की अच्छी व्यवस्था थी। उन्होंने भारत और प्रदेश सरकार के साथ ही मददगार बने राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह का भी आभार जताया।
पढ़ाई को लेकर है चिंता
सकुशल अपने घर लौटकर आए छात्र खुश तो हैं, लेकिन अपनी पढ़ाई को लेकर उनके मन में चिंता भी है। बताया कि अभी तो कुछ दिन का अवकाश कर दिया गया है। 10 मार्च से ऑनलाइन पढ़ाई शुरू की जाएगी। लेकिन युद्ध के हालात कितने लंबे चलेंगे और इसके बाद क्या स्थिति होगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। हालांकि शांति होने पर हम लोग निश्चित रूप से यूक्रेन जाएंगे और अपनी पढ़ाई पूरी करके ही लौटेंगे।
घर तक छोड़ने आए प्रदेश सरकार के वाहन
फ्लाइट के माध्यम से दोनों छात्र दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि दिल्ली में बने उत्तर प्रदेश भवन में उन्हें लाया गया। वहां से रूट के अनुसार छात्रों को चुनकर अलग-अलग वाहनों में बैठाया गया। रवि को बस और अभिषेक को टैक्सी के जरिये उनके घरों तक पहुंचाया गया।
बोले छात्र- हम तो निकले, औरों को भी निकालो
यूक्रेन से लौटे दोनों छात्रों ने उन्हें निकालने के लिए भारत सरकार का शुक्रिया अदा किया। साथ ही कहा कि हर भारतीय छात्र को वहां से जल्द से जल्द निकाला जाए। अभी फ्लाइट कम जा रहीं हैं, जिसके चलते छात्रों को काफी इंतजार करना पड़ रहा है। फ्लाइट की संख्या बढ़ाई जाए, तभी समय से सारे छात्र सकुशल वापस लाए जा सकेंगे।
विस्तार
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को हॉस्टल में एक प्लेट में दाल-चावल दिया जाता था। उसमें भी पांच लोगों को खाना होता था। हॉस्टल के ऊपर से अक्सर रूसी सेना के एयरक्राफ्ट (जंगी जहाज) उड़ते थे। जिनकी आवाज से हम लोग सहम उठते थे। यह हालात यूक्रेन से घर लौटे एटा के छात्र अभिषेक लोधी ने बताए। उनके साथ पिलुआ कस्बा के रविराज यादव भी यूक्रेन से लौटकर आ गए हैं। छात्रों की सकुशल वापसी से परिवारों में खुशियां लौट आई हैं।
गांव कुठिला रामनगर के रहने वाले अभिषेक लोधी की मेडिकल की पढ़ाई की यह पहली ही साल है। वह दिसंबर में यूक्रेन गए थे। उन्हें उजरोज नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिला। अभिषेक ने बताया कि 21 फरवरी से वहां सब कुछ बंद हो गया था। हम लोगों को हॉस्टल से बाहर निकलने की इजाजत नहीं थी। बाजार भी पूरी तरह बंद थे। खाने-पीने तक का सामान नहीं मिल रहा था। हॉस्टल की मेस में जो भी उपलब्ध था, उसे सभी छात्रों में थोड़ा-थोड़ा दे दिया जाता था।
…कहीं बम न गिरा दे
अभिषेक ने कहा कि जैसे ही हॉस्टल के ऊपर से कोई एयरक्राफ्ट गुजरता तो डर लगता था कहीं बम न गिरा दे। एक समय तो लगने लगा कि यहां से निकल ही नहीं पाएंगे। दिन-रात दहशत रहती थी। फिर भारत सरकार ने ऑपरेशन गंगा शुरू किया तो उम्मीद बंधी। फर्स्ट इयर के छात्रों को सबसे पहले भेजा गया। हम लोग जुहानी बॉर्डर से होते हुए बुडापेस्ट पहुंचे, जहां से फ्लाइट मिली। यहां परिवार के बीच आकर काफी राहत महसूस की।
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