यूक्रेन: बम धमाके में गई थी कर्नाटक के छात्र की जान, खारकीव से लौटी आगरा की छात्रा ने बताया भयावह मंजर

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युद्धग्रस्त यूक्रेन में फंसी ताजनगरी की छात्रा अंजलि, भाव्या और जया भी मंगलवार को घर पहुंच गईं। बिटियां घर आईं तो आंगन में खुशियां छा गईं। माता-पिता के अलावा रिश्तेदार व पड़ोसी जुट गए। फूल मालाओं से बेटियों का स्वागत हुआ। अब तक ताजनगरी के सभी 74 छात्र-छात्राएं घर लौट आए हैं। 10 दिनों से तीनों बेटियां खारकीव में फंसी थीं। तमाम मुश्किल हालात से जूझते हुए उन्होंने घर वापसी का सफर तय किया है।

शास्त्रीपुरम निवासी अंजलि के पिता बृज गोपाल ने बताया कि मुझे उम्मीद नहीं थी कि मेरी बेटी सकुशल लौट पाएगी। सरकार की मदद नहीं मिलती तो पता नहीं क्या होता। खारकीव में हालात इतने खराब हो चुके हैं कि वहां से निकलना मुश्किल था। खारकीव में ही कर्नाटक के छात्र की मौत हुई थी। छात्रा भाव्या ने बताया कि कर्नाटक का छात्र उसका जूनियर था। एक मार्च को हुए धमाके में उसकी जान चली गई थी। इससे सभी छात्र बहुत डर गए थे। 

एक रात मेट्रो में, सात दिन बंकर में गुजारे 

शमसबाद रोड निवासी भाव्या चौहान ने बताया कि वह पांच साल से खारकीव में रह कर एमबीबीएस कर रही हैं। उन्होंने बताया कि 24 फरवरी से हमले शुरू हो गए थे। पहले दिन हम मेट्रो स्टेशन पर सोए। फिर हमें पता चला कि बिल्डिंग में बंकर हैं। सात दिन हम वहां रहे। बंकर में खाना-पीना खत्म हो गया था। 24 घंटे में एक बार खाकर गुजारा किया। फिर एक मार्च को वहां धमाका हुआ। जिसमें एक भारतीय छात्र मारा गया। वह मेरा जूनियर था। उस दिन भी वहां से निकल नहीं सके। 

 

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भाव्या चौहान ने बताया कि किसी तरह खारकीव से निकले तो ट्रेन में धक्का-मुक्की व अभद्रता हुई। फिर वहां से मजबूर होकर हम पिसाचिन तक पैदल गए। वहां एबेंसी की तरफ से व्यवस्था की गई थी। वहां से टर्नोपिल होते हुए रोमानिया आए। जहां से भारत सरकार की मदद से घर वापस लौट पाए हैं।

एक बार लगा कि कभी वापस नहीं लौट पाएंगे

शास्त्रीपुरम निवासी अंजलि पचौरी ने बताया कि वह खारकीव में एमबीबीएस प्रथम वर्ष की छात्रा हैं। उन्होंने कहा कि दो दिन हमें ट्रेन में जगह नहीं मिली। तब ऐसा लगा था कि शायद अब कभी घर वापस नहीं लौट पाएंगे। शहर में धमाके हो रहे थे। मिसाइल हमले व गोलीबारी की आवाजें आ रही थीं। 

अंजलि ने कहा कि सात दिन तक बंकर में रहना पड़ा। खाना-पीना खत्म हो गया था। खारकीव से निकल नहीं पा रहे थे। फिर करीब 20 किमी. पैदल चलकर पिसाचिन में बने शेल्टर होम पहुंचे। वहां से बस ने रोमानिया तक ले जाने के लिए 500 डॉलर मांगे, हमारे पास नकदी नहीं थी। दो दिन भूखे प्यासे रहे। फिर भारत सरकार ने बस की व्यवस्था कराई। जिसके बाद हम वहां से निकल सके।

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