हाईकोर्ट ने कहा : मृत पिता के स्थान पर विवाहित पुत्री को राशन दुकान के संचालन की अनुमति नहीं

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Wed, 16 Mar 2022 10:41 PM IST

सार

हाईकोर्ट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवार में अविवाहित पुत्री को शामिल करने को सांविधानिक करार दिया है और कहा कि यह मनमाना पूर्ण और विभेदकारी नहीं है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लाइसेंसी पिता की मौत के बाद विवाहित पुत्री को सरकारी सस्ते राशन की दुकान चलाने के लिए एजेंट के रूप में बतौर वारिस नहीं रखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि याची अपीलार्थी दो कारणों से मृत पिता के स्थान पर लाइसेंसी नहीं हो सकती।

पहला यह कि वह शादीशुदा होने के कारण परिवार की सूची में नहीं है। दूसरा यह कि वह मृत पिता की संचालित दुकान से दूर दूसरे गांव में रहती है। यह फैसला न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कुसुम लता की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है।

हाईकोर्ट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवार में अविवाहित पुत्री को शामिल करने को सांविधानिक करार दिया है और कहा कि यह मनमाना पूर्ण और विभेदकारी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कंट्रोल आर्डर 2016 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकार राशन वितरित कराती है। सस्ते गल्ले के दुकानदार सरकार के एजेंट होते हैं। स्थानीय निवासी को ही एजेंट रखा जाता हैं।

मृतक सेवा नियमावली राशन वितरण प्रणाली में नहीं होती लागू

कोर्ट ने कहा कि याची विवाहिता पुत्री है और दूसरे गांव की रहने वाली है। इसलिए वह मृतक आश्रित कोटे में लाइसेंसी मृत पिता के राशन की दुकान का लाइसेंस पाने के योग्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मृतक आश्रित सेवा नियमावली राशन वितरण प्रणाली के मामले में लागू नहीं होगी। खंडपीठ ने एकलपीठ के अविवाहित पुत्री को परिवार की परिभाषा में शामिल करने को वैध करार देने के फैसले को सही माना और हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

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याची का तर्क था कि उसके पिता नेकराम इटावा के नेवादी खुर्द गांव में सस्ते गल्ले के दुकानदार थे। उनकी मौत के बाद विधवा पत्नी सुमन देवी ने आश्रित कोटे में दुकान आवंटन की अर्जी दी। बाद में स्वयं को असमर्थ बताते हुए सुमन ने अपनी विवाहिता पुत्री के नाम आवंटन करने की अर्जी दी। एसडीएम की अध्यक्षता में गठित समिति ने विधवा पत्नी की अर्जी खारिज कर दी और पुत्री को स्थानीय निवासी न होने तथा विवाहित होने के कारण दुकान पाने के लिए अयोग्य करार दिया।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लाइसेंसी पिता की मौत के बाद विवाहित पुत्री को सरकारी सस्ते राशन की दुकान चलाने के लिए एजेंट के रूप में बतौर वारिस नहीं रखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि याची अपीलार्थी दो कारणों से मृत पिता के स्थान पर लाइसेंसी नहीं हो सकती।

पहला यह कि वह शादीशुदा होने के कारण परिवार की सूची में नहीं है। दूसरा यह कि वह मृत पिता की संचालित दुकान से दूर दूसरे गांव में रहती है। यह फैसला न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी और न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कुसुम लता की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है।

हाईकोर्ट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवार में अविवाहित पुत्री को शामिल करने को सांविधानिक करार दिया है और कहा कि यह मनमाना पूर्ण और विभेदकारी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कंट्रोल आर्डर 2016 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकार राशन वितरित कराती है। सस्ते गल्ले के दुकानदार सरकार के एजेंट होते हैं। स्थानीय निवासी को ही एजेंट रखा जाता हैं।

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