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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Sat, 19 Mar 2022 02:58 PM IST
सार
आरोपी के खिलाफ हत्या के साथ ही आर्म्स एक्ट का भी मामला दर्ज है। शीर्ष कोर्ट ने उसे रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि वह पहले ही 15 साल की सजा भुगत चुका है।
सुप्रीम कोर्ट ने निचली कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह हत्या के आरोप में बीते 15 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद एक आरोपी को जमानत पर रिहा करे। इलाहाबाद हाईकोर्ट में उसकी अपील 12 साल से लंबित है।
आरोपी के खिलाफ हत्या के साथ ही आर्म्स एक्ट का भी मामला दर्ज है। शीर्ष कोर्ट ने उसे रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि वह पहले ही 15 साल की सजा भुगत चुका है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट व जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि आरोपी ने अपनी सजा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उसकी अपील बीते 12 सालों से हाईकोर्ट में लंबित है।यह देखने के बाद कि अपीलकर्ता पहले ही 15 साल से अधिक की वास्तविक कारावास की सजा काट चुका है, शीर्ष कोर्ट में याचिका दायर करने में देरी को माफ कर दिया गया और अपील पर सुनवाई में देरी के लिए 14 फरवरी 2022 को नोटिस जारी किया गया।
पीठ ने कहा कि जवाब में दायर हलफनामे में स्वीकार किया गया है कि अपीलार्थी 15 साल से ज्यादा जेल में रह चुका है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उक्त परिस्थितियों को देखते हुए हमारी राय में इस केस में धारा 389 के तहत राहत का मामला बनता है।
तीन दिन में जमानत प्रदान करें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस अपील को स्वीकार करते हैं और निर्देश देते हैं कि अपीलार्थी को आज से तीन दिन में निचली कोर्ट के समक्ष पेश किया जाए और उचित शर्तों के साथ उसे जमानत पर रिहा किया जाए। आरोपी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 के तहत शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इस धारा के तहत किसी आरोपी को अपनी सजा के निलंबन के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने की आजादी है। उस व्यक्ति ने वकील अलख आलोक श्रीवास्तव के माध्यम से अपनी अपील में दलील दी थी कि वह 15 साल से अधिक समय से जेल में है।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने निचली कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह हत्या के आरोप में बीते 15 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद एक आरोपी को जमानत पर रिहा करे। इलाहाबाद हाईकोर्ट में उसकी अपील 12 साल से लंबित है।
आरोपी के खिलाफ हत्या के साथ ही आर्म्स एक्ट का भी मामला दर्ज है। शीर्ष कोर्ट ने उसे रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि वह पहले ही 15 साल की सजा भुगत चुका है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट व जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि आरोपी ने अपनी सजा को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उसकी अपील बीते 12 सालों से हाईकोर्ट में लंबित है।यह देखने के बाद कि अपीलकर्ता पहले ही 15 साल से अधिक की वास्तविक कारावास की सजा काट चुका है, शीर्ष कोर्ट में याचिका दायर करने में देरी को माफ कर दिया गया और अपील पर सुनवाई में देरी के लिए 14 फरवरी 2022 को नोटिस जारी किया गया।
पीठ ने कहा कि जवाब में दायर हलफनामे में स्वीकार किया गया है कि अपीलार्थी 15 साल से ज्यादा जेल में रह चुका है। शीर्ष अदालत ने कहा कि उक्त परिस्थितियों को देखते हुए हमारी राय में इस केस में धारा 389 के तहत राहत का मामला बनता है।
तीन दिन में जमानत प्रदान करें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस अपील को स्वीकार करते हैं और निर्देश देते हैं कि अपीलार्थी को आज से तीन दिन में निचली कोर्ट के समक्ष पेश किया जाए और उचित शर्तों के साथ उसे जमानत पर रिहा किया जाए। आरोपी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 के तहत शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इस धारा के तहत किसी आरोपी को अपनी सजा के निलंबन के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने की आजादी है। उस व्यक्ति ने वकील अलख आलोक श्रीवास्तव के माध्यम से अपनी अपील में दलील दी थी कि वह 15 साल से अधिक समय से जेल में है।
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