विश्व स्वास्थ्य दिवस सात अप्रैल पर विशेष

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उन्नाव। मौसम के बदलते ही मच्छरजनित बीमारियां जैसे डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया पांव पसारने लगती हैं। इससे बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग साल में तीन बार संचारी रोग नियंत्रण माह भी मनाता है। अब इसमें इंटीग्रेड ट्रीटेड मॉसक्यूटो बेड नेट (आईटीएन) के प्रयोग की भी जानकारी शामिल की गई है। इसके प्रयोग से मच्छरों से बचा जा सकता है और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता है।
सीमएओ डॉ. सत्यप्रकाश ने बताया कि हर घर को कीटनाशकों के माध्यम से आच्छादित किया जाना न तो पर्यावरण की दृष्टि से उचित है और न ही आर्थिक रूप से। इससे मनुष्य के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचता है। सतत विकास के लिए यह आवश्यक है कि हम उन चीजों के प्रयोग पर जोर दें जिससे हमारा और हमारी आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य बेहतर बन सके। आईटीएन के प्रयोग में लागत भी कम आती है। इसका सबसे पहले उपयोग असम में मलेरिया से बचाव के लिए किया गया था। वहां मलेरिया को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता मिली।
ये है मच्छरदानी बनाने की विधि
15 मिली कीटनाशक को चार लीटर पानी में डालकर घोल तैयार करें। सिंगल बेड मच्छरदानी को 10 मिनट भिगोकर बिना निचोड़े छायादार जगह पर सुखा लें। डबल बेड की मच्छरदानी है तो उसमें कीटनाशक व पानी की मात्रा बढ़ा लें। भिगोने का समय यही रहेगा। सावधानी बरतें कि शरीर का कोई भी अंग कीटनाशक के संपर्क में न आए। इसलिए पीपीई किट पहने। मच्छरदानी सूखने के बाद छह महीने तक इसे प्रयोग में लाया जा सकता है। लेकिन मच्छरदानी को धूप में न ले जाएं।

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उन्नाव। मौसम के बदलते ही मच्छरजनित बीमारियां जैसे डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया पांव पसारने लगती हैं। इससे बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग साल में तीन बार संचारी रोग नियंत्रण माह भी मनाता है। अब इसमें इंटीग्रेड ट्रीटेड मॉसक्यूटो बेड नेट (आईटीएन) के प्रयोग की भी जानकारी शामिल की गई है। इसके प्रयोग से मच्छरों से बचा जा सकता है और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता है।

सीमएओ डॉ. सत्यप्रकाश ने बताया कि हर घर को कीटनाशकों के माध्यम से आच्छादित किया जाना न तो पर्यावरण की दृष्टि से उचित है और न ही आर्थिक रूप से। इससे मनुष्य के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचता है। सतत विकास के लिए यह आवश्यक है कि हम उन चीजों के प्रयोग पर जोर दें जिससे हमारा और हमारी आने वाली पीढ़ियों का स्वास्थ्य बेहतर बन सके। आईटीएन के प्रयोग में लागत भी कम आती है। इसका सबसे पहले उपयोग असम में मलेरिया से बचाव के लिए किया गया था। वहां मलेरिया को नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता मिली।

ये है मच्छरदानी बनाने की विधि

15 मिली कीटनाशक को चार लीटर पानी में डालकर घोल तैयार करें। सिंगल बेड मच्छरदानी को 10 मिनट भिगोकर बिना निचोड़े छायादार जगह पर सुखा लें। डबल बेड की मच्छरदानी है तो उसमें कीटनाशक व पानी की मात्रा बढ़ा लें। भिगोने का समय यही रहेगा। सावधानी बरतें कि शरीर का कोई भी अंग कीटनाशक के संपर्क में न आए। इसलिए पीपीई किट पहने। मच्छरदानी सूखने के बाद छह महीने तक इसे प्रयोग में लाया जा सकता है। लेकिन मच्छरदानी को धूप में न ले जाएं।

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