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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Thu, 12 May 2022 09:43 PM IST
सार
कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ता समाज को रोशनी दिखाते हैं। ऐसे मामलों में वकीलों की अहम भूमिका होती है। विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिये कानूनी सहायता दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि युवा अधिवक्ताओं को मदद में आगे आना चाहिए, ताकि विचाराधीन कैदियों को उनके अधिकारों की जानकारी दी जा सके।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 साल से अधिक समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदी की सशर्त जमानत मंजूर कर ली है। उसे व्यक्तिगत मुचलके तथा दो प्रतिभूति पर रिहा करने का निर्देश दिया है। उस पर जानलेवा हमला करने सहित कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जालौन, उरई के अखिलेश की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ता समाज को रोशनी दिखाते हैं। ऐसे मामलों में वकीलों की अहम भूमिका होती है। विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिये कानूनी सहायता दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि युवा अधिवक्ताओं को मदद में आगे आना चाहिए, ताकि विचाराधीन कैदियों को उनके अधिकारों की जानकारी दी जा सके।
कैदियों को मिलनी चाहिए उनके अधिकार की जानकारी
हाईकोर्ट ने जेल अधिकारियों से पूछा था कि इतने लंबे समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदी को उसके विधिक अधिकार की जानकारी दी गई या नहीं। सिर्फ इतना बताया कि 11 साल से जेल में बंद है। जबकि, सुप्रीम कोर्ट ने सौदान सिंह केस में कहा है कि जेल प्राधिकारियों का दायित्व है कि वह कैदी को उसके अधिकारों की जानकारी दें। किसी कैदी को छुड़ाने वाला कोई न हो तो विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिये कानूनी सहायता दी जाए।
याची पर एक केस उस समय दर्ज किया गया जब वह जेल में बंद था। एफआईआर में नामित नहीं था। बाद में विवेचना के दौरान नाम आया। इस मामले में जेल अधिकारी भी आरोपित हैं। दो आरोपियों की जेल में ही मौत हो चुकी है। सह अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी है।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 साल से अधिक समय से जेल में बंद विचाराधीन कैदी की सशर्त जमानत मंजूर कर ली है। उसे व्यक्तिगत मुचलके तथा दो प्रतिभूति पर रिहा करने का निर्देश दिया है। उस पर जानलेवा हमला करने सहित कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने जालौन, उरई के अखिलेश की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि अधिवक्ता समाज को रोशनी दिखाते हैं। ऐसे मामलों में वकीलों की अहम भूमिका होती है। विधिक सेवा प्राधिकरण के जरिये कानूनी सहायता दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि युवा अधिवक्ताओं को मदद में आगे आना चाहिए, ताकि विचाराधीन कैदियों को उनके अधिकारों की जानकारी दी जा सके।
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