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इतिहास के जानकार डॉ. राजेश शर्मा ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में यहां मंदिर निर्माण कराया था। इसके प्रमाण यहां से मिले शिलालेखों पर मिले हैं। शोडास के राज्य में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था। सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में 400 ईसवी में भी यहां मंदिर निर्माण कराया गया।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भव्य मंदिर था। उस समय मथुरा की ख्याति संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में थी। खुदाई में मिले संस्कृत के शिलालेख के मुताबिक 1150 ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नये मंदिर का निर्माण हुआ था। उन्होंने विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर दिया गया।
डॉ. शर्मा ने बताया कि इसके बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर मंदिर बनवाया। इस मंदिर को औरंगजेब ने सन 1669 में तुड़वा दिया। इसके एक भाग पर ईदगाह मस्जिद का निर्माण करा दिया। श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के विशेष कार्याधिकारी विजय बहादुर ने बताया कि उपरोक्त इतिहास से जुड़ा बोर्ड श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर में लगा हुआ है। इसका अवलोकन यहां आने वाले श्रद्धालु करते हैं।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान के खास बिंदु
– विक्रमादित्य ने कराया था यहां दूसरा बड़े मंदिर का निर्माण
– विजयपाल देव के शासनकाल में बना जन्मस्थान पर तीसरा मंदिर
– जहांगीर के शासनकाल में चौथी बार बना मंदिर, औरंगजेब ने तुड़वाया
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