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आगरा की कालिंदी में जहां नाव तैरनी चाहिए वहां अब कारें दौड़ रहीं हैं। जो नदी कल-कल करते बहती थी, वो सूख गई है। पोइया घाट से यमुना किनारा तक यमुना की तलहटी पर रेत के गुबार उड़ रहे हैं। पानी वाला स्थान मैदान में तब्दील हो गया है। वहीं गोकुल बैराज से 1120 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है जबकि नदी की जलधारण क्षमता एक लाख क्यूसेक से अधिक है। लिहाजा नालों का गंदा पानी भी छोड़ दिया जा रहा है, जो यमुना भक्तों के लिए पीड़ादायक है। सदानीरा गंगा की बहन यमुना के दिन नहीं बहुरे। गंगाजल आने के बाद तो दुर्दशा और बढ़ गई। जिस नदी पर पूरे शहर की प्यास बुझाने का दारोमदार था, उसका अब वॉटर वर्क्स पर जलस्तर तक नहीं मापा जा रहा। जलकल मुख्यालय के अधिशासी अभियंता एसके श्रीवास्तव ने बताया कि जब से गंगाजल आया है, यमुना जल का प्रयोग नहीं होता। इस वजह से वॉटर वर्क्स पर जलस्तर नहीं मापा जा रहा। कैलाश मंदिर स्थित एक प्लांट से यमुना जल को शोधित कर सप्लाई किया जा रहा है। सोमवार को यहां यमुना का जलस्तर 153 मीटर था। आठ दिन पहले यह 153.8 मीटर था।
क्षमता से कम मिल रहा पानी
सिंचाई विभाग के अनुसार गोकुल बैराज से यमुना में 900 क्यूसेक जल आवंटन के सापेक्ष 1120 क्यूसेक पानी छोड़ा जा रहा है। ओखला बैराज से 350 क्यूसेक, 150 क्यूसेक हरनाल एस्केप से। इस तरह 1620 क्यूसेक पानी यमुना में आ रहा है। नदी के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है क्योंकि यमुना की क्षमता एक लाख क्यूसेक से अधिक है। एक किनारे से दूसरे किनारे तक नदी 250 से 400 मीटर तक चौड़ी है। ये हाल तब है जब 2017 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने पर योगी आदित्यनाथ आगरा आगमन पर यमुना किनारा जाकर नदी का जायजा लिया था। पांच साल बाद भी हालात नहीं सुधर सके हैं।
जीवनदायिनी है नदी
यमुना प्रेमी डॉ. हरेंद्र गुप्ता ने कहा कि यमुना जीवनदायिनी नदी है। गंगा मोक्षदायिनी है। यमुना के निर्मल स्वरूप के लिए आंखें तरस गईं। पांच साल से नियमित आरती कर रहे हैं, लेकिन शासन व प्रशासन नदी के संरक्षण के लिए गंभीर नहीं।
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