Allahabad highcourt: दुष्कर्म व हत्या के दोषी को मिली फांसी की सजा रद्द

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति की नाबालिग लड़की से दुष्कर्म व हत्या के दोषी को मिली मौत की सजा रद्द कर दी है और आरोपों से बरी करते हुए उसकी तत्काल रिहाई का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध साबित करने में नाकाम रहा है। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों तथा अभियुक्त व मृतका को अंतिम समय देखने के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं हैं, जिसके आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जा सके।

यह फैसला न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने बीरेंद्र बघेल की जेल अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश विशेष अदालत पॉक्सो, फिरोजाबाद ने बीरेंद्र बघेल को दुष्कर्म व हत्या का दोषी करार देते हुए उसे मौत की सजा सुनाई थी। फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को रिफरेंस भेजा गया था। जेल अधीक्षक ने 23 सितंबर 21 को फैसले की प्रति भेजी, जिस पर अपील कायम की गई। कैदी की तरफ से कोई वकील न होने के कारण कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार को न्यायमित्र नियुक्त किया। 

फिरोजाबाद के लाइनपार थाने में 26 अप्रैल 19 को अपहरण की एफआईआर दर्ज कराई गई थी। 25 अप्रैल से 11 साल की बच्ची लापता थी। दूसरे दिन बसईपुर मोहम्मदपुर थाना क्षेत्र में बच्ची की लाश बरामद की गई। उसकी शिनाख्त हो गई। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया और उसने अपराध स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस के समक्ष अपराध स्वीकार करना साक्ष्य के रूप में मान्य नहीं है।

आरोपी के जींस पर मिले खून से यह साबित नहीं हुआ कि वह मृतका का खून था। यह भी साफ  नहीं है कि लाश दुकान के पास कैसे पहुंची। आखिरी बार आरोपी व मृतका को देखे जाने के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं हैं। परिस्थितिजन्य सबूत संदेह से परे आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने फांसी की सजा रद्द कर बीरेंद्र को बरी कर दिया और तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति की नाबालिग लड़की से दुष्कर्म व हत्या के दोषी को मिली मौत की सजा रद्द कर दी है और आरोपों से बरी करते हुए उसकी तत्काल रिहाई का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अभियोजन पक्ष संदेह से परे अपराध साबित करने में नाकाम रहा है। परिस्थितिजन्य साक्ष्यों तथा अभियुक्त व मृतका को अंतिम समय देखने के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं हैं, जिसके आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया जा सके।

यह फैसला न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति समीर जैन की खंडपीठ ने बीरेंद्र बघेल की जेल अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश विशेष अदालत पॉक्सो, फिरोजाबाद ने बीरेंद्र बघेल को दुष्कर्म व हत्या का दोषी करार देते हुए उसे मौत की सजा सुनाई थी। फांसी की सजा की पुष्टि के लिए हाईकोर्ट को रिफरेंस भेजा गया था। जेल अधीक्षक ने 23 सितंबर 21 को फैसले की प्रति भेजी, जिस पर अपील कायम की गई। कैदी की तरफ से कोई वकील न होने के कारण कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता दिलीप कुमार को न्यायमित्र नियुक्त किया। 

फिरोजाबाद के लाइनपार थाने में 26 अप्रैल 19 को अपहरण की एफआईआर दर्ज कराई गई थी। 25 अप्रैल से 11 साल की बच्ची लापता थी। दूसरे दिन बसईपुर मोहम्मदपुर थाना क्षेत्र में बच्ची की लाश बरामद की गई। उसकी शिनाख्त हो गई। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया और उसने अपराध स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस के समक्ष अपराध स्वीकार करना साक्ष्य के रूप में मान्य नहीं है।

आरोपी के जींस पर मिले खून से यह साबित नहीं हुआ कि वह मृतका का खून था। यह भी साफ  नहीं है कि लाश दुकान के पास कैसे पहुंची। आखिरी बार आरोपी व मृतका को देखे जाने के साक्ष्य विश्वसनीय नहीं हैं। परिस्थितिजन्य सबूत संदेह से परे आरोपी को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने फांसी की सजा रद्द कर बीरेंद्र को बरी कर दिया और तत्काल रिहा करने का निर्देश दिया।

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