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रेंजर आरके सिंह राठौड़ ने बताया कि घड़ियाल के शिशुओं का सर्वाइवल (बचने की दर) करीब पांच फीसदी रहता है। बचने वाले घड़ियाल शिशुओं की दर बढ़ाने के लिए हैचिंग के बाद से ही विभाग इनकी देखभाल कर रहा है।
हर साल आने वाली बाढ़ में बहकर शिशुओं की ज्यादा मौत होती है। लेकिन बाढ़ से पहले पानी में लहरों के विरुद्ध तैरने में शिशुओं के अभ्यस्त होने से इनके बचने की संभावना बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से होकर बहने वाली चंबल नदी में 1979 से घड़ियालों का संरक्षण हो रहा है।
मार्च के आखिर से अप्रैल तक चंबल की बालू में घड़ियालों ने 147 नेस्टों में अंडे दिए थे। एक नेस्ट में 25 से 60 अंडे थे। इनसे औसतन 32 बच्चे निकलते हैं। नेस्टिंग के समय पर वन विभाग ने जीपीएस से लोकेशन ट्रेस कर जाली लगाई थी ताकि जानवर अंडों को नष्ट ना कर सकें।
इस बार जून में अंडों से निकलने के बाद 2700 नन्हें घड़ियालों को चंबल नदी में छोड़ा गया। बीते दिनों से राजस्थान और मध्य प्रदेश में हो रही बारिश से चंबल का जलस्तर बढ़ रहा है। बढ़ते जलस्तर के बीच लहरों में नन्हें घड़ियाल तैरने लगे हैं। यह नजारा ग्रामीणों को रोमांचित कर रहा है।
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