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मलबे में फंसे नफीस चीखते रहे। बेबस लोग चीखे सुनकर बिलबिलाते रहे। वह चाहते थे कि किसी तरह से नफीस को बाहन निकाल लें लेकिन संभव नहीं हो पा रहा था। करीब एक घंटे बाद चीखें भी बंद हो गईं। तब हर किसी को अनहोनी की आशंका हो गई थी। हादसा होने के करीब दो घंटे बाद क्रेन पहुंची। तब उसके जरिये टीम पहली मंजिल तक पहुंची। जिसके बाद नफीस को बाहर निकाला गया। अगर समय उनको बाहर निकाल लिया जाता तो उनकी जान बच सकती थी। देर शाम करीब सात बजे हादसा हुआ। दस मिनट के भीतर पुलिस मौके पर पहुंच गई। कुछ देर बाद नगर निगम की टीम पहुंचे। पुलिसकर्मियों ने तब तक बिल्डिंग के भीतर फंसे लोगों को पीछे के रास्ते से बाहर निकाल लिया था। मलबे में फंसे नफीस को निकालना संभव नहीं हो पा रहा था। लगभग पहली मंजिल की ऊंचाई तक फैले मलबे में वह फंसे थे। इसलिए क्रेन को लाया जाना था। क्रेन पहुंचने में देरी हुई। काफी प्रयास के बाद भी नफीस की जान नहीं बचाई जा सकी।
रोशनी तक पर्याप्त नहीं थी
अंधेरे में रेस्क्यू ऑपरेशन चलता रहा। पर्याप्त रोशनी न होने की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन में काफी दिक्कतें आईं। लोग आसपास की बिल्डिंग से टॉर्च आदि के जरिये रोशनी करने का प्रयास कर रहे थे।
दो बेटियां हैं परिवार में
नफीस अपनी दो बेटियों बुशरा व शुमाना के साथ रहते थे। हादसे में पिता की मौत के बाद से दोनों बहने बदहवाश हो गईं। आसपास के लोगों ने उनको संभाला। नफीस एक हाथ से दिव्यांग थे। इसके बावजूद व पेंटिंग का काम कर परिवार का खर्च चलाते थे।
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