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उन्नाव। कोरोना के कारण दो साल मृदा परीक्षण का काम बंद रहा। अब भी खेतों में मिट्टी की सेहत की जांच नहीं हो रही है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि रसायनिक खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो गई है। जरूरी जीवांश कार्बन की मात्रा आधी से कम रह गई है।
प्रदेश सरकार कोरोना काल से पहले कृषि भूमि की जांच के लिए मृदा परीक्षण कराती थी। खरीफ व रबी सीजन में अलग-अलग लक्ष्य मिलता था। कृषि विभाग लक्ष्य के आधार पर खेत से मिट्टी लेकर परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेजता था।
लैब की रिपोर्ट के आधार पर मिट्टी को और उपजाऊ बनाने के लिए प्रयास कर किसानों को जानकारी दी जाती थी। पिछले दो सालों से कोरोना के कारण मृदा परीक्षण नहीं हुआ। अब मृदा में किन पोषक तत्वों की कमी है, इसकी जानकारी नहीं हो पा रही है। दो साल पहले मिट्टी के करीब 50 हजार नमूने लिए गए थे। इन्हें जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा गया था। रिपोर्ट में पता चला था कि रासायनिक खाद ने मिट्टी की सेहत बिगाड़ दी है।
16 तत्वों की होती जरूरत
खेती के लिए जीवांश कार्बन के साथ मृदा में 16 तत्वों की जरूरत होती है। इनमें कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, पोटेशियम, सल्फर, कैल्शियम और मैग्निशियम मुख्य तत्व हैं। मृदा में पाया जाने वाला जीवांश कार्बन वातावरण की नाइट्रोजन को फिक्स करता है। मृदा मेें नाइट्रोजन बढ़ने से फसल तेजी से बढ़ती है।
जीवांश कार्बन मिट्टी में पाए जाने वाले जैविक तत्वों से बनता है लेकिन रासायनिक खाद व कीटनाशक के प्रयोग से मृदा के मित्र जीव और वनस्पति समाप्त हो रही है। इनके घटने से जीवांश पदार्थ भी घट रहे हैं। मृदा में आवश्यक रूप से 0.8 प्रतिशत जीवांश कार्बन होना चाहिए लेकिन मिट्टी के नमूनों में जीवांश कार्बन की मात्रा 0.2 से 0.4 प्रतिशत से अधिक नहीं पाई गई थी। ऐेसे में पिछले दो साल से परीक्षण न होने से मिट्टी की सेहत और बिगड़ने की आशंका है।
ये सही है कि दो सालों से मृदा परीक्षण नहीं हो पा रहा है। फिर भी मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए विभागीय स्तर से काफी कार्य किए जा रहे हैं। किसानों को जैविक खाद का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। गंगा किनारे के गांवों में जैविक खेती कराई जा रही है। – डॉ. मुकुल तिवारी, उप कृषि निदेशक
उन्नाव। कोरोना के कारण दो साल मृदा परीक्षण का काम बंद रहा। अब भी खेतों में मिट्टी की सेहत की जांच नहीं हो रही है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि रसायनिक खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम हो गई है। जरूरी जीवांश कार्बन की मात्रा आधी से कम रह गई है।
प्रदेश सरकार कोरोना काल से पहले कृषि भूमि की जांच के लिए मृदा परीक्षण कराती थी। खरीफ व रबी सीजन में अलग-अलग लक्ष्य मिलता था। कृषि विभाग लक्ष्य के आधार पर खेत से मिट्टी लेकर परीक्षण के लिए प्रयोगशाला भेजता था।
लैब की रिपोर्ट के आधार पर मिट्टी को और उपजाऊ बनाने के लिए प्रयास कर किसानों को जानकारी दी जाती थी। पिछले दो सालों से कोरोना के कारण मृदा परीक्षण नहीं हुआ। अब मृदा में किन पोषक तत्वों की कमी है, इसकी जानकारी नहीं हो पा रही है। दो साल पहले मिट्टी के करीब 50 हजार नमूने लिए गए थे। इन्हें जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा गया था। रिपोर्ट में पता चला था कि रासायनिक खाद ने मिट्टी की सेहत बिगाड़ दी है।
16 तत्वों की होती जरूरत
खेती के लिए जीवांश कार्बन के साथ मृदा में 16 तत्वों की जरूरत होती है। इनमें कार्बन, हाइड्रोजन, आक्सीजन, नाइट्रोजन, पोटेशियम, सल्फर, कैल्शियम और मैग्निशियम मुख्य तत्व हैं। मृदा में पाया जाने वाला जीवांश कार्बन वातावरण की नाइट्रोजन को फिक्स करता है। मृदा मेें नाइट्रोजन बढ़ने से फसल तेजी से बढ़ती है।
जीवांश कार्बन मिट्टी में पाए जाने वाले जैविक तत्वों से बनता है लेकिन रासायनिक खाद व कीटनाशक के प्रयोग से मृदा के मित्र जीव और वनस्पति समाप्त हो रही है। इनके घटने से जीवांश पदार्थ भी घट रहे हैं। मृदा में आवश्यक रूप से 0.8 प्रतिशत जीवांश कार्बन होना चाहिए लेकिन मिट्टी के नमूनों में जीवांश कार्बन की मात्रा 0.2 से 0.4 प्रतिशत से अधिक नहीं पाई गई थी। ऐेसे में पिछले दो साल से परीक्षण न होने से मिट्टी की सेहत और बिगड़ने की आशंका है।
ये सही है कि दो सालों से मृदा परीक्षण नहीं हो पा रहा है। फिर भी मिट्टी की सेहत सुधारने के लिए विभागीय स्तर से काफी कार्य किए जा रहे हैं। किसानों को जैविक खाद का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। गंगा किनारे के गांवों में जैविक खेती कराई जा रही है। – डॉ. मुकुल तिवारी, उप कृषि निदेशक
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