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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण के मामले में दाखिल होने वाली याचिकाओं को लेकर गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि बहुत सारे मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं पुलिस पर चाबुक की तरह इस्तेमाल की जा रही हैं। कोर्ट ने कहा कि जहां अपहरण, फिरौती के मामलों में प्राथमिकी पर पुलिस अपनी ओर से जांच या कार्रवाई को आगे बढ़ा रही हैं, उन मामलों में इस तरह की याचिकाएं पुलिस पर दबाव बनाने के उद्देश्य से दाखिल की जा रहीं हैं। कोर्ट ने इस तरह के उद्देश्य के साथ दाखिल होने वाली याचिकाओं को गलत बताया।
बांदा के कालिंजर थाने में अपहरण के मामले में दर्ज प्राथमिकी में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ विचार कर रही थी। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। कहा कि लड़की या लड़के के घर से भाग जाने के बाद अधिकांश मां-बाप को लगता है कि उन्हें अवैध रूप से कैद रखा गया है, लेकिन अधिकांश मामलों में जब इन जोड़ों को अदालत के सामने लाया जाता है तो यह सही नहीं पाया जाता। परिणामस्वरूप याचिकाओं को खारिज कर दिया जाता है। हालांकि, कोर्ट ने नाबालिगाें के मामलों में अपनी इस टिप्पणी को लागू करने से अलग रखा। कहा कि नाबालिगों के मामले में इसे लागू नहीं माना जाएगा।
यह था मामला
याची (लड़की के पिता) कैलाश चंद्र कुशवाहा ने अपनी पुत्री को बहकाने के आरोप में 22 जनवरी 2022 को कालिंजर थाने में बीरू प्रजापति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई थी। बाद में शिकायतकर्ता को यह पता चला कि उसकी पुत्री को रोहित भट्ट उर्फ मनीष कुमार शर्मा, चांद खां और दो अन्य के साथ मिलकर बंधक बना रखा है। उसने इस बात की जानकारी जांच अधिकारी को दी।
जांच के दौरान ही रोहित भट्ट उर्फ मनीष कुमार शर्मा ने याची की लड़की के साथ शादी कर लेने का आधार बनाकर न्यायालय से सुरक्षा की मांग की। जिस पर न्यायालय ने उसके पक्ष में आदेश पारित किया। पिता कैलाश चंद्र कुशवाहा को भी पता चला कि उसकी बेटी की शादी मनीष कुमार शर्मा से हो चुकी है। इसके बाद पिता ने मनीष कुमार शर्मा के खिलाफ कई गंभीर आरोप लगाते हुए याचिका दाखिल की।
जिसमें उस पर प्रेम जाल बिछाकर कई अन्य युवा लड़कियों का जीवन खराब करने, महिला तस्करी, देह व्यापार और उसकी पत्नी से फोन कर पांच लाख रुपये की फिरौती मांगने का आरोप लगाया गया। कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए बेटी को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया। पेशी के दौरान मामले में प्रतिवादी यानी मनीष कुमार शर्मा की ओर पेश के किए गए तथ्यों के आधार पर कोर्ट ने याचिका को पोषणीय मानने से इनकार कर दिया। कहा कि इस तरह की याचिका केवल पुलिस पर जबरन दबाव बनाने के अलावा कुछ नहीं है।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण के मामले में दाखिल होने वाली याचिकाओं को लेकर गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि बहुत सारे मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएं पुलिस पर चाबुक की तरह इस्तेमाल की जा रही हैं। कोर्ट ने कहा कि जहां अपहरण, फिरौती के मामलों में प्राथमिकी पर पुलिस अपनी ओर से जांच या कार्रवाई को आगे बढ़ा रही हैं, उन मामलों में इस तरह की याचिकाएं पुलिस पर दबाव बनाने के उद्देश्य से दाखिल की जा रहीं हैं। कोर्ट ने इस तरह के उद्देश्य के साथ दाखिल होने वाली याचिकाओं को गलत बताया।
बांदा के कालिंजर थाने में अपहरण के मामले में दर्ज प्राथमिकी में दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ विचार कर रही थी। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया। कहा कि लड़की या लड़के के घर से भाग जाने के बाद अधिकांश मां-बाप को लगता है कि उन्हें अवैध रूप से कैद रखा गया है, लेकिन अधिकांश मामलों में जब इन जोड़ों को अदालत के सामने लाया जाता है तो यह सही नहीं पाया जाता। परिणामस्वरूप याचिकाओं को खारिज कर दिया जाता है। हालांकि, कोर्ट ने नाबालिगाें के मामलों में अपनी इस टिप्पणी को लागू करने से अलग रखा। कहा कि नाबालिगों के मामले में इसे लागू नहीं माना जाएगा।
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