प्रेमभक्ति का जन ज्वार सोमवार की रात कुंभ सरीखे समागम में तब्दील हो गया। न थकने की फिक्र, न रास्ता भटकने की चिंता, जिसे जहां जगह मिलती गई, वहीं अपने सद्गुरु के नयनाभिराम दर्शन के लिए आतुर ठिठका नजर आया। मौका था संगम तट पर निरंकारी संत समागम का। गद्दी संभालने के बाद पहली बार यहां पहुंचीं सुदीक्षा माता ने दिलों को जोड़ने वाले सेतु बनाने का संदेश दिया।
परेड मैदान में अरसा बाद संत समागम के जरिए मानवता का यह मेला हर किसी के लिए अनुकरणीय बन गया। संगम नगरी में सेवा, सुमिरन और सत्संग का यह संगम हर मन की पीड़ा, पांवों की थकान हमेशा के लिए दूर कर देने वाला था। एक तरफ मुख्य मंच पर सहजता और ममता के भावों से भरी सुदीक्षा माता हर अनुयायी के अभिवादन को स्वीकार करती रहीं तो दूसरी ओर संगीतमय भजनों, लोक गीतों, कविताओं की प्रस्तुतियों में सद्गुरु की महिमा का बखान हर तन, मन को अभिसिंचित कर रहा था।
रात 8:35 बजे ‘एक को जानो एक को मानो और एक हो जाओ’ का संदेश दिया। अनुयायियों को मानवीय गुणों को अपनाकर मानवता, प्रेम, करुणा, दया और सहनशीतला को आत्मसात करने सीख दी। उन्होंने मन की दूरी पैदा करने वाली दीवार को तोड़ने का संकल्प भी दिलाया। कहा कि इस दौर में दीवार रहित संसार बनाने की जरूरत है। दिल से दिल को जोड़ने वाले पुल बनाए जाएं, ताकि हर इंसान को खुशी मिल सके। अंधेरे में रहने से अच्छा है कि उजाले को प्राप्त करें।
उन्होंने कहा कि चाहे शरीर का बल हो या फिर आर्थिक ताकत का। लालच और अहंकार होने पर सब कुछ नष्ट हो जाता है। लेकिन, जब यह ताकत मानवता और प्रेम के विस्तार में लगाई जाएगी, तो सुखी और समृद्ध समाज का निर्माण होने में देर नहीं लगेगी। इससे पहले जोनल इंचार्ज अशोक कुमार सचदेव सद्गुरु की आराधना के दौरान समागम में उमड़े सैलाब के बीच कई बार भावुक हो गए।
50 हजार से अधिक अनुयायियों के लिए अटूट लंगर
परेड मैदान में सोमवार की रात निरंकारी संत समागम में भक्तों का कारवां यह बताने के लिए काफी था कि मिशन किस कदर एकजुटता का आदर्श प्रस्तुत कर रहा है। इस दौरान 50 हजार से अधिक लोगों के लिए अटूट लंगर का आयोजन किया गया था। करीब दो हजार से अधिक सेवादारों ने पंडाल से लेकर प्रवेश, निकास मार्गों के अलावा भंडार की व्यवस्था संभाली।
इन जिलों से पहुंचे अनुयायी
समागम में प्रयागराज के अलावा प्रतापगढ़, कौशाम्बी, फतेहपुर, रायबरेली, ऊंचाहार, खागा, कानपुर समेत आसपास के इलाकों से अनुयायी पहुंचे। हर जिले के सेवादल के अलग-अलग शिविर लगाए गए थे।