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उत्तर प्रदेश में बिखरे विपक्ष से एक तीसरा मोर्चा खड़ा होने की अटकलें लग रही हैं। इसको लेकर कुछ दलों ने जोर आजमाइश तेज कर दी है। खास बात ये है कि इस मोर्चे में अखिलेश यादव से नाराज चल रहीं पार्टियां शामिल होंगी। आखिर, कैसे यूपी में तीसरे मोर्चे के गठन के आसार बन रहे हैं? कौन-कौन सी पार्टियां इस मोर्चे में शामिल हो सकती हैं? ताजा समीकरण क्या है? इससे किसे फायदा और किसे होगा नुकसान? आइए समझते हैं…
पहले समझिए तीसरे मोर्चे की बात कहां से उठी?
विधानसभा चुनाव के बाद से समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव नाराज चल रहे हैं। उन्होंने एलान किया है कि अब वह अखिलेश के साथ नहीं आएंगे। शिवपाल नए समीकरण बनाने में जुटे हैं। अपनी पार्टी को मजबूत करने के साथ-साथ वह दूसरे छोटे दलों को भी साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव में सपा गठबंधन का हिस्सा रहे ओम प्रकाश राजभर गठबंधन टूटने के बाद अखिलेश से नाराज हैं। उनकी पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज में भगदड़ मची हुई है। एक के बाद एक करीब 300 से ज्यादा राष्ट्रीय, प्रदेशीय और क्षेत्रीय नेता ओपी राजभर का साथ छोड़ चुके हैं। राजभर इस भगदड़ की वजह अखिलेश को बता रहे हैं। राजभर ने तो यहां तक कह दिया है कि वह जल्द ही अखिलेश यादव को सबक सिखाएंगे।
कहा जा रहा है कि भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद भी तीसरे मोर्चे में शामिल हो सकते हैं। चंद्रशेखर ने भी यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव पर धोखा देने का आरोप लगाया था। चंद्रशेखर ने कहा था कि अखिलेश दलितों के खिलाफ हैं। चंद्रशेखर और ओम प्रकाश राजभर के बीच अच्छे संबंध बताए जाते हैं।
तो तीसरे मोर्चे में कौन-कौन होगा शामिल?
इसे समझने के लिए हमने वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद कुमार सिंह से बात की। उन्होंने कहा, ‘अभी लोकसभा चुनाव होने में दो साल बचे हैं। चुनाव के नजदीक आने पर गठबंधन और मोर्चे की बात ज्यादा साफ होती है। हालांकि, अभी जो हालात बने हुए हैं, उसे देखकर यही लगता है कि शिवपाल सिंह यादव, ओम प्रकाश राजभर, चंद्रशेखर एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ सकते हैं। एआईएमआईएम का साथ भी इन्हें मिल सकता है। ये चारों अपने साथ कुछ अन्य छोटी पार्टियों को भी ला सकते हैं।’
प्रमोद कहते हैं, ‘वैसे तो अखिलेश यादव और भाजपा के खिलाफ एकजुट हो रहे इन दलों का बड़ा जनाधार नहीं है, लेकिन जातीय और धार्मिक समीकरण इनके मजबूत होते हैं। चंद्रशेखर के पास दलित वोटर्स हैं। चंद्रशेखर दलित युवाओं में ज्यादा लोकप्रिय हैं। इसी तरह ओम प्रकाश राजभर के पास राजभर, मौर्य व कुछ अन्य पिछड़ी जातियों का वोटबैंक है। शिवपाल सिंह यादव की मदद से कुछ हद तक यादव वोटर्स तीसरे मोर्चे के साथ आ सकते हैं। वहीं, अगर एआईएमआईएम का भी साथ मिल जाए तो बड़े पैमाने पर मुस्लिम इस मोर्चे के साथ जुड़ सकते हैं।’
किसे फायदा और किसे नुकसान?
प्रमोद कहते हैं, ‘अगर एआईएमआईएम, प्रसपा, भीम आर्मी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान अखिलेश यादव को उठाना पड़ेगा। अखिलेश यादव के कोर यादव और मुस्लिम वोटर्स में बिखराव होगा। इसके अलावा अन्य पिछड़ी जातियां भी बिखर जाएंगी। इससे समाजवादी पार्टी को झटका लग सकता है। बहुजन समाज पार्टी को भी तीसरे मोर्चे के चलते नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं, तीसरे मोर्चे से भाजपा को फायदा हो सकता है।’
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उत्तर प्रदेश में बिखरे विपक्ष से एक तीसरा मोर्चा खड़ा होने की अटकलें लग रही हैं। इसको लेकर कुछ दलों ने जोर आजमाइश तेज कर दी है। खास बात ये है कि इस मोर्चे में अखिलेश यादव से नाराज चल रहीं पार्टियां शामिल होंगी। आखिर, कैसे यूपी में तीसरे मोर्चे के गठन के आसार बन रहे हैं? कौन-कौन सी पार्टियां इस मोर्चे में शामिल हो सकती हैं? ताजा समीकरण क्या है? इससे किसे फायदा और किसे होगा नुकसान? आइए समझते हैं…
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