Unnao: 138 साल पुरानी है हिलौली की रामलीला, सांप्रदायिक सौहार्द की मिलती है मिसाल, जानें कैसे हुई थी शुरू

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हिलौली की रामलीला में अभिनय की तैयारी करते युवा

हिलौली की रामलीला में अभिनय की तैयारी करते युवा
– फोटो : अमर उजाला

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उन्नाव जिले में हिलौली गांव की रामलीला 138 साल से सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी है। करवा चौथ से शुरू होने वाला यहां का रामलीला महोत्सव धनतेरस तक चलता है। गांव के हिंदू और मुस्लिम मिलजुल कर आठ दिवसीय आयोजन करते हैं। दोनों वर्ग के युवा खुद ही अभिनय भी करते हैं।
गांव के मुन्ना खां, केवट बनकर श्रीराम की नाव पार लगाते हैं। कैकेई, मंथरा, मंदोदरी का किरदार भी मुस्लिम युवा निभाते हैं। इन दिनों कलाकार रिहर्सल में व्यस्त हैं। मेला समिति में मुस्लिम भी भागीदार हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बनी हिलौली गांव की रामलीला 138 साल से लोगों में सांप्रदायिक सौहार्द का आधार बनी है।
आदर्श रामलीला एवं मेला कमेटी के अध्यक्ष मनोज शुक्ला ने बताया कि गांव के युवा इस रामलीला में अलग-अलग पात्रों का अभियन करते हैं। बताया कि पहले गांव के फिदा हुसैन रामलीला में रावण का अभिनय करते थे। बाद में उनके बेटे  सिराज अहमद और अब उनके बेटे मुन्ना खान केवट का अभिनय करते हैं।

राम का अभिनय गांव के ऋषि मिश्रा और लक्ष्मण नितेश शर्मा बनते हैं। सीता अमित सविता और रावण का किरदार शैलेंद्र दीक्षित निभाते हैं। रियाज अहमद मंथरा के किरदार का रिहर्सल कर रहे हैं। इसी गांव के रहने वाले पूर्व डीएसपी नियाज अहमद रामलीला कमेटी के संरक्षक, और मो. इस्लाम, जमीर खां आदि कमेटी में सदस्य हैं।

ऐसे पड़ी रामलीला की नींव
रामलीला कमेटी के संरक्षक 65 वर्षीयअशोक मिश्रा बताते हैं कि उनके बुजुर्ग बताते थे कि वर्ष 1884  में गांव के कन्हई और मुसाहिब के बीच भूमि पर मालिकाना हक को लेकर विवाद हो गया था। दोनों भूमि को अपनी बता रहे थे। विवाद को सुलझाने के लिए दोनों पक्ष के बड़े-बुजुर्गों ने पंचायत बुलाई।

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काफी देर तक शिकवा-शिकायतों का दौर चला इसके बाद दोनों पक्ष इस जमीन को मेला और रामलीला आयोजन के लिए सुरक्षित करने पर सहमत हो गए और जमीन को लेकर अपनी जिद छोड़ दी। बताते हैं कि मुसाहिब ने ही रावण का पुतला भी बनाया था।

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उन्नाव जिले में हिलौली गांव की रामलीला 138 साल से सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल बनी है। करवा चौथ से शुरू होने वाला यहां का रामलीला महोत्सव धनतेरस तक चलता है। गांव के हिंदू और मुस्लिम मिलजुल कर आठ दिवसीय आयोजन करते हैं। दोनों वर्ग के युवा खुद ही अभिनय भी करते हैं।

गांव के मुन्ना खां, केवट बनकर श्रीराम की नाव पार लगाते हैं। कैकेई, मंथरा, मंदोदरी का किरदार भी मुस्लिम युवा निभाते हैं। इन दिनों कलाकार रिहर्सल में व्यस्त हैं। मेला समिति में मुस्लिम भी भागीदार हैं। गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल बनी हिलौली गांव की रामलीला 138 साल से लोगों में सांप्रदायिक सौहार्द का आधार बनी है।

आदर्श रामलीला एवं मेला कमेटी के अध्यक्ष मनोज शुक्ला ने बताया कि गांव के युवा इस रामलीला में अलग-अलग पात्रों का अभियन करते हैं। बताया कि पहले गांव के फिदा हुसैन रामलीला में रावण का अभिनय करते थे। बाद में उनके बेटे  सिराज अहमद और अब उनके बेटे मुन्ना खान केवट का अभिनय करते हैं।



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