Mohan Bhagwat: भागवत बोले- स्वार्थी बनकर देश को बड़ा नहीं बना सकते, समाज में 10 फीसदी दुष्ट और इतने ही संत

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मोहन भागवत।

मोहन भागवत।
– फोटो : अमर उजाला

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सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि देश को बड़ा बनाना है, तो हमें अच्छा और संस्कारी बनना होगा। स्वार्थी बनकर देश को बड़ा नहीं बनाया जा सकता। साथ में मिलकर एक दूसरे के साथ आगे बढ़ना ही संघ है। कहा कि संघ में घोष वादन का मतलब सबको साथ लेकर चलना है। संघ प्रमुख सोमवार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय में आयोजित संघ के स्वर संगम घोष शिविर के समापन अवसर पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि समाज में दस प्रतिशत लोग ही संत समान होते हैं, और इतनी ही संख्या में दुष्ट लोग भी मिल जाएंगे। बाकी 80 प्रतिशत संख्या ऐसे लोगों की होती है जो अच्छा बनना चाहते हैं इसके  लिए वह अपने सामाजिक परिवेश से सीखते हैं। जिस तरह से समाज से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, उसी तरह संगीत भी हमारी संस्कृति का हिस्सा सनातन से रहा है। अपने देश में युद्ध में भी रस संस्कृति रही होगी, क्योंकि युद्घ में वादन का उल्लेख मिलता है। शंख और बिगुल उद्घोष के प्रतीक माने जाते हैं। इसके अलावा भी कई वाद्यों के नाम आते हैं, जो बीच में विलुप्त हो गए थे। अब वे परंपराएं जीवित हो गई हैं। 

संगमनगरी में संघ करेगा सामाजिक समरसता पर मंथन
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक इस बार प्रयागराज में होने जा रही है। बैठक 16 से 19 अक्तूबर तक होगी। बैठक में सामाजिक समरसता व देश के मौजूदा हालात पर चर्चा होगी। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले समेत अन्य अखिल भारतीय अधिकारी शिरकत करेंगे।

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सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि देश को बड़ा बनाना है, तो हमें अच्छा और संस्कारी बनना होगा। स्वार्थी बनकर देश को बड़ा नहीं बनाया जा सकता। साथ में मिलकर एक दूसरे के साथ आगे बढ़ना ही संघ है। कहा कि संघ में घोष वादन का मतलब सबको साथ लेकर चलना है। संघ प्रमुख सोमवार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय सनातन धर्म विद्यालय में आयोजित संघ के स्वर संगम घोष शिविर के समापन अवसर पर बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि समाज में दस प्रतिशत लोग ही संत समान होते हैं, और इतनी ही संख्या में दुष्ट लोग भी मिल जाएंगे। बाकी 80 प्रतिशत संख्या ऐसे लोगों की होती है जो अच्छा बनना चाहते हैं इसके  लिए वह अपने सामाजिक परिवेश से सीखते हैं। जिस तरह से समाज से बहुत कुछ सीखने को मिलता है, उसी तरह संगीत भी हमारी संस्कृति का हिस्सा सनातन से रहा है। अपने देश में युद्ध में भी रस संस्कृति रही होगी, क्योंकि युद्घ में वादन का उल्लेख मिलता है। शंख और बिगुल उद्घोष के प्रतीक माने जाते हैं। इसके अलावा भी कई वाद्यों के नाम आते हैं, जो बीच में विलुप्त हो गए थे। अब वे परंपराएं जीवित हो गई हैं। 

संगमनगरी में संघ करेगा सामाजिक समरसता पर मंथन

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक इस बार प्रयागराज में होने जा रही है। बैठक 16 से 19 अक्तूबर तक होगी। बैठक में सामाजिक समरसता व देश के मौजूदा हालात पर चर्चा होगी। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले समेत अन्य अखिल भारतीय अधिकारी शिरकत करेंगे।



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