टीम इंडिया अंडर 19: अभावों को रौंदकर दुनिया के फलक पर पहुंची क्रिकेटर फलक नाज

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Prayagraj News :  फलक नाज, क्रिकेटर महिला क्रिकेट टीम अंडर 19।

Prayagraj News : फलक नाज, क्रिकेटर महिला क्रिकेट टीम अंडर 19।
– फोटो : अमर उजाला।

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कहते हैं मेहनत करने से आखिर कौन सा ऐसा मुकाम है, जिसे हासिल नहीं किया जा सकता है। यह कहावत प्रयागराज की रहने वाली 18 वर्षीय फलक नाज पर बिल्कुल सटीक बैठती है। फलक का चयन भारतीय महिला क्रिकेट की अंतरराष्ट्रीय (अंडर-19 टीम) में बतौर तेज गेंदबाज व बल्लेबाज के रूप में हुआ है। बेहद सामान्य घर से आने वाली फलक ने अपनी आर्थिक और सामाजिक बंधनों को तोड़कर अपनी मेहनत के बदौलत यह सफलता हासिल की है और आज हजारों लड़कियों के लिए एक मिसाल बन गई हैं। 

फलक के पिता स्कूल में चपरासी की नौकरी करते हैं, जबकि मां गृहणी हैं। जमुना इंटर कॉलेज के पीछे एक कमरे के घर में रहने वाली फलक की कामयाबी पर आज उनका परिवार खुशियों से फूले नहीं समा रहा है। घर पर टीन की छत और कमरे में बिखरे सामानों की तस्वीर देखकर हैरानी होती है, लेकिन इस परिवार की ही बेटी ने भारतीय महिला क्रिकेट टीम में जगह बनाकर पूरे शहर का मान बढ़ाया है। 

फलक नाज रविवार को भारतीय टीम की ओर से न्यूजीलैंड के खिलाफ मैच खेलेंगी। बेटी के अच्छे प्रदर्शन के लिए पूरा परिवार दो दिन पहले से ही दुआएं कर रहा है। दादा रईस अहमद फलक के बारे में बताते हुए भावुक हो गए। उन्होंने बताया कि उसकी मेहनत को देखकर हमेशा लगता था कि वह एक दिन भारतीय टीम तक पहुंच जाएगी। अंडर-19 टीम में जगह बनाना सफलता की पहली सीढ़ी है, पूरे परिवार की यही ख्वाहिश है कि फलक का चयन भारतीय सीनियर टीम में भी हो और वह भारत का झंडा लेकर अपने देश की ओर से खेलती हुई नजर आए। 

पिता नासिर अहमद ने बताया कि फलक 12 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेल रही है। वह आर्य कन्या इंटर कॉलेज में पढ़ रही थी लेकिन क्रिकेट खेलने के चलते ही उसने अपना नाम आर्य कन्या से कटाकर केएन काटजू इंटर कॉलेज में लिखवा लिया और वहीं मैदान पर कोच अजय यादव से क्रिकेट का प्रशिक्षण भी लेने लगी। वह बताते हैं कि फलक के अंदर क्रिकेट का जुनून देखकर उनके परिवार के लोगों ने भी उसे पूरा सपोर्ट किया। 

वहीं फलक की मां नूरी जीनत ने कहा कि फलक बेटी है यह कभी महसूस ही नहीं हुआ। बेटा-बेटी का फर्क क्या होता है वह नहीं जानती हैं। वह फलक के सपने को अपना सपना मानती हैं। बेटी अच्छा करे और कामयाब हो जाए यही दुआ हरदम वह करती हैं। उसके चयन के बाद से ही घर में खुशियों का माहौल है। 

प्रधानमंत्री के नारे और दंगल फिल्म से मिली प्रेरणा 
फलक के पिता का कहना है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ के नारे से बेहद प्रभावित है। इस नारे से प्रेरणा लेकर ही उन्होंने अपनी बेटी को और हौसला दिया और उससे लगातार एक ही बात कहा कि तुम्हें भारतीय टीम में खेलना है तुम और सबकुछ भूल जाओ। बेटी ने भी अपने सपने को एक चुनौती के रूप में लिया, हर रोज 10-12 घंटे की कड़ी मशक्कत करने लगी। अब बेटी अंडर-19 क्रिकेट टीम में पहुंची है तो हर कोई खुश है। यह एक ऐसा सपना है, जिसे उनका परिवार हर रोज देखा करता है। उन्होंने बताया कि आमिर खान की फिल्म दंगल ने भी उन्हें काफी प्रभावित किया और सिखाया कि बेटी के सपने के लिए किस तरह कोशिशें करनी चाहिए। 

फलक मैदान पर अपना लक्ष्य खुद बनाती हैं 
कोच अजय यादव  ने बताया कि फलक नाज के अंदर क्रिकेट एक जुनून की तरह है। वह मैदान पर आते ही गेंद लेकर गेंदबाजी करना शुरू कर देती है। वह अपना लक्ष्य खुद बनाती है और उसे पूरा करने को एक चुनौती के रूप में लिया करती है। मैदान पर मौजूद हर बल्लेबाज को आउट करना उसका लक्ष्य हुआ करता है। 

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अंतरराष्ट्रीय मुकाबला खेलने वाली संगमनगरी की पहली खिलाड़ी
फलक के कोच अजय ने बताया कि फलक पहली ऐसी महिला खिलाड़ी हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुकाबले के लिए टीम में जगह बनाई है। वह पांच मैचों की इस सीरीज में अच्छा प्रदर्शन करेगी तो जनवरी में होने वाले वर्ल्ड कप की टीम में भी उसे जगह मिल सकती है। वह गेंदबाजों में जसप्रीत बुमरह को बड़ा पसंद करती है और खाली होते ही उनकी गेंदबाजी को देखा करती है। जबकि उसका सपना है कि वह भारतीय महिला क्रिकेटर झूलन गोस्वामी की तरह भारतीय टीम में अपनी गहरी छाप छोड़े। 

फलक ने कहा – खुश हूं लेकिन अब असली इम्तिहान है 
फलक ने अमर उजाला से बातचीत करते हुए कहा कि यहां तक पहुंचकर खुश हूं लेकिन इस उपलब्धि को वह एक चुनौती के रूप में भी ले रही हैं। यह बड़ी प्रतियोगिता है और मुझे मौका मिलता है तो मुझे खुद को साबित भी करना है। मैं अपने पूरे दमखम के साथ अपना प्रदर्शन करूंगी, अब असली इम्तिहान शुरू हुआ है। 

कोच की अहम रही भूमिका 
फलक नाज के अलावा शिप्रा गिरि, शान्या यादव जैसी क्रिकेटरों की प्रतिभा को तराश कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाने में कोच अजय यादव की भूमिका भी अहम रही है। अजय की एकेडमी में ज्यादातर निम्न तबके के घरों की लड़कियां ही क्रिकेट की बारीकियां सीखने आती हैं। अजय इन लड़कियों से फीस भी नहीं लेते हैं। उनका कहना है कि लड़कियां क्रिकेट में बुलंदियों पर जाएं और शहर के साथ देश का नाम रौशन करें यही उनकी फीस है।

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कहते हैं मेहनत करने से आखिर कौन सा ऐसा मुकाम है, जिसे हासिल नहीं किया जा सकता है। यह कहावत प्रयागराज की रहने वाली 18 वर्षीय फलक नाज पर बिल्कुल सटीक बैठती है। फलक का चयन भारतीय महिला क्रिकेट की अंतरराष्ट्रीय (अंडर-19 टीम) में बतौर तेज गेंदबाज व बल्लेबाज के रूप में हुआ है। बेहद सामान्य घर से आने वाली फलक ने अपनी आर्थिक और सामाजिक बंधनों को तोड़कर अपनी मेहनत के बदौलत यह सफलता हासिल की है और आज हजारों लड़कियों के लिए एक मिसाल बन गई हैं। 

फलक के पिता स्कूल में चपरासी की नौकरी करते हैं, जबकि मां गृहणी हैं। जमुना इंटर कॉलेज के पीछे एक कमरे के घर में रहने वाली फलक की कामयाबी पर आज उनका परिवार खुशियों से फूले नहीं समा रहा है। घर पर टीन की छत और कमरे में बिखरे सामानों की तस्वीर देखकर हैरानी होती है, लेकिन इस परिवार की ही बेटी ने भारतीय महिला क्रिकेट टीम में जगह बनाकर पूरे शहर का मान बढ़ाया है। 



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