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सार
बसपा के लिए साल 2002 से गढ़ रही आगरा छावनी क्षेत्र में साल 2012 से 2017 के बीच 6 फीसदी वोट कम हो गए। इसी तरह आगरा ग्रामीण में भी 8 फीसदी वोट बसपा से छिटक गया।
दलितों की राजधानी कह जाने वाले आगरा में बसपा ने 2007 में जो प्रयोग किया, वह 2012 में भी बरकरार रहा, लेकिन 10 साल में बसपा के वोटबैंक में तेजी से गिरावट आई। साल 2014 में मोदी लहर के बाद से बसपा के वोट घट गए। जो विधानसभा क्षेत्र बसपा के गढ़ माने जा रहे थे, उनमें बेस वोट बैंक में ही सेंध लग गई, जिसका असर ये रहा कि महज 5 साल के अंदर बसपा प्रत्याशियों के वोट में 23 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई।
यही वजह रही साल 2012 में बसपा के जिले में 9 सीटों पर जहां 6 विधायक थे, 2017 के चुनाव में खाता भी न खुल पाया। फतेहाबाद, बाह और फतेहपुर सीकरी में बसपा के वोट प्रतिशत में तेजी से गिरावट दर्ज की गई, जबकि फतेहाबाद छोड़कर अन्य जगहों पर प्रत्याशी पुराने चेहरे थे।
बसपा के लिए साल 2002 से गढ़ रही आगरा छावनी क्षेत्र में साल 2012 से 2017 के बीच 6 फीसदी वोट कम हो गए। इसी तरह आगरा ग्रामीण में भी 8 फीसदी वोट बसपा से छिटक गया, जबकि बसपा ने इन दोनों विधानसभा में अपने पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया था। फतेहाबाद में बसपा का वोट 39.7 फीसदी से गिरकर 16.8 फीसदी ही रह गया। यहां पार्टी के बेस वोट बैंक में भी सेंध लगी। देहात की खेरागढ़ सीट पर बसपा के मतों में 5 फीसदी की कमी आई।
शहर में बढ़ न पाया हाथी
आगरा को दलितों की राजधानी बताकर मायावती ने अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत यहीं से की, लेकिन आगरा शहर की तीनों विधानसभा सीटों पर बसपा का वोट प्रतिशत बढ़ नहीं पाया। आगरा उत्तर में 2012 के चुनाव में बसपा ने भाजपा के बागी राजेश अग्रवाल को टिकट दिया तो 22.9 फीसदी वोट मिले, लेकिन पांच साल बाद ज्ञानेंद्र गौतम को उतारा तो वोट प्रतिशत घटकर 21.26 ही रह गया।
यही हाल छावनी सीट का रहा, जहां 6 फीसदी वोट कम हुए। आगरा दक्षिण में 26.10 प्रतिशत वोट की जगह पार्टी को 26.6 फीसदी वोट मिला, लेकिन यहां जीत का अंतर काफी बढ़ गया। इस सीट पर पार्टी के पूर्व विधायक जुल्फिकार भुट्टो चुनाव लड़े थे।
बसपा का वोट प्रतिशत
विधानसभा |
2012 |
2017 |
एत्मादपुर |
33.9% |
31.9% |
आगरा छावनी |
32.4% |
26.5% |
आगरा दक्षिण |
26.10% |
26.6% |
आगरा उत्तर |
22.9% |
21.26% |
आगरा ग्रामीण |
34.84% |
26.04% |
फतेहपुर सीकरी |
33.09% |
24.72% |
फतेहाबाद |
39.70% |
16.8% |
बाह |
39.67% |
30.13% |
कारवां से जुड़े लोगों को सहेज न सकी बसपा
1986 में बसपा से जुड़कर जीवन के 33 साल खपाने वाले दो बार के एमएलसी रहे सुनील चित्तौड़ को 2019 में बसपा से निष्कासित कर दिया गया। सुनील चित्तौड़ बसपा के सदन में नेता और दल के नेता भी रहे तथा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में संगठन का काम संभालते रहे। नीले झंडे के लिए काम करने वाले सुनील चित्तौड़ के मुताबिक बसपा ने भाईचारा कमेटियों के जरिए 18 जातियों को जोड़ा। जब हर जाति के लोग जुड़े तो 2007 का परिणाम आया, लेकिन उसके बाद पार्टी उसे संभाल नहीं सकी। नेताओं के निष्कासन से स्थितियां बिगड़ीं और वोट प्रतिशत लगातार कम होता गया।
पैराशूट, फ्लाईओवर से आए नेताओं ने किया नुकसान
1980 से कांशीराम के साथ गली-गली साइकिल चलाकर बहुजन मूवमेंट से जुड़े धर्मप्रकाश भारतीय बसपा में दो बार एमएलसी रहे और देश के 10 राज्यों में संगठन के प्रभारी रहे। भारतीय के मुताबिक फ्लाईओवर, पैराशूट से आए नेताओं ने मिशन का नुकसान किया। नए रेडीमेड लीडर समाज को जोड़ने में मेहनत नहीं कर सके। कार्यकर्ता भी संतुष्ट नहीं हुए।
वहीं पुराने कर्मठ नेताओं के निष्कासन से अन्य कार्यकर्ताओं में निराशा छा गई। कैडर बेस के लोगों के जाने से उनके मनोबल पर असर पड़ा। इस बीच विरोधी दलों के दुष्प्रचार का जवाब बसपा नहीं दे पाई। जो फ्लोटिंग वोटर है, उसने दूसरे दलों में अपनी जगह तलाशी। बसपा से 2015 में सभी पदों से जिम्मेदारी मुक्त होने के बाद धर्मप्रकाश भारतीय बहुजन मूवमेंट के लिए प्रत्याशियों के साथ संपर्क में जुटे हैं।
विस्तार
दलितों की राजधानी कह जाने वाले आगरा में बसपा ने 2007 में जो प्रयोग किया, वह 2012 में भी बरकरार रहा, लेकिन 10 साल में बसपा के वोटबैंक में तेजी से गिरावट आई। साल 2014 में मोदी लहर के बाद से बसपा के वोट घट गए। जो विधानसभा क्षेत्र बसपा के गढ़ माने जा रहे थे, उनमें बेस वोट बैंक में ही सेंध लग गई, जिसका असर ये रहा कि महज 5 साल के अंदर बसपा प्रत्याशियों के वोट में 23 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई।
यही वजह रही साल 2012 में बसपा के जिले में 9 सीटों पर जहां 6 विधायक थे, 2017 के चुनाव में खाता भी न खुल पाया। फतेहाबाद, बाह और फतेहपुर सीकरी में बसपा के वोट प्रतिशत में तेजी से गिरावट दर्ज की गई, जबकि फतेहाबाद छोड़कर अन्य जगहों पर प्रत्याशी पुराने चेहरे थे।
बसपा के लिए साल 2002 से गढ़ रही आगरा छावनी क्षेत्र में साल 2012 से 2017 के बीच 6 फीसदी वोट कम हो गए। इसी तरह आगरा ग्रामीण में भी 8 फीसदी वोट बसपा से छिटक गया, जबकि बसपा ने इन दोनों विधानसभा में अपने पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया था। फतेहाबाद में बसपा का वोट 39.7 फीसदी से गिरकर 16.8 फीसदी ही रह गया। यहां पार्टी के बेस वोट बैंक में भी सेंध लगी। देहात की खेरागढ़ सीट पर बसपा के मतों में 5 फीसदी की कमी आई।
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