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बरेली को नाथ नगरी कहा जाता है। शहर में सात नाथ मंदिर (शिव मंदिर) हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर नाथ मंदिरों में कार्यक्रमों का आयोजन होता है। इस बार मुख्य आयोजन बाबा त्रिवटीनात मंदिर में होगा। शहर का प्राचीन बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर लगभग छह सौ वर्ष पुराना है। यह देश-विदेश में रहने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी है। भक्तों का विश्वास है कि यहां सभी के मनोरथ पूर्ण होते हैं। महाशिवरात्रि पर हजारों भक्तों की भीड़ आने का अनुमान है।
त्रिवटीनाथ मंदिर का इतिहास
छह सौ साल पहले यहां घना जंगल हुआ करता था। आम आदमी यहां नहीं आते थे। यदा-कदा अपने पशुओं को लेकर चरवाहे यहां आ जाते थे। एक बार एक चरवाहा अपने पशु चराने आया और और थकान के कारण यहां स्थित वट वृक्ष के नीचे विश्राम करते हुए गहरी नींद में सो गया। उसके सपने में महादेव ने उसको दर्शन दिए और कहा कि- उठ, मैं इसी वट वृक्ष के नीचे विराजमान हूं।
चरवाहे की नींद खुली तो उसे वहीं वट वृक्ष के नीचे विशाल शिवलिंग मिला। चरवाहे ने महादेव को नमन किया और शहर आकर लोगों को पूरी बात बताई। इसके बाद यहां दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हुआ, जो कालांतर में बढ़ता गया। लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होने से इस स्थल की मान्यता भी बढ़ती गई।
विशेषता :
यहां तीन वट वृक्ष के मध्य में भगवान शंकर लिंग के रूप में विराजमान हैं। इसी के चलते इनका नाम भी बाबा त्रिवटीनाथ पड़ा। पुजारी पंडित रविंद्र शर्मा ने बताया कि बाबा का यह पावन स्वरूप शिवभक्तों के हृदय में अंकित है। आज यह धर्म स्थल शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।
भव्यता :
बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर सेवा समिति इसका संचालन करती है। मीडिया प्रभारी संजीव अवतार अग्रवाल ने बताया कि परिसर में भव्य शिवालय, रामालय, नवग्रह मंदिर, बृहस्पतिदेव स्थान, नंदी वन, मनौती स्थल, यज्ञशाला आदि का निर्माण कराया गया है। बाहरी हिस्से में दो बड़े कथा स्थल भी हैं। पिछले वर्ष ही मंदिर के प्रवेश द्वार पर महादेव के दिव्य स्वरूप की स्थापना कराई गई है।
महाशिवरात्रि का पर्व इस बार 18 फरवरी को है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इसी दिन महादेव शिवलिंग के स्वरूप में प्रकट हुए थे। इस कारण हर साल फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को यह पर्व मनाया जाता है। 30 साल बाद इस बार दुर्लभ संयोग में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाएगा।
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