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– फोटो : amar ujala
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नगर निकाय चुनाव में पिछड़ी जाति को आरक्षण देने के संबंध में उत्तर प्रदेश राज्य स्थानीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में कई खामियों का जिक्र किया गया है। आयोग ने आरक्षण प्रक्रिया को फूलप्रूफ बनाने के लिए मौजूदा कानून में बदलाव के साथ कई महत्वपूर्ण सिफारिश की गईं हैं। 350 पेज की रिपोर्ट में ऐसी कई ऐसी सीटों का जिक्र है, जहां 30 साल से आरक्षण बदला ही नहीं गया। इन सीटों को एक ही जाति या श्रेणी के लिए आरक्षित किए जाने का खुलासा किया गया है।
सूत्रों के मुताबिक आयोग द्वारा 2002 से 2017 की अवधि में कराये गए निकायों चुनावों में आरक्षण के लिए अपनाई गई प्रक्रिया का विश्लेषण किया गया है। इसमें आयोग ने पाया कि नगर निकाय अधिनियम में किए गए प्रावधान के मुताबिक मौजूदा चुनाव के लिए कराए गए रैपिड सर्वे और चक्रानुक्रम आरक्षण प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। आयोग ने निकाय चुनाव की आरक्षण प्रक्रिया को फूलफ्रूफ बनाने के लिए मौजूदा कानून में बदलाव की भी सिफारिश की है।
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आयोग की रिपोर्ट में सबसे अधिक जोर चक्रानुक्रम आरक्षण प्रक्रिया के पालन पर जोर दिया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चक्रानुक्रम व्यवस्था के तहत नियमानुसार क्रमशः अनसूचित जनजाति महिला, अनुसूचित जन जाति, अनुसूचित जाति महिला, अनूसचित जाति, पिछड़ा वर्ग महिला, पिछड़ा वर्ग और अंत में अनारक्षित महिला व अनारक्षित श्रेणी के लिए सीटों के आरक्षण देने का प्रावधान है, लेकिन पिछले 30 वर्षों के दौरान इस प्रक्रिया का पालन सही तरीके नहीं किए जाने की भी बात कही गई है।
आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे के दौरान कई जिलों में यह भी देखने को मिला है कि कई ऐसी जातियां हैं, जिनकी आबादी अधिक होने के बाद भी उस जाति को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है। आयोग ने अपनी सिफारिश में इन विसंगतियों की तरफ ध्यान देने और उन्हें दूर करने के लिए सुझाव दिए हैं। 1995 के बाद से हुए शहरी निकायों के चुनाव में अनारक्षित सीटों पर पिछड़ा वर्ग के लोगों के जीतकर आने के आंकड़ों का भी विश्लेषण किया गया है।
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