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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि कानूनी उपबंध नहीं है तो कोर्ट उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन का समादेश जारी नहीं कर सकती। कोर्ट ने तमाम न्यायिक फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि कानून बनाने का कार्य विधायिका का है। कोर्ट को विधायी कार्य करने का अधिकार नहीं है। इसलिए कानूनन पुनर्मूल्यांकन नहीं किया जा सकता तो कोर्ट ऐसा निर्देश नहीं दे सकती। ऐसा नियम होने की दशा में कोर्ट अनुपालन करने का निर्देश दे सकती है।
राज्य सरकार के अधिवक्ता ने कहा कि इंटरमीडिएट एक्ट में उतर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन का कोई उपबंध नहीं किया गया है और अंशुमान सिंह केस इस मामले में लागू नहीं होगा। इस पर कोर्ट ने इंटरमीडिएट परीक्षा की उत्तर पुस्तिका के पुनर्मूल्यांकन की मांग को लेकर दाखिल याचिका खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने रश्मि की याचिका पर दिया है।
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