Allahabad High Court : नोएडा में फ्लैट खरीदार को हाईकोर्ट ने नहीं दी राहत

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Sat, 19 Feb 2022 12:00 AM IST

सार

हाईकोर्ट ने कहा कि क्योंकि, मामला मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 के अंतर्गत है। याची ने जय प्रकाश एसोसिएट लिमिटेड को पार्टी बनाया है। याची का तर्क था कि उसने फ्लैट के लिए विपक्षी पक्ष से सौदा किया था।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्धनगर के फ्लैट खरीददार को राहत देने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मामले में गौतमबुद्धनगर की वाणिज्यिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश कानून के अनुसार है और उसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हसमुख प्रजापति की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।

हाईकोर्ट ने कहा कि क्योंकि, मामला मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 के अंतर्गत है। याची ने जय प्रकाश एसोसिएट लिमिटेड को पार्टी बनाया है। याची का तर्क था कि उसने फ्लैट के लिए विपक्षी पक्ष से सौदा किया था। सौदे की दो तिहाई रकम भी जमा कर दी। लेकिन विपछी पक्ष ने तय समय में फ्लैट नहीं दिया। उसने फ्लैट की रकम लोन से ली थी, जिस पर 13 फीसदी की दर से उसे व्याज देना पड़ा।

ब्याज की रकम पाने के लिए उसने समझौते के तहत दिल्ली में स्थापित मध्यस्थता सीट के समक्ष अभ्यावेदन किया। मध्यस्थ सीट ने याची के पक्ष में अवार्ड घोषित कर दिया। इस पर विपक्षी पक्ष ने गौतमबुद्धनगर की जिला अदालत के समक्ष मध्यस्था सीट के आदेश को चुनौती दी तो जिला अदालत की वाणिज्यिकीय कोर्ट ने याची ने मामले की सुनवाई के लिए नोटिस जारी कर दी।

याची ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए याची की याचिका को रद्द कर दिया। कहा कि गौतमबुद्धनगर की वाणिज्यिकीय कोर्ट को इस संबंध में आदेश पारित करने का अधिकार है।

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विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतमबुद्धनगर के फ्लैट खरीददार को राहत देने से इंकार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मामले में गौतमबुद्धनगर की वाणिज्यिक न्यायालय द्वारा पारित आदेश कानून के अनुसार है और उसमें हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। यह आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हसमुख प्रजापति की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।

हाईकोर्ट ने कहा कि क्योंकि, मामला मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 के अंतर्गत है। याची ने जय प्रकाश एसोसिएट लिमिटेड को पार्टी बनाया है। याची का तर्क था कि उसने फ्लैट के लिए विपक्षी पक्ष से सौदा किया था। सौदे की दो तिहाई रकम भी जमा कर दी। लेकिन विपछी पक्ष ने तय समय में फ्लैट नहीं दिया। उसने फ्लैट की रकम लोन से ली थी, जिस पर 13 फीसदी की दर से उसे व्याज देना पड़ा।

ब्याज की रकम पाने के लिए उसने समझौते के तहत दिल्ली में स्थापित मध्यस्थता सीट के समक्ष अभ्यावेदन किया। मध्यस्थ सीट ने याची के पक्ष में अवार्ड घोषित कर दिया। इस पर विपक्षी पक्ष ने गौतमबुद्धनगर की जिला अदालत के समक्ष मध्यस्था सीट के आदेश को चुनौती दी तो जिला अदालत की वाणिज्यिकीय कोर्ट ने याची ने मामले की सुनवाई के लिए नोटिस जारी कर दी।

याची ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए याची की याचिका को रद्द कर दिया। कहा कि गौतमबुद्धनगर की वाणिज्यिकीय कोर्ट को इस संबंध में आदेश पारित करने का अधिकार है।

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