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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 4 और 5 के प्रावधान भारतीय दंड संहिता के तहत किए गए अपराधों में लागू नहीं होते। यह प्रावधान वहां लागू होते हैं जहां एनआई एक्ट के तहत अपराध करने की शिकायत की गई है। हाईकोर्ट ने 5000 रुपये के हर्जाने के साथ याचिकाकर्ताओं की याचिका खारिज कर दी।
यह आदेश डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने मोहर पाल व अन्य की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 4 व 5 के प्रावधान उस प्रक्रिया से संबंधित हैं, जहां विशेष अधिनियम के तहत अपराध किया जाता है।
याचिकाकर्ताओं ने धारा 420 ए, 406 ए, 120 बी के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की प्रार्थना की थी। प्राथमिकी में आरोप है कि याचिकाकर्ता मोहर पाल को वादी मुकदमा के बैंक से 2,03,280 रुपये का बैंक लेन देन किया गया। बैंक खाते के माध्यम से पैसे दिए जाने के बावजूद वादी मुकदमा को कोई मशीन नहीं दी गई थी। इसलिए शिकायतकर्ता ने धारा 420 ए, 406 ए व 120 बी आईपीसी के तहत याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अपराध करने का आरोप लगाया है।
22 जून 2021 को पुलिस अधीक्षक पीलीभीत को पहली सूचना दी गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए वादी मुकदमा ने अदालत का रुख किया, जिसमें कोर्ट ने जांच का निर्देश दिया। क्योंकि यह प्रथम दृष्टया पाया गया कि आरोपी द्वारा संज्ञेय अपराध किया गया है। याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा कहा गया कि कथित घटना 25 अगस्त 2020 को हुई थी। लेकिन प्राथमिकी 25 फरवरी 2022 को बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के दर्ज की गई थी।
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