Allahabad High Court : सीएए-एनआरसी का विरोध करने वाले को हाईकोर्ट से राहत, जमानत पर रिहा करने का आदेश

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– फोटो : istock

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर में सीएए और एनआरसी का विरोध करने के मामले में 26 महीने से जेल में बंद आरोपी को जमानत रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने याची को निजी मुचलके और दो प्रतिभूतियों पर रिहा करने का आदेश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने हसीन उर्फ इशू की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया।

मामले में याची 22 अगस्त 2020 से जेल में बंद था। उसके खिलाफ 20 दिसंबर 2019 को कानपुर नगर में नागरिक संशोधन अधिनियम के कार्यान्वयन के खिलाफ हुए हंगामे में भाग लिया, जिसमें हमलावरों और पुलिस की अंधाधुंध फायरिंग में लोगों की जान चली गई।

मामले में याची के खिलाफ 147, 148, 149, 332, 353, 336, 307, 188, 427, 34, 109, 302, 120बी, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम की धारा 3/4 आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा सात और शस्त्र अधिनियम के तहत बाबूपुरवा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। याची की ओर से कहा गया कि मामले में उसे झूंठा फंसाया गया है। उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। हालांकि, सरकारी अधिवक्ता ने जमानत का विरोध किया लेकिन कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए जमानत पर छोड़ने का आदेश दिया।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर में सीएए और एनआरसी का विरोध करने के मामले में 26 महीने से जेल में बंद आरोपी को जमानत रिहा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने याची को निजी मुचलके और दो प्रतिभूतियों पर रिहा करने का आदेश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष माथुर ने हसीन उर्फ इशू की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया।

मामले में याची 22 अगस्त 2020 से जेल में बंद था। उसके खिलाफ 20 दिसंबर 2019 को कानपुर नगर में नागरिक संशोधन अधिनियम के कार्यान्वयन के खिलाफ हुए हंगामे में भाग लिया, जिसमें हमलावरों और पुलिस की अंधाधुंध फायरिंग में लोगों की जान चली गई।

मामले में याची के खिलाफ 147, 148, 149, 332, 353, 336, 307, 188, 427, 34, 109, 302, 120बी, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम की धारा 3/4 आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा सात और शस्त्र अधिनियम के तहत बाबूपुरवा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। याची की ओर से कहा गया कि मामले में उसे झूंठा फंसाया गया है। उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है। हालांकि, सरकारी अधिवक्ता ने जमानत का विरोध किया लेकिन कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए जमानत पर छोड़ने का आदेश दिया।



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