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देश के विभिन्न हिस्सों की जेलों में बंद गैंगस्टर, माफिया और दूसरे आपराधिक तत्वों के कौन हैं सबसे बड़े मददगार? किसके दम पर चलती है जेलों में बंद ‘अतीक’ जैसे लोगों की माफियागिरी? इस कड़ी में ‘कारागार’ स्टाफ का दामन ‘दागदार’ होने से बच नहीं सका है। देश में ऐसे अनेकों उदाहरण देखने को मिल जाते हैं कि जेलों में बंद गैंगस्टर या माफिया तक बिना किसी रोक टोक के मोबाइल फोन पहुंच रहे हैं। जेल में भले ही जैमर या सीसीटीवी लगाने की बात कही जाती है, मगर माफिया से जुड़े लोगों की हरकतों पर रोक नहीं लग रही। गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की 242वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि कारागृह में मोबाइल व दूसरी प्रतिबंधित वस्तुएं पहुंचाने में जेल स्टाफ के अलावा वहां स्थित अस्पताल के कर्मी भी शामिल रहे हैं।
माफिया से लेकर राजनेता बनने तक का सफर तय कर चुके जेल में बंद अतीक अहमद के बेटे और उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी असद को यूपी एसटीएफ ने एक एनकाउंटर में मार गिराया। असद का सहयोगी, गुलाम भी झांसी में हुए एनकाउंटर में मारा गया। दोनों पर पांच लाख रुपये का इनाम घोषित था। इनके पास से विदेशी हथियार बरामद हुए हैं। अतीक अहमद और उसके भाई का जेल से नेटवर्क चलता रहा है, इस बाबत पुलिस के पास कई तरह के पुख्ता सबूत रहे हैं। गुजरात की साबरमती जेल में बंद अतीक को जब पेशी के लिए प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में लाया जाता है, तो उसने पुलिस के घेरे में कहा, मैंने वहां (जेल के अंदर) से किसी को फोन नहीं किया। जेल में तो जैमर लगाए गए हैं।
जेल से ही अपने गुर्गों को दिशा-निर्देश देता था अतीक
इससे पहले भी अतीक को लेकर ऐसी खबरें आ चुकी हैं कि जेल से ही उसकी माफियागिरी चलती रही है। जेल में बैठकर रंगदारी वसूलना या किसी को रास्ते से हटाना, ऐसे मामले अनेक राज्यों की जेलों में देखने को मिले हैं। गुजरात की जेल में भी अतीक का दरबार लगता था। उसे जेल में विशेष सुविधाएं मुहैया कराई गई थी। जून 2019 को अतीक अहमद को प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल से साबरमती जेल में शिफ्ट किया गया था। आरोप है कि वहां पर अतीक अहमद दो-तीन मोबाइल फोन इस्तेमाल करता था। जेल से ही वह अपने गुर्गों को दिशा-निर्देश देता था। लोगों को धमकाने या रंगदारी वसूलने जैसी बातें फोन पर ही होती थीं। उसके ख़िलाफ गवाहों को दबाने या धमकी देकर डराने जैसे कई मामले सामने आए थे। जेल में बैठकर शूटरों को टॉस्क दिया जाता रहा है। ऐसे ही एक मामले में यूपी की बरेली जेल के छह कर्मियों को निलंबित कर दिया गया था।
हत्या से लेकर ड्रग की सप्लाई तक
देश-विदेश में बैठे गैंगस्टर, भारतीय जेलों में बंद अपने गुर्गों से जो काम चाहते हैं, वे करा लेते हैं। किसी की हत्या करनी है, ड्रग की सप्लाई देनी है, हथियार पहुंचाने हैं या अवैध शराब के ठेकेदारों और माइनिंग माफिया से उगाही करनी है, ये सब काम जेल में बैठे-बैठे हो जाते हैं। राज्यों की जेलों में बंद गैंग अभी भी अपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। दूसरे मुल्कों में बैठे गैंगस्टर की भारतीय जेलों में सेंध और सलाखों के पीछे मौजूद उनकी टोली तक मोबाइल फोन, कौन पहुंचा रहा है, अब इसका खुलासा हुआ है। कारागृह में मोबाइल व दूसरी प्रतिबंधित वस्तुएं पहुंचाने में जेल स्टाफ के अलावा वहां स्थित अस्पताल के कर्मी भी शामिल रहे हैं। संसदीय स्थायी समिति की 242वीं रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-23 में जेलों के आधुनिकीकरण के लिए 400 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया। बाद में रिवाइज एस्टीमेट पर सौ करोड़ रुपये कम कर दिए गए, क्योंकि तकनीकी समस्या के कारण फंड समय पर रिलीज नहीं हो सका।
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कैदियों तक सामान पहुंचाने में मेडिकल कर्मी भी शामिल
संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि इस राशि को वित्त वर्ष की समाप्ति से पहले ही जारी कर दिया जाए। केंद्रीय गृह मंत्रालय इस बाबत राज्यों को एक एडवायजरी जारी करे कि जेलों में जैमर लगवाने, डोर फ्रेम, हैंड हैल्ड मेटल डिटेक्टर, बैगेज स्केनर, बॉडी वॉर्न कैमरा, सीसीटीवी सर्विलांस सिस्टम और कंप्यूटर आदि खरीदने के लिए पर्याप्त फंड मुहैया कराए। इससे जेल में नशे एवं दूसरे अपराधों पर नजर रखने में मदद मिलेगी। राज्य यह भी सुनिश्चित करें कि जेल के भीतर से ही वीडियो कॉंफ्रेंसिंग के जरिए क्रिमिनल की पेशी कराई जाए। संसदीय समिति ने नोट किया है कि कुछ केसों में जेल का स्टाफ, जिसमें वहां के अस्पताल में कार्यरत मेडिकल पर्सनल भी शामिल हैं, कैदियों के लिए मोबाइल फोन एवं दूसरी प्रतिबंधित वस्तुओं का इंतजाम करते हैं। यह सब इसलिए भी संभव हो पाता है, क्योंकि जेल में तैनात स्टाफ, लंबे समय से वहीं पर बना रहता है। इसके चलते कैदियों और जेल स्टाफ के बीच सांठ-गांठ हो जाती है। केंद्रीय गृह मंत्रालय, ऐसे सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी करे कि वहां पर तैनात स्टाफ का तबादला एक नियमित अंतराल पर होता रहे।
एनआईए की जांच में हुए कई खुलासे
एनआईए ने गत 23 फरवरी को खालिस्तानी विचारधारा के समर्थकों, आतंकियों, ड्रग स्मगलरों और गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के सहयोगियों के ठिकानों पर राष्ट्रव्यापी रेड की थी। इसमें छह आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया था। जेलों में बंद लोकल गैंगस्टर, विदेशों में बैठे अपने आकाओं के इशारे पर काम करते थे। इसमें धन जुटाना या किसी की हत्या करना भी शामिल था। एनआईए की पूछताछ में सामने आया था कि कई गैंगस्टर, भारत से बाहर निकल कर पाकिस्तान, मलेशिया, फिलीपीन, कनाडा और आस्ट्रेलिया से आतंकी व आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे। इसके लिए वे भारतीय जेलों में बंद अपने सहयोगियों की मदद लेते थे। जेलों के भीतर से टारगेट किलिंग और फंड जुटाने का काम होता था। हथियारों और ड्रग की स्मगलिंग, हवाला व उगाही जैसे धंधे जेलों से ही अंजाम दिए जाते थे।
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