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इसलिए दी जाती है कुर्बानी
रमजान के 70 दिन बाद बकरीद का त्योहार मनाया जाता है। कहा जाता है कि अल्लाह ने पैगंबर हजरत इब्राहिम से उनकी सबसे प्यारी चीज का त्याग करने के लिए कहा था। जिस पर उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। वह बेटे की कुर्बानी देने ही जा रहे थे कि अल्लाह ने उनके बेटे को बकरे के रूप में बदल दिया। तभी से कुर्बानी देने की प्रथा चली आ रही है। इस बार 10 जुलाई को ईद-उल-अजहा का त्योहार मनाया जाएगा। इस दिन कुर्बानी के लिए लोग पशु पैठ से असे-अलग कीमत के पशु खरीद रहे हैं।
जाकिर कॉलोनी निवासी शादाब कुरैशी ने बताया कि वह कुर्बानी के लिए भैंसें पालते हैं। पाकिस्तानी नस्ल का सुल्तान बिल्कुल अलग है। साढ़े 3 साल की उम्र में करीब 6 सौ किग्रा. वजन, आंखें कंचीली और चारों पैर सफेद हैं। खूबसूरत दिखने के लिए मालिक ने सुल्तान के चारों पैरों में घुंघरू और पूरे शरीर पर सरसों के तेल की मालिश कर रखी थी। मालिक ने बताया कि उसकी खुराक के लिए प्रतिमाह 30-35 हजार रुपये खर्च होते हैं। वह दूध, देशी घी, चने रोज खाता है।
बकरों का रखते हैं खास ख्याल
पुराने कमेला रोड शाही महल निवासी जावेद अंसारी ने बताया कि उन्होंने दो बकरों को बड़े शौक से पाला है। दोनों की उम्र दो साल है, जबकि बाबा व नवाब में अलग-अलग 160 से 170 किग्रा. के करीब वजन है।
साढ़े 3-3 लाख की कीमत के दोनों बकरों को दूध, चना, दही, मट्ठा देते हैं। इसके अलावा दोनों का खून भी समय-समय पर लैब में टेस्ट कराया है। खून गाढ़ा हुआ तो बकरों को भी ह्दयघात हो जाता है। ऐसे में दोनों बकरों का बेहद खास ख्याल रखा जाता है।
स्वस्थ जानवर की ही कुर्बानी जायज
बकरा, भैंस हो या कोई अन्य कुर्बानी का जानवर हो, सभी पूूरी तरह स्वस्थ होने चाहिए। बीमारी या हड्डी टूटे हुए जानवर की कुर्बानी नहीं होगी। – मशहूदुर्रहमान शाहीन जमाली चतुर्वेदी, इस्लामिक स्कॉलर
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