Exclusive: मंदिर में शव रखकर कान्हा से लेते हैं अंतिम विदाई, 1957 में पंचों के निर्णय पर बना था गोपाल मंदिर

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शव को गोपाल मंदिर ले जाते रिफ्यूजी कॉलोनी के लोग।

शव को गोपाल मंदिर ले जाते रिफ्यूजी कॉलोनी के लोग।
– फोटो : अमर उजाला।

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जड़ों से उखड़कर कई कोस दूर आकर बसे मोहद्दीपुर स्थित रिफ्यूजी कॉलोनी के लोग अपनी संस्कृति से आज भी उसी शिद्दत से जुड़े हैं। परंपराओं का निर्वहन वैसे ही कर रहे हैं जैसे अपने मूल निवास स्थान पर करते थे। आज भी यदि इनके परिवार में कोई अपनी देह त्यागता है तो यह लोग उसके शरीर को गोपाल मंदिर में ले जाकर रखते हैं। कान्हा (श्रीकृष्ण भगवान) से इस आस में अंतिम विदाई लेते हैं कि गतात्मा को स्वर्ग में स्थान मिलेगा। इसके बाद शवयात्रा शुरू होती है।
 
देश की आजादी के बाद पाकिस्तान से आए 50 से 60 परिवारों ने गोरखपुर में शरण ली। ये लोग पहले से रह रहे रिश्तेदारों के पास ठौर-ठिकाना ढूंढने आए थे। साल 1951-52 में सरकार ने ऐसे लोगों के रहने के लिए मोहद्दीपुर में एक कॉलोनी बनाई, जिसका नाम रिफ्यूजी कॉलोनी रखा गया। अब इस कॉलोनी को रामनगर कॉलोनी कहा जाने लगा है।

इस कॉलोनी में रहने वाले ज्यादातर लोग सिख समाज से संबंध रखते हैं। इनके पुरखे भगवान श्रीकृष्ण को ईष्टदेव मानते हैं। पाकिस्तान में भी गुरुद्वारे के बाद श्रीकृष्ण मंदिर में ही शव ले जाते थे और अंतिम विदाई दिलाते थे। इसी रवायत को यहां भी निभा रहे हैं। कॉलोनी के जगदीश आनंद बताते हैं कि श्रीकृष्ण भगवान में हमारी आस्था है। ऐसी मान्यता है कि गोपाल मंदिर में शव को भगवान से विदाई लेने के बाद स्वर्ग में स्थान मिलता है। पिताजी बताते हैं कि कई पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है।

 

कॉलोनी में रहने वाले 92 वर्ष के मक्खनलाल आनंद बताते हैं कि साल 1957 में पंचायत बैठी और पंचों ने निर्णय लिया कि कृष्ण भगवान का एक मंदिर बनाया जाएगा। पुरखों की परंपरा का निर्वहन उसी तरह किया जाएगा, जैसा कि पाकिस्तान में किया जाता था। इसके बाद राधा-कृष्ण की मूर्ति रखकर गोपाल मंदिर बनाया गया। इसे बाद में भव्य रूप दिया गया।

श्रीश्री गोपाल मंदिर समिति के अध्यक्ष दीपक कक्कड़ ने कहा कि पुरखों के जमाने से परंपरा चली आ रही है। कॉलोनी के लोग भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं। गोपाल मंदिर में जाकर शीश नवाते हैं। मरने के बाद शव को मंदिर में ले जाते हैं। इस दौरान कॉलोनी के सभी लोग साथ में होते हैं। मंदिर में दो मिनट शव को रखा जाता है। मंदिर के पंडित मंत्रोच्चार करके गंगाजल का छिड़काव करते हैं। मृत आत्मा का स्वर्ग में स्थान मिले, ऐसी कामना करके शवयात्रा शुरू होती है।

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जड़ों से उखड़कर कई कोस दूर आकर बसे मोहद्दीपुर स्थित रिफ्यूजी कॉलोनी के लोग अपनी संस्कृति से आज भी उसी शिद्दत से जुड़े हैं। परंपराओं का निर्वहन वैसे ही कर रहे हैं जैसे अपने मूल निवास स्थान पर करते थे। आज भी यदि इनके परिवार में कोई अपनी देह त्यागता है तो यह लोग उसके शरीर को गोपाल मंदिर में ले जाकर रखते हैं। कान्हा (श्रीकृष्ण भगवान) से इस आस में अंतिम विदाई लेते हैं कि गतात्मा को स्वर्ग में स्थान मिलेगा। इसके बाद शवयात्रा शुरू होती है।

 

देश की आजादी के बाद पाकिस्तान से आए 50 से 60 परिवारों ने गोरखपुर में शरण ली। ये लोग पहले से रह रहे रिश्तेदारों के पास ठौर-ठिकाना ढूंढने आए थे। साल 1951-52 में सरकार ने ऐसे लोगों के रहने के लिए मोहद्दीपुर में एक कॉलोनी बनाई, जिसका नाम रिफ्यूजी कॉलोनी रखा गया। अब इस कॉलोनी को रामनगर कॉलोनी कहा जाने लगा है।

इस कॉलोनी में रहने वाले ज्यादातर लोग सिख समाज से संबंध रखते हैं। इनके पुरखे भगवान श्रीकृष्ण को ईष्टदेव मानते हैं। पाकिस्तान में भी गुरुद्वारे के बाद श्रीकृष्ण मंदिर में ही शव ले जाते थे और अंतिम विदाई दिलाते थे। इसी रवायत को यहां भी निभा रहे हैं। कॉलोनी के जगदीश आनंद बताते हैं कि श्रीकृष्ण भगवान में हमारी आस्था है। ऐसी मान्यता है कि गोपाल मंदिर में शव को भगवान से विदाई लेने के बाद स्वर्ग में स्थान मिलता है। पिताजी बताते हैं कि कई पीढ़ियों से यह परंपरा चली आ रही है।

 



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