कासगंज की पटियाली तहसील के गांव बरौना के अस्तित्व पर संकट गहराता जा रहा है। गंगा की बेकाबू धारा लगातार कटान कर रही है। इसे बांधने के लिए सिंचाई विभाग की कोशिशें जारी हैं। ग्रामीण और सिंचाई विभाग की टीमें इस कवायद में दिन रात जुटी हुई हैं। शनिवार को सिंचाई विभाग के प्रमुख अभियंता बाढ़ लखनऊ से यहां पहुंचे। उन्होंने अधीक्षण अभियंता, अधिशासी अभियंता सहित अन्य अधिकारियों को कार्य में तेजी लाने के निर्देश दिए। उन्होंने अब तक किए गए कार्यों की प्रगति पूछी और समीक्षा की।
प्रमुख अभियंता एनसी उपाध्याय, अधीक्षण अभियंता सुप्रभात सिंह के साथ बरौना गांव पहुंचे। उन्होंने पूरे गांव का भ्रमण करके स्थिति का जायजा लिया। प्रमुख अभियंता ने स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिया कि वह कटान रोधी कार्यों को निरंतर जारी रखें। जिससे कटान को रोका जा सके। गांव में ग्रामीणों से भी उन्होंने बातचीत की। ग्रामीणों ने उनके समक्ष पत्थर की ठोकरें बनवाने की भी मांग की। प्रमुख अभियंता ने कहा कि कटान रोधी कार्य होने से गंगा की धारा में परिवर्तन हो सकता है।
शनिवार को गांव में अफरातफरी का माहौल बना रहा। ग्रामीण अपने जरूरी सामानों को हटा रहे थे। कोई राहत शिविर में जा रहा था तो कोई आसपास रिश्तेदारी में। बल्ली पाइलिंग का कार्य शुक्रवार की शाम से ही शुरू हो गया था। कटान प्रभावित इलाकों में डंपर से मिट्टी डाली गई। सैंड बैग भरे गए। पूरी रात बल्ली पाइलिंग का काम चलता रहा। शनिवार को भी पूरे दिन बल्ली पाइलिंग के काम का सिलसिला जारी रहा।
जिन इलाकों में बल्ली पाइलिंग की गई, वहां पाइलिंग के पीछे कटान हो रहा था। अभी और कटान होने की आशंका बनी हुई है। एक दिन पूर्व सड़क का हिस्सा कटने के बाद से लगातार कटान गांव की ओर बढ़ रहा है। सड़क के बाद भी 10 मीटर कटान कुछ इलाकों में हो चुका है। गांव बरौना में बने सामुदायिक शौचालय भी कटान के निशाने पर है।
गांव के एक किनारे पर गंगा की धारा कटाव करके खेतों और झोपड़ियों तक जा पहुंची है, वहीं दूसरी तरफ आसपास बाढ़ का पानी भरा हुआ है। गंगा का जलस्तर कम होने के साथ ही इस पानी की निकासी शुरू हो गई है। गांव में भरे पानी से तो ग्रामीणों को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या कटान की है।
कटान का कोई एक स्थान निश्चित नहीं है। जहां भी पानी दबाव बढ़ता है, वहां कटान शुरू हो जाता है। ग्राम प्रधान प्रतिनिधि महेश चंद्र का कहना है कि पूरी रात बल्ली और सैंड बैग लगाने का काम चलता रहा, लेकिन कटान नहीं रुक रहा। गांव के लोग लगातार राहत शिविरों में पहुंच रहे हैं या फिर अपनी रिश्तेदारी में जा रहे हैं।