GI tag: ताले के बाद अलीगढ़ के बासमती धान को मिला जीआई टैग, अब बाजरा, चिकौरी, चमचम की बारी

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Aligarh basmati paddy got GI tag after lock

बासमती चावल

विस्तार

पिछले साल मंडियों में धान की कीमतों की तेजी को देखते हुए इस बार किसानों का रुझान धान की फसल तरफ अधिक है। बाजार में धान के बासमती उन्नतशील बीज की मांग अधिक है। किसानों ने धान की रोपाई के लिए नर्सरी तैयार करना आरंभ कर दिया है। अब तक करीब 300 हेक्टेयर में नर्सरी डालने का कार्य हो चुका है। जिले में करीब 3500 हेक्टेयर में धान की नर्सरी डाले जाने का अनुमान है।  

अलीगढ़ में पैदा होने वाले बासमती चावल की मांग देश के प्रमुख शहरों में तो है ही विदेशों तक इसका निर्यात हो रहा है। बासमती धान को जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडीकेशन) मिलने से यहां के किसानों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक ट्रेडमार्क मिलेगा और निर्यात और प्रचार-प्रसार में आसानी होगी। इससे किसानों को कानूनी संरक्षण भी मिलेगा एवं देश-विदेश में निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। कृषि विभाग ने धान रोपाई का जो लक्ष्य तय किया है, उससे करीब 20 हजार हेक्टेयर में अधिक धान की रोपाई होने की संभावना है। 

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भारत में लगभग 20 लाख हेक्टेयर में बासमती धान की खेती होती है। जिनमें सबसे ज्यादा क्षेत्रफल पूसा बासमती 1509, 1121 एवं 1401 का होता है। बासमती के कुल रकबा में इसका हिस्सा करीब 95 फीसदी तक पहुंच जाता है। पूसा ने बासमती 1509 को अपग्रेड करके 1847, 1121 को सुधार कर 1885 और पूसा बासमती-6 (1401) में बदलाव कर पूसा 1886 नाम से रोगरोधी किस्में विकसित कर दी हैं। भारत को बासमती चावल के एक्सपोर्ट करने पर सालाना करीब 35 हजार करोड़ रुपये की आय होती है।  

बढ़ रही है बीज की मांग 

बीज विक्रेता चेतन राना ने बताया कि पिछले साल धान के बीज की मांग कम थी, लेकिन इस बार बढ़ी है। प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि वह लगभग 10 साल से बासमती चावल की खेती कर रहे हैं। उन्होंने पूसा बासमती से इसकी पहली बार शुरुआत की थी। प्रति एकड़ लगभग 15 हजार रुपये की लागत आई थी। इससे निकलने वाला चावल बेचकर 35 हजार रुपये का मुनाफा कमाया है।  

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