Guru Purnima: गोवर्धन में आस्था-परंपरा का अद्भुत संगम, गुरु के सम्मान में मुंडन कराकर नाचे संत, निकाली शोभायात्रा

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मथुरा में गुरु पूर्णिमा पर गोवर्धन के मुड़िया मेले में आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम दिखाई दिया। मुड़िया संतों ने बुधवार की सुबह ढोल, ढप, झांझ-मजीरे की धुन पर शोभायात्रा निकाल कर 500 वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन किया। संतों ने श्रीपाद सनातन गोस्वामी के डोले के साथ नगर भ्रमण किया। पुष्पवर्षा के साथ जगह-जगह शोभायात्रा का स्वागत किया गया। वाद्य यंत्रों के साथ हरिनाम संकीर्तन की गूंज से गिरिराज तलहटी गुंजायमान हो उठी। गुरु के सम्मान में मुड़िया संत ढोलक-ढप और झांझ-मजीरे की धुन पर नाच रहे थे। 

चकलेश्वर स्थित राधा-श्याम सुंदर मंदिर से बुधवार की सुबह 10 बजे मुड़िया संतों की शोभायात्रा महंत रामकृष्ण दास के निर्देशन में नगर भ्रमण को निकाली गई। यह शोभायात्रा दसविसा, हरिदेवजी मंदिर, दानघाटी मंदिर, डीग अड्डा, बड़ा बाजार, हाथी दरवाजा होते हुए राधा-श्याम सुंदर मंदिर पर पहुंचकर संपन्न हुई। इस दौरान मुड़िया संत हरिनाम संकीर्तन के साथ नृत्य करते हुए निकले तो उनके आगे श्रद्धालुओं के शीश नतमस्तक हो गए।

धार्मिक मान्यता के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा को ही मुड़िया पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। सनातन गोस्वामी का आविर्भाव 1488 में पश्चिम बंगाल के गांव रामकेली गांव (जिला मालदा) के भारद्वाज गोत्रीय यजुर्वेदीय कर्णाट विप्र परिवार में हुआ था। वह पश्चिम बंगाल के राजा हुसैन शाह के यहां मंत्री हुआ करते थे। 

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चैतन्य महाप्रभु की भक्ति से प्रभावित होकर सनातन गोस्वामी उनसे मिलने बनारस आ गए। चैतन्य महाप्रभु की प्रेरणा से वृंदावन में रहकर भगवान कृष्ण की भक्ति करने लगे। ब्रज में विभिन्न स्थानों पर सनातन गोस्वामी भजन करते थे। वृंदावन से रोजाना गिरिराज परिक्रमा करने गोवर्धन आते थे। यहां चकलेश्वर मंदिर परिसर में बनी भजन कुटी उनकी साधना की साक्षी है। कहा जाता है कि सनातन गोस्वामी जब वृद्ध हो गए, तो गिरिराज प्रभु ने उनको दर्शन देकर शिला ले जाकर परिक्रमा लगाने को कहा। 

मुड़िया संतों के अनुसार 1558 में सनातन गोस्वामी के गोलोक गमन हो जाने के बाद गौड़ीय संत एवं ब्रजजनों ने सिर मुंडवाकर उनके पार्थिव शरीर के साथ सातकोसीय परिक्रमा लगाई। तभी से गुरु पूर्णिमा को मुड़िया पूर्णिमा के नाम से जाना जाने लगा। बुधवार को सनातन गोस्वामी के तिरोभाव महोत्सव पर उनके अनुयायी संत एवं भक्तों ने मुंडन कराकर मुड़िया शोभायात्रा के साथ मानसीगंगा की परिक्रमा कर परंपरा का निर्वहन किया। 

गोवर्धन में गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह 7 बजे से 9 बजे के मध्य शिष्य और गुरु की परंपरा का निर्वहन किया गया। शिष्यों ने गुरु से दीक्षा लेकर गुरु पूजन किया। इसके बाद गुरु शिष्य परंपरा का उदाहरण बनी मुड़िया शोभायात्रा निकाली गई।

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