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इलाहाबाद हाईकोर्ट व इसकी लखनऊ खंडपीठ में नियुक्त किए गए सरकारी वकीलों की सूची को लेकर अधिवक्ताओं में असंतोष बढ़ता जा रहा है। पूरा मामला अब मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच गया है। अधिवक्ताओं का कहना है कि इस सूची में ऐसे लोगों को भी शामिल कर लिया गया जोकि कैंटीन तथा बैंड बाजा पार्टी चलाते हैं। सूची में एक खास वर्ग को तवज्जो दी गई है।
पिछले सप्ताह सरकार ने एक अपर महाधिवक्ता, 27 अपर मुख्य स्थायी महाधिवक्ता सहित 841 राज्य विधि अधिकारियों (सरकारी वकील) को हटा दिया था। प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय में सरकार से जुड़े मामलों की पैरवी के लिए 586 नए राज्य विधि अधिकारी तैनात किए थे।
सूची में गड़बड़ी की शिकायत मिलने पर विगत शनिवार को सरकारी वकीलों की नियुक्ति पर रोक लगा दी। विशेष सचिव निकुंज मित्तल की ओर से लिपिकीय त्रुटियां/अशुद्धियां के संबंध में संशोधन संबंधी प्रार्थना पत्र मांगे गए हैं, जिससे संशोधन पत्र शीर्घ निर्गत किए जाने की कार्यवाही की जा सके।
उधर सरकारी वकीलों की नई सूची को लेकर बहुत से अधिवक्ताओं ने नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। कुछ का कहना है कि इसमें बीजेपी या संघ से जुड़े बहुत से अधिवक्ताओं को हटाया गया है। एक विशेष वर्ग के लोगों को तवज्जो दी गई है। कुछ ऐसे अधिवक्ता नियुक्ति किए गए हैं जो प्रैक्टिस में नहीं हैं। उनका केवल रजिस्ट्रेशन है, जबकि वह दूसरे काम करते हैं।
अधिवक्ताओं का कहना है कि नई सूची में ऐसे नाम शामिल हैं जो कैंटीन चलाते हैं और पैनल में शामिल हो गए हैं। एक अधिवक्ता तो ऐसे हैं, जो बैंड पार्टी का संचालन करते हैं। इसके अलावा एक अधिवक्ता का नाम सूची में चार और एक अधिवक्ता का नाम सूची में दो बार शामिल किया गया है। मामले में एक दर्जन से अधिक अधिवक्ताओं के समूह ने सीएम को पत्र लिखकर नए नाम सुझाए हैं। कहा है कि सीएम पुरानी नियुक्ति को रद्द करें और नए नाम शामिल कर नई सूची जारी करें।
नियुक्ति में बरती जाए गंभीरता
सरकारी अधिवक्ताओं की सूची में ऐसे अधिवक्ताओं का नाम शामिल होना दुर्भाग्यपूर्ण है। ऐसा लगता है कि सरकार हाईकोर्ट में अधिवक्ताओं की नियुक्ति को बहुत ही सतही तौर पर देखती है। वह इस नियुक्ति को पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए वजीफा समझती है। योग्य अधिवक्ताओं की नियुक्ति न होने से सरकार खुद तो परेशान होती ही है, साथ ही इसका खामियाजा पीड़ित पक्ष को भी उठाना पड़ता है। सरकारी अधिवक्ताओं को मिलने वाला वेतन आम जनता का पैसा है। ऐसे में सरकारी अधिवक्ताओं की जिम्मेदारी बड़ी होती है। सरकार को अपने अधिवक्ताओं की नियुक्ति में बहुत ध्यान देने की जरूरत है। – राकेश पांडेय, पूर्व अध्यक्ष, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट व इसकी लखनऊ खंडपीठ में नियुक्त किए गए सरकारी वकीलों की सूची को लेकर अधिवक्ताओं में असंतोष बढ़ता जा रहा है। पूरा मामला अब मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंच गया है। अधिवक्ताओं का कहना है कि इस सूची में ऐसे लोगों को भी शामिल कर लिया गया जोकि कैंटीन तथा बैंड बाजा पार्टी चलाते हैं। सूची में एक खास वर्ग को तवज्जो दी गई है।
पिछले सप्ताह सरकार ने एक अपर महाधिवक्ता, 27 अपर मुख्य स्थायी महाधिवक्ता सहित 841 राज्य विधि अधिकारियों (सरकारी वकील) को हटा दिया था। प्रदेश सरकार ने उच्च न्यायालय में सरकार से जुड़े मामलों की पैरवी के लिए 586 नए राज्य विधि अधिकारी तैनात किए थे।
सूची में गड़बड़ी की शिकायत मिलने पर विगत शनिवार को सरकारी वकीलों की नियुक्ति पर रोक लगा दी। विशेष सचिव निकुंज मित्तल की ओर से लिपिकीय त्रुटियां/अशुद्धियां के संबंध में संशोधन संबंधी प्रार्थना पत्र मांगे गए हैं, जिससे संशोधन पत्र शीर्घ निर्गत किए जाने की कार्यवाही की जा सके।
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