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लाडपुर स्थित केशवराय महाराज का मंदिर
– फोटो : अमर उजाला
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जहां पूरा देश आठ मार्च को धुलेडी के दिन होली के रंगों में भीगेगा, तो वहीं हाथरस शहर के दस किमी दूर गांव लाड़पुर में धुलेडी के दिन लोग रंगों से दूर रहेंगे। यहां होली वाले दिन होली नहीं खेली जाती है, बल्कि अगले दिन होली खेली जाती है। किवदंती है कि लाड़पुर में होली के दिन एक महिला सती हुई थी। महिला ने यह श्राप दिया था कि यहां धुलेडी के दिन होली नहीं खेली जाएगी। तब से लोग आज भी इस रिवाज को निभाते हैं।
गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि कस्बा लाड़पुर में चौधरी अचल सिंह गांव की जायदाद के मालिक थे। इनके दो पुत्र लखन सिंह और विजयपाल सिंह थे। विजयपाल कहीं घूमने गए थे। उन्हें सांप ने डंस लिया। उनकी पत्नी ने पति के साथ सती होने का निर्णय लिया। ग्रामीणों और ससुरालवालों ने विरोध कर उन्हें ऐसा करने से रोका। होली की दौज के दिन महिला ने सगे संबंधियों और अन्य ग्रामीणों से सती होने की गुहार लगाई। ससुराल वालों व ग्रामीणों के साथ महिला ने गांव में परिक्रमा की।
उसके बाद महिला को उस जगह पर ले गए, जहां पति को दफनाया गया था। उसके बाद महिला ने समाधि पर बैठकर कुछ बातें भी कहीं। उसके बाद पति की समाधि की सात परिक्रमा लगाई। अपने हाथों को रगड़ा, तो उनसे चिंगारी निकलने लगी। इसके बाद महिला सती हो गई। तब से इसी जगह पर धुलेडी के दिन कनशवराय जी महाराज का मेला लगता है। दौज को सती मेला लगता है। वहां ग्रामीण अपने बच्चों का मुंडन कराते हैं।
इसके बाद पंचमी तक खेली जाएगी होली
धुलेडी के अगले दिन से गांव लाड़पुर में होली की शुरुआत होती है। जो कि पंचमी तक चलती है। यहां गुड़ की भेली लटकाई जाती है। उसके महिलाएं रखवाली करती है। पुरुष उस गुड की भेली को ले जाने का प्रयास करते हैं। इस दौरान लठ्ठमार होली खेली जाती है।
गांव में काफी समय पहले महिला सती हुई थी। उसी समय से यहां धुलेडी के दिन होली नहीं खेली जाती है। धूलेडी के अगले दिन होली खेली जाती है। इस रीति रिवाज को लोग निभा रहे हैं। – डॉ. बंगाली सिंह, पूर्व सांसद
हमारे गांव में महिला के सती होने के चलते होली नहीं खेली जाती है। सती मइया का मेला लगता है। खास बात यह है कि धुलेडी के बाद होली होती है। जोकि पंचमी तक खेली जाती है। – जगदीश प्रसाद ग्रामीण
होली न खेलने की परंपरा काफी समय से है। होली पर केशवदेव जी महाराज की शोभायात्रा निकलती है। धुलेडी के अगले दिन लोग होली खेलते हैं। जोकि उत्सव पंचमी तक चलता है। – फतेह सिंह ग्रामीण
ब्रज की देहरी कहे जाने वाले हाथरस के लाडपुर में धुलेडी के दिन होली नहीं खेली जाती। धुलेडी के बाद लठ्ठमार होली होती है। सती की याद में मेला भी लगता है। – रतन सिंह, ग्रामीण
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