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विजयी विश्व तिरंगा प्यारा… झंडा ऊंचा रहे हमारा… तिरंगे की महिमा को बताने वाले इस झंडा गीत को शहर के पद्मश्री श्याम लाल गुप्त उर्फ पार्षद जी ने तीन और चार मार्च 1924 को फूलबाग में बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर लिखा था। आज उस स्थान पर पार्षद जी की प्रतिमा है। झंडा गीत की रचना महात्मा गांधी की इच्छा के अनुरूप की गई थी। महात्मा गांधी की इच्छा के बारे में श्यामलाल गुप्त को गणेश शंकर विद्यार्थी ने बताया था। नरवल गांव में नौ सितंबर 1896 को जन्मे श्याम लाल गुप्त के पिता का नाम विश्वेश्वर प्रसाद और मां का नाम कौशल्या देवी था। कानपुर इतिहास समिति के सचिव शांतनु चैतन्य ने बताया कि 1925 में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में सबसे पहले झंडा गीत गाया गया था। यहीं पर गीत सुनकर महात्मा गांधी ने इसको मान्यता दी थी। इस गीत के पहले भी श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ ने एक झंडा गीत लिखा था। उस गीत की पहली पंक्ति थी – राष्ट्र गगन की दिव्य ज्योति, राष्ट्रीय पताका नमो-नमो। यह ध्वज गीत ज्यादा चर्चा में नहीं आया, हालांकि इसे कांग्रेस सेवादल ने अपना लिया था। झंडा गीत ने श्यामलाल गुप्त को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
शान से फहराएं तिरंगा, पर रखें थोड़ा ध्यान
अमृत महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा फहराया जाने लगा है। हर रोज तिरंगा रैली भी निकाली जा रही है। आप भी अपने घर पर शान से तिरंगा फहराएं। बस तिरंगा फहराते समय थोड़ा सजग और सावधानी बरतें। किसी भी हाल में तिरंगे का अपमान न होने पाए। राष्ट्रीय ध्वज के अपमान पर सजा हो सकती है। इसलिए राष्ट्रीय ध्वज फहराते समय उसकी मर्यादा का ध्यान रखें।
राष्ट्रीय ध्वज के बारे में
राष्ट्रीय ध्वज में ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे हरा रंग होता है। ध्वज की लंबाई दो मीटर है तो चौड़ाई तीन मीटर होनी चाहिए। तीनों पट्टी बराबर साइज की होती हैं। बीच में नीले रंग का चक्र होता है। इसमें 24 तीली होती हैं। चक्र अशोक स्तंभ सारनाथ से लिया गया है। यह गतिशीलता की निशानी है।
इस तरह फहराया जाता है झंडा
26 जनवरी 2002 को लागू भारतीय ध्वज संहिता 2002 में प्रावधान है कि ध्वज ऐसी जगह फहराया जाना चाहिए जहां से स्पष्ट दिखे। झंडे को धीरे-धीरे आदर के साथ फहराया और उतारा जाता है। सभा या मंच पर झंडा फहराते समय वक्ता का मुंह श्रोताओं की तरफ हो और झंडा वक्ता के दाहिने तरफ होना चाहिए।
फहराते समय रखें यह ध्यान
ध्वज फटा या मटमैला नहीं होना चाहिए। किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचा या बराबर नहीं होना चाहिए। ध्वज पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए।
फटने पर इस तरह करें निस्तारण
अगर ध्वज फट जाता है या मटमैला हो जाता है तो उसके निस्तारण का भी नियम है। खंडित ध्वज को एकांत में जलाकर या मर्यादा के अनुकूल नष्ट किया जाता है। एकांत में जलाकर या दफनाकर नष्ट करना चाहिए। गंगा में विसर्जन भी किया जा सकता है।
यह माना जाएगा अपमान
बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुरेश सिंह चौहान ने बताया कि राष्ट्रीय ध्वज को झुका देना, आधा झुकाकर फहराना, नेपकिन या रुमाल के रूप में प्रयोग, किसी तरह का सामान ले जाने के लिए प्रयोग, जमीन पर छूना, उल्टा फहराना ध्वज
का अपमान माना जाता है। 2005 से पहले ध्वज को ड्रेस के रूप में भी प्रयोग नहीं किया जा सकता था। 5 जुलाई 2005 को सम्मानित तरीके से कमर से ऊपर वेशभूषा या वर्दी में इसके प्रयोग करने की अनुमति दे दी गई। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ध्वज में फूल की पंखुड़ियां बांधी जा सकती हैं। बाकी के दिनों में कोई भी वस्तु ध्वज से बांधना भी अपमान माना जाएगा।
अपमान पर 3 साल तक की सजा
राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 के तहत धारा दो में राष्ट्रीय ध्वज के अपमान पर सजा का प्रावधान है। इसके तहत तीन साल तक कैद और जुर्माना अथवा दोनों दिया जा सकता है। अगर दूसरी बार भी अपमान किया जाता है तो हर बार एक वर्ष की सजा और होगी। सजा पाने वाले को छह साल तक किसी भी तरह का चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होगा।
विस्तार
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा… झंडा ऊंचा रहे हमारा… तिरंगे की महिमा को बताने वाले इस झंडा गीत को शहर के पद्मश्री श्याम लाल गुप्त उर्फ पार्षद जी ने तीन और चार मार्च 1924 को फूलबाग में बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर लिखा था। आज उस स्थान पर पार्षद जी की प्रतिमा है। झंडा गीत की रचना महात्मा गांधी की इच्छा के अनुरूप की गई थी। महात्मा गांधी की इच्छा के बारे में श्यामलाल गुप्त को गणेश शंकर विद्यार्थी ने बताया था। नरवल गांव में नौ सितंबर 1896 को जन्मे श्याम लाल गुप्त के पिता का नाम विश्वेश्वर प्रसाद और मां का नाम कौशल्या देवी था। कानपुर इतिहास समिति के सचिव शांतनु चैतन्य ने बताया कि 1925 में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में सबसे पहले झंडा गीत गाया गया था। यहीं पर गीत सुनकर महात्मा गांधी ने इसको मान्यता दी थी। इस गीत के पहले भी श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ ने एक झंडा गीत लिखा था। उस गीत की पहली पंक्ति थी – राष्ट्र गगन की दिव्य ज्योति, राष्ट्रीय पताका नमो-नमो। यह ध्वज गीत ज्यादा चर्चा में नहीं आया, हालांकि इसे कांग्रेस सेवादल ने अपना लिया था। झंडा गीत ने श्यामलाल गुप्त को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
शान से फहराएं तिरंगा, पर रखें थोड़ा ध्यान
अमृत महोत्सव के तहत हर घर तिरंगा फहराया जाने लगा है। हर रोज तिरंगा रैली भी निकाली जा रही है। आप भी अपने घर पर शान से तिरंगा फहराएं। बस तिरंगा फहराते समय थोड़ा सजग और सावधानी बरतें। किसी भी हाल में तिरंगे का अपमान न होने पाए। राष्ट्रीय ध्वज के अपमान पर सजा हो सकती है। इसलिए राष्ट्रीय ध्वज फहराते समय उसकी मर्यादा का ध्यान रखें।
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