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कानपुर नगर निकाय चुनाव
– फोटो : अमर उजाला
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कानपुर में नगर निकाय चुनाव में महापौर की सीट को लेकर इस बार भारतीय जनता पार्टी में जितना असमंजस रहा, उतना पहले कभी नहीं था। पार्टी इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी कि इस बार भी महापौर उसी का बनेगा। हालांकि टिकट वितरण से लेकर परिणाम आने से पहले तक चर्चाएं थीं कि भाजपा के अंदर महापौर प्रत्याशी प्रमिला पांडेय के लेकर सब कुछ ठीक नहीं है। हालांकि प्रमिला को मिली रिकॉर्ड जीत ने सारे राजनीतिक समीकरण बदल दिए। कहा जा रहा है कि इस जीत के कई फैक्टर हैं। सबसे बड़ी वजह विपक्षी दलों के वोटों का बिखराव और मुस्लिम वाेटों का ध्रुवीकरण।
मुस्लिमों ने जताया भाजपा पर भरोसा
मुस्लिम वर्ग ने पहले से ही यह तय कर लिया था कि जो जिताऊ प्रत्याशी होगा, उसे ही वोट देंगे। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को यह लग रहा था कि मुस्लिम वर्ग के वोट पर सिर्फ उन्हीं का अधिकार है। हालांकि इस बार समीकरण बदल गए। भाजपा ने पहली बार 11 वार्डों में मुस्लिम प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा था। भाजपा का कोई भी मुस्लिम प्रत्याशी जीत तो नहीं पाया लेकिन मोदी और योगी की ओर से दी जा रही सुरक्षा और भरपेट भोजन की गारंटी ने ऐसा कर दिखाया, जिसकी विपक्षी दलों के साथ भाजपा को भी उम्मीद नहीं थी। इसी तरह प्रत्याशी से अलग संगठन को प्रमुख मानते हुए पार्टी पदाधिकारियों की टीम ने भी बूथ स्तर तक जिस तरह से रणनीति बनाई, उसमें कामयाबी मिली। इसके अलावा तीनों प्रमुख दलों के प्रत्याशी ब्राह्मण वर्ग से होने की वजह से कांग्रेस और सपा को नुकसान हुआ। ये वोट किसी एक प्रत्याशी को मिलते तो समीकरण कुछ और हो सकते थे।
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