Lulu Mall Namaz row: लुलु मॉल में नमाज पढ़ने पर क्यों बरपा हंगामा? सार्वजनिक स्थलों पर ऐसा करने को लेकर क्या कहता है कानून?

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लखनऊ के लुलु मॉल में कुछ लोगों के नमाज पढ़ने पर हंगामा हो गया है। हिंदूवादी नेताओं ने धमकी दी है कि यदि मॉल में नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई, तो वे वहां पर सुंदर कांड और हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। इसके बाद हरकत में आई पुलिस ने सार्वजनिक स्थल पर नमाज प़ढ़ने के आरोपियों पर एफआईआर दर्ज कर ली। इसके पहले दिल्ली एयरपोर्ट पर कुछ लोगों के द्वारा नमाज अदा करने की बात पर पहले भी सोशल मीडिया में विवाद छिड़ चुका है। ऐसे में प्रश्न है कि सार्वजनिक स्थल किस नियम कानून से संचालित होते हैं और इन पर कोई गतिविधि करने से संबंधित क्या नियम होते हैं?

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील अश्विनी दुबे ने अमर उजाला को बताया कि मॉल, अस्पताल, मंदिर-मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल, सिनेमा हॉल, अदालतें, बारात घर या पार्क सभी सार्वजनिक स्थल की श्रेणी में आते हैं। लेकिन ये सभी जगहें एक विशेष उद्देश्य के लिए बनी होती हैं और अपनी श्रेणी में वांछित सेवाओं के लिए ही उपयोग की जा सकती हैं। विभिन्न सेवाओं के लिए अलग-अलग लाइसेंस की भी आवश्यकता पड़ती है। प्रशासन यह सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई कार्यक्रम किए जाने की स्थिति में वहां पर कोई अव्यवस्था उत्पन्न नहीं होनी चाहिए।  

यदि एक सार्वजनिक स्थल का उपयोग निर्धारित सेवा की बजाय किसी दूसरी श्रेणी की सेवा के लिए किया जाने लगे, तो यह सेवाओं का उल्लंघन माना जाता है। जैसे पार्क टहलने, व्यायाम करने के लिए बनाया जाता है, लेकिन यदि इसी जगह का उपयोग विवाह या अन्य कार्यक्रम करने के लिए किया जाने लगे, तो उसके लिए प्रशासन से आवश्यक अनुमति लेनी पड़ती है, इसकी एक फीस भी चुकानी पड़ती है। इसके बिना यही गतिविधि वहां पर अवैध मानी जाएगी।

अश्विनी दुबे के मुताबिक, मस्जिद स्वयं में सार्वजनिक स्थल है। यहां पर नमाज पढ़ना बिल्कुल सही है। लेकिन जब यही नमाज किसी दूसरे सार्वजनिक स्थल, जैसे मॉल, सिनेमा हॉल या एयरपोर्ट पर पढ़ी जाने लगे, तो यह कानूनन गलत है। इसका आधार यह है कि इन जगहों को धर्म निरपेक्ष माना जाता है। यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं और अपना संबंधित कार्य करते हैं। यदि इन सार्वजनिक जगहों का उपयोग किसी धर्म विशेष के लिए किया जाने लगे, तो यह दूसरे धर्मों के लोगों को असुविधाजनक हो सकता है, लिहाजा किसी सार्वजनिक स्थल पर नमाज, पूजा या अन्य धार्मिक कार्य नहीं किया जा सकता।

रास्ता नहीं रोक सकते

दिल्ली पुलिस के पूर्व एसीपी वेदभूषण ने बताया कि सड़कें भी सार्वजनिक संपत्ति की श्रेणी में आती हैं। इनको रोककर नमाज पढ़ना दूसरे व्यक्ति के आवागमन के अधिकार को वंचित करता है, लिहाजा सड़कों को किसी धार्मिक कार्य के लिए रोकना भारतीय दंड संहिता की धारा 283 के अंतर्गत गैर कानूनी है। इस संबंध में कई अन्य धाराएं भी लगाई जा सकती हैं। इसीलिए शोभा यात्राओं को निकालने के पहले पुलिस प्रशासन से अनुमति ली जाती है, जिससे वह पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम कर सके, साथ ही उन सड़कों के दूसरे उपयोगकर्ताओं को वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध करा सके।

ये सेवाएं देना अनिवार्य

दिल्ली के पूर्व निःशक्त जन आयुक्त टीडी धारियाल ने बताया कि किसी भी सार्वजनिक सेवा को सार्जनिक स्थल नियमों का पालन करना पड़ता है। इसके लिए सुविधाओं को प्राप्त करने से लेकर बाथरूम जाने तक की सभी जगहों पर सुगम पहुंच के लिए रैंप होना नियमों के अंतर्गत आवश्यक है। रैंप न होने पर संस्था को दंडित किया जा सकता है।

साथ ही पेट्रोल पंप, सिनेमा हॉल, होटल या मॉल में लोगों के लिए टॉयलेट की सुविधा निःशुल्क उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य है। यदि कोई व्यक्ति होटल या मॉल की कोई सेवा न ले रहा हो, तो भी उसे लोगों को निःशुल्क टॉयलेट और पेयजल सुविधा देना अनिवार्य है। होटल अपने ग्राहकों को सामान्य जल उपलब्ध कराने के लिए कोई शुल्क नहीं ले सकते, जबकि कंपनियों के ब्रांडेड जल को किसी अतिरिक्त सेवा के जोड़े बिना कोई शुल्क नहीं वसूल सकते।

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लखनऊ के लुलु मॉल में कुछ लोगों के नमाज पढ़ने पर हंगामा हो गया है। हिंदूवादी नेताओं ने धमकी दी है कि यदि मॉल में नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई, तो वे वहां पर सुंदर कांड और हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। इसके बाद हरकत में आई पुलिस ने सार्वजनिक स्थल पर नमाज प़ढ़ने के आरोपियों पर एफआईआर दर्ज कर ली। इसके पहले दिल्ली एयरपोर्ट पर कुछ लोगों के द्वारा नमाज अदा करने की बात पर पहले भी सोशल मीडिया में विवाद छिड़ चुका है। ऐसे में प्रश्न है कि सार्वजनिक स्थल किस नियम कानून से संचालित होते हैं और इन पर कोई गतिविधि करने से संबंधित क्या नियम होते हैं?

सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील अश्विनी दुबे ने अमर उजाला को बताया कि मॉल, अस्पताल, मंदिर-मस्जिद जैसे धार्मिक स्थल, सिनेमा हॉल, अदालतें, बारात घर या पार्क सभी सार्वजनिक स्थल की श्रेणी में आते हैं। लेकिन ये सभी जगहें एक विशेष उद्देश्य के लिए बनी होती हैं और अपनी श्रेणी में वांछित सेवाओं के लिए ही उपयोग की जा सकती हैं। विभिन्न सेवाओं के लिए अलग-अलग लाइसेंस की भी आवश्यकता पड़ती है। प्रशासन यह सुनिश्चित करना चाहता है कि कोई कार्यक्रम किए जाने की स्थिति में वहां पर कोई अव्यवस्था उत्पन्न नहीं होनी चाहिए।  

यदि एक सार्वजनिक स्थल का उपयोग निर्धारित सेवा की बजाय किसी दूसरी श्रेणी की सेवा के लिए किया जाने लगे, तो यह सेवाओं का उल्लंघन माना जाता है। जैसे पार्क टहलने, व्यायाम करने के लिए बनाया जाता है, लेकिन यदि इसी जगह का उपयोग विवाह या अन्य कार्यक्रम करने के लिए किया जाने लगे, तो उसके लिए प्रशासन से आवश्यक अनुमति लेनी पड़ती है, इसकी एक फीस भी चुकानी पड़ती है। इसके बिना यही गतिविधि वहां पर अवैध मानी जाएगी।

अश्विनी दुबे के मुताबिक, मस्जिद स्वयं में सार्वजनिक स्थल है। यहां पर नमाज पढ़ना बिल्कुल सही है। लेकिन जब यही नमाज किसी दूसरे सार्वजनिक स्थल, जैसे मॉल, सिनेमा हॉल या एयरपोर्ट पर पढ़ी जाने लगे, तो यह कानूनन गलत है। इसका आधार यह है कि इन जगहों को धर्म निरपेक्ष माना जाता है। यहां सभी धर्मों के लोग आते हैं और अपना संबंधित कार्य करते हैं। यदि इन सार्वजनिक जगहों का उपयोग किसी धर्म विशेष के लिए किया जाने लगे, तो यह दूसरे धर्मों के लोगों को असुविधाजनक हो सकता है, लिहाजा किसी सार्वजनिक स्थल पर नमाज, पूजा या अन्य धार्मिक कार्य नहीं किया जा सकता।

रास्ता नहीं रोक सकते

दिल्ली पुलिस के पूर्व एसीपी वेदभूषण ने बताया कि सड़कें भी सार्वजनिक संपत्ति की श्रेणी में आती हैं। इनको रोककर नमाज पढ़ना दूसरे व्यक्ति के आवागमन के अधिकार को वंचित करता है, लिहाजा सड़कों को किसी धार्मिक कार्य के लिए रोकना भारतीय दंड संहिता की धारा 283 के अंतर्गत गैर कानूनी है। इस संबंध में कई अन्य धाराएं भी लगाई जा सकती हैं। इसीलिए शोभा यात्राओं को निकालने के पहले पुलिस प्रशासन से अनुमति ली जाती है, जिससे वह पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम कर सके, साथ ही उन सड़कों के दूसरे उपयोगकर्ताओं को वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध करा सके।

ये सेवाएं देना अनिवार्य

दिल्ली के पूर्व निःशक्त जन आयुक्त टीडी धारियाल ने बताया कि किसी भी सार्वजनिक सेवा को सार्जनिक स्थल नियमों का पालन करना पड़ता है। इसके लिए सुविधाओं को प्राप्त करने से लेकर बाथरूम जाने तक की सभी जगहों पर सुगम पहुंच के लिए रैंप होना नियमों के अंतर्गत आवश्यक है। रैंप न होने पर संस्था को दंडित किया जा सकता है।

साथ ही पेट्रोल पंप, सिनेमा हॉल, होटल या मॉल में लोगों के लिए टॉयलेट की सुविधा निःशुल्क उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य है। यदि कोई व्यक्ति होटल या मॉल की कोई सेवा न ले रहा हो, तो भी उसे लोगों को निःशुल्क टॉयलेट और पेयजल सुविधा देना अनिवार्य है। होटल अपने ग्राहकों को सामान्य जल उपलब्ध कराने के लिए कोई शुल्क नहीं ले सकते, जबकि कंपनियों के ब्रांडेड जल को किसी अतिरिक्त सेवा के जोड़े बिना कोई शुल्क नहीं वसूल सकते।

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