Nakul Dubey: नकुल दुबे पर कांग्रेस का दांव कितना सही! क्या पार्टी की डूबती नैया को लगा पाएंगे पार?

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सार

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नकुल दुबे 15 साल के राजनीतिक करियर में सिर्फ एक विधानसभा का चुनाव जीते और उसी दौरान मंत्री भी बने। उसके बाद नकुल दुबे दो लोकसभा का चुनाव और एक विधानसभा का चुनाव हार गए…

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महज 15 साल के राजनीतिक करियर में एक विधानसभा चुनाव जीतने वाले बसपा के पूर्व ब्राह्मण चेहरे पर कांग्रेस ने यह कहकर दांव लगाया है कि 2024 के लिए पार्टी ने रोड मैप तैयार करना शुरू कर दिया है। चर्चा तो यह तक है कि नकुल दुबे को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है। हालांकि इस बात की अभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में नकुल दुबे के कांग्रेस में शामिल होने के साथ कांग्रेस के पॉलिटिकल विजन और लोकसभा के चुनावी रोड मैप को लेकर के तमाम तरह की चर्चाएं होने लगी है। हालांकि प्रदेश के कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि नकुल दुबे के कांग्रेस में शामिल होने से ज्यादा चर्चा इस बात की होनी चाहिए कि क्या उनके पॉलिटिकल गॉडफादर के तौर पर पहचान रखने वाले बसपा के बड़े नेता सतीश चंद्र मिश्रा भी बसपा में बने रहेंगे या वह भी कांग्रेस का दामन थामेंगे।

16 अप्रैल को मायावती ने जब बसपा सरकार के पूर्व मंत्री रहे नकुल दुबे को पार्टी से बाहर किया, तो चर्चाएं होने लगी थीं कि जल्द ही दुबे दूसरी पार्टी का दामन थाम लेंगे। उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से समझने वाले जीडी शुक्ला कहते हैं कि जब नकुल दुबे को पार्टी से निकाला गया था, तो चर्चा इस बात की सबसे ज्यादा हुई थी कि आखिर सतीश मिश्रा जैसे कद्दावर नेता के करीबी को मायावती ने पार्टी से क्यों निकाल दिया। उस वक्त चर्चाएं इस बात की भी हो रही थीं कि क्या सतीश मिश्रा अब बसपा में कमजोर पड़ने लगे हैं। क्योंकि जिस तरीके से मायावती ने विधानसभा का चुनाव हारने के बाद ब्राह्मणों की बजाय मुस्लिम वोटरों पर फोकस करना शुरू किया था, उससे इस बात पर और ज्यादा बल दिया जाने लगा था।

 

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती ने इस बात का आकलन भली-भांति कर लिया था कि 2007 वाली सोशल इंजीनियरिंग 2022 में फेल हो गई है। यही वजह रही कि मायावती ने समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक मुस्लिमों पर अपनी नजरें इनायत करनी शुरू कर दीं। लगातार न सिर्फ ट्वीट करने शुरू कर दिए बल्कि उनकी हिमायत भी करनी शुरू कर दी। अब क्योंकि नकुल दुबे ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है तो चर्चाएं इस बात की शुरू हो गई हैं कि क्या कांग्रेस ने पूर्व मंत्री नकुल दुबे को बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर अपनी पार्टी में शामिल किया है।
 

 

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नकुल दुबे ने 2007 से सक्रिय राजनीति में अपनी भागीदारी शुरू की थी। पहली दफा नकुल दुबे 2007 में लखनऊ की महोना विधानसभा से विधायक बने और मायावती की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए। नकुल दुबे का यह पहला ऐसा चुनाव था, जो वह अब तक जीते हैं। 2012 में लखनऊ की बख्शी तालाब विधानसभा से नकुल दुबे ने चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इसके बाद 2014 में नकुल दुबे लोकसभा का चुनाव लड़े। वह भी हार गए। 2019 में नकुल दुबे सीतापुर में लोकसभा का चुनाव लड़ने गए वह भी हार गए। अब उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।

उत्तर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर उनकी 15 साल की राजनीति देखें तो इस बात के कहीं भी प्रमाण नहीं मिलते हैं कि वह एक बहुत बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर प्रदेश में उभरे हैं। विश्लेषकों की दलील है कि अगर ऐसा होता तो वह न सिर्फ अपनी ब्राह्मण बाहुल्य लोकसभा या विधानसभा की सीट जीतें, बल्कि पार्टी का जनाधार भी बढ़ाते। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि बसपा का लगातार जनाधार गिरता रहा। खासतौर से 2007 के जिस ब्राह्मण कार्ड के माध्यम से पार्टी सत्ता में आई, उसके बाद यह ब्राह्मण का ट्रंप कार्ड पार्टी के लिए फायदेमंद सौदा नहीं साबित हुआ। ऐसे में चर्चा हो रही है कि क्या कांग्रेस ने पूरी जांच पड़ताल कर ही ब्राह्मण चेहरे के तौर पर नकुल दुबे को पार्टी में ज्वाइन कराया है, या 2024 के रोडमैप के चलते कुछ और पूरे प्रदेश में अपनी पहचान रखने वाले बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर लोग शामिल किए जाएंगे।

बसपा ने बदली पॉलिटिकल लाइन लेंथ

चूंकि इस बार विधानसभा के चुनाव में 2007 वाली सोशल इंजीनियरिंग के फेल होने के बाद मायावती ने अपना पूरा फोकस अब सपा के सबसे बड़े वोट बैंक मुस्लिम वोटरों पर केंद्रित करना शुरू कर दिया है। ऐसे में बड़े ब्राह्मण चेहरे के फिसलने और कांग्रेस में जाने के साथ चर्चाओं का बाजार इस बात के लिए भी गरम हो गया है कि अब बसपा से और कौन बहुत बड़ा नेता खिसकेगा। नकुल दुबे के कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में तमाम तरीके की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। कांग्रेस ने भी इस बात की हवा दी है कि सपा, बसपा और भाजपा के कई बड़े नेता कांग्रेस के साथ आने को तैयार हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर कांग्रेस ने ब्राह्मणों के तौर पर दांव लगाकर नकुल दुबे को अपनी पार्टी में शामिल किया है, तो निश्चित तौर पर पार्टी की नजर में दुबे के राजनैतिक गॉडफादर और उनके करीबी बसपा नेता सतीश मिश्रा भी होंगे। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अगर पार्टी ब्राह्मण नेताओं को अपने साथ जोड़ रही है, तो उनके लिए नकुल दुबे से बड़ा नाम सतीश मिश्रा का होना चाहिए।

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विस्तार

महज 15 साल के राजनीतिक करियर में एक विधानसभा चुनाव जीतने वाले बसपा के पूर्व ब्राह्मण चेहरे पर कांग्रेस ने यह कहकर दांव लगाया है कि 2024 के लिए पार्टी ने रोड मैप तैयार करना शुरू कर दिया है। चर्चा तो यह तक है कि नकुल दुबे को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है। हालांकि इस बात की अभी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में नकुल दुबे के कांग्रेस में शामिल होने के साथ कांग्रेस के पॉलिटिकल विजन और लोकसभा के चुनावी रोड मैप को लेकर के तमाम तरह की चर्चाएं होने लगी है। हालांकि प्रदेश के कुछ राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि नकुल दुबे के कांग्रेस में शामिल होने से ज्यादा चर्चा इस बात की होनी चाहिए कि क्या उनके पॉलिटिकल गॉडफादर के तौर पर पहचान रखने वाले बसपा के बड़े नेता सतीश चंद्र मिश्रा भी बसपा में बने रहेंगे या वह भी कांग्रेस का दामन थामेंगे।

16 अप्रैल को मायावती ने जब बसपा सरकार के पूर्व मंत्री रहे नकुल दुबे को पार्टी से बाहर किया, तो चर्चाएं होने लगी थीं कि जल्द ही दुबे दूसरी पार्टी का दामन थाम लेंगे। उत्तर प्रदेश की राजनीति को करीब से समझने वाले जीडी शुक्ला कहते हैं कि जब नकुल दुबे को पार्टी से निकाला गया था, तो चर्चा इस बात की सबसे ज्यादा हुई थी कि आखिर सतीश मिश्रा जैसे कद्दावर नेता के करीबी को मायावती ने पार्टी से क्यों निकाल दिया। उस वक्त चर्चाएं इस बात की भी हो रही थीं कि क्या सतीश मिश्रा अब बसपा में कमजोर पड़ने लगे हैं। क्योंकि जिस तरीके से मायावती ने विधानसभा का चुनाव हारने के बाद ब्राह्मणों की बजाय मुस्लिम वोटरों पर फोकस करना शुरू किया था, उससे इस बात पर और ज्यादा बल दिया जाने लगा था।

 

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मायावती ने इस बात का आकलन भली-भांति कर लिया था कि 2007 वाली सोशल इंजीनियरिंग 2022 में फेल हो गई है। यही वजह रही कि मायावती ने समाजवादी पार्टी के कोर वोट बैंक मुस्लिमों पर अपनी नजरें इनायत करनी शुरू कर दीं। लगातार न सिर्फ ट्वीट करने शुरू कर दिए बल्कि उनकी हिमायत भी करनी शुरू कर दी। अब क्योंकि नकुल दुबे ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है तो चर्चाएं इस बात की शुरू हो गई हैं कि क्या कांग्रेस ने पूर्व मंत्री नकुल दुबे को बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर अपनी पार्टी में शामिल किया है।

 

 

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नकुल दुबे ने 2007 से सक्रिय राजनीति में अपनी भागीदारी शुरू की थी। पहली दफा नकुल दुबे 2007 में लखनऊ की महोना विधानसभा से विधायक बने और मायावती की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए। नकुल दुबे का यह पहला ऐसा चुनाव था, जो वह अब तक जीते हैं। 2012 में लखनऊ की बख्शी तालाब विधानसभा से नकुल दुबे ने चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। इसके बाद 2014 में नकुल दुबे लोकसभा का चुनाव लड़े। वह भी हार गए। 2019 में नकुल दुबे सीतापुर में लोकसभा का चुनाव लड़ने गए वह भी हार गए। अब उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया है।


उत्तर प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर उनकी 15 साल की राजनीति देखें तो इस बात के कहीं भी प्रमाण नहीं मिलते हैं कि वह एक बहुत बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर प्रदेश में उभरे हैं। विश्लेषकों की दलील है कि अगर ऐसा होता तो वह न सिर्फ अपनी ब्राह्मण बाहुल्य लोकसभा या विधानसभा की सीट जीतें, बल्कि पार्टी का जनाधार भी बढ़ाते। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि बसपा का लगातार जनाधार गिरता रहा। खासतौर से 2007 के जिस ब्राह्मण कार्ड के माध्यम से पार्टी सत्ता में आई, उसके बाद यह ब्राह्मण का ट्रंप कार्ड पार्टी के लिए फायदेमंद सौदा नहीं साबित हुआ। ऐसे में चर्चा हो रही है कि क्या कांग्रेस ने पूरी जांच पड़ताल कर ही ब्राह्मण चेहरे के तौर पर नकुल दुबे को पार्टी में ज्वाइन कराया है, या 2024 के रोडमैप के चलते कुछ और पूरे प्रदेश में अपनी पहचान रखने वाले बड़े ब्राह्मण चेहरे के तौर पर लोग शामिल किए जाएंगे।

बसपा ने बदली पॉलिटिकल लाइन लेंथ

चूंकि इस बार विधानसभा के चुनाव में 2007 वाली सोशल इंजीनियरिंग के फेल होने के बाद मायावती ने अपना पूरा फोकस अब सपा के सबसे बड़े वोट बैंक मुस्लिम वोटरों पर केंद्रित करना शुरू कर दिया है। ऐसे में बड़े ब्राह्मण चेहरे के फिसलने और कांग्रेस में जाने के साथ चर्चाओं का बाजार इस बात के लिए भी गरम हो गया है कि अब बसपा से और कौन बहुत बड़ा नेता खिसकेगा। नकुल दुबे के कांग्रेस में शामिल होने के साथ ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में तमाम तरीके की चर्चाएं शुरू हो गई हैं। कांग्रेस ने भी इस बात की हवा दी है कि सपा, बसपा और भाजपा के कई बड़े नेता कांग्रेस के साथ आने को तैयार हैं। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगर कांग्रेस ने ब्राह्मणों के तौर पर दांव लगाकर नकुल दुबे को अपनी पार्टी में शामिल किया है, तो निश्चित तौर पर पार्टी की नजर में दुबे के राजनैतिक गॉडफादर और उनके करीबी बसपा नेता सतीश मिश्रा भी होंगे। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि अगर पार्टी ब्राह्मण नेताओं को अपने साथ जोड़ रही है, तो उनके लिए नकुल दुबे से बड़ा नाम सतीश मिश्रा का होना चाहिए।

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