ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चों और युवाओं को मानसिक रूप से बीमार कर रही है। वह अकेले रहना चाहते हैं, पढ़ाई में मन नहीं लगता, उससे कतराते हैं। स्कूल और कॉलेज नहीं जाना चाहते हैं। काम में मन नहीं लगता। इस तरह के लक्षण किसी में दिखने पर मनोचिकित्सक से परामर्श प्राप्त करना चाहिए।
आगरा के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दिनेश राठौर ने बताया कि संस्थान की ओपीडी हर माह 10 से 15 बच्चे व युवा (11 से 35 वर्ष तक) पहुंच रहे हैं। लोग इन्हें पढ़ाई के प्रति उदासीनता, कोई काम ठीक से न करने, गुमसुम रहने जैसी शिकायतें होने पर दिखाने के लिए लाते हैं।
गेमिंग पैसे भी लगाते हैं बच्चे
बातचीत में पता चला है कि बच्चे और युवा मोबाइल पर विभिन्न गेम्स खेलते हैं। गेम्स में पैसे भी लगाते हैं। कंपनियां पहले तो नि:शुल्क गेम्स ऑफर करती हैं। उसकी आदत बनने पर रुपये लगाने वाले गेम्स के प्रति आकर्षित करती हैं। उसमें रुपये लगाने होते हैं पर वापस नहीं होते। वहीं, कुछ गेम्स ऐसे हैं, जिनमें रुपये लगाने पर रुपये वापस भी मिलते हैं। इसका नशा जुए की तरह होता है। रुपये गंवाने पर लोग उधार ले रहे हैं।
केस एक
10 वर्ष के बच्चे को मोबाइल पर गेम्स खेलने की लत लग गई। पढ़ाई में मन नहीं लग रहा था। अकेले रहना चाह रहा था। माता-पिता के बैंक खाते का पिन पता कर लिया और गेम्स में रुपये लगाने लगा।
केस दो 22 साल का युवक गेमिंग का आदी हो गया। साथियों से बहाने बनाकर उधार लेने लगा। नौकरी छूट गई। घर वालों को पता चला तो उन्होंने कर्ज भरा। युवक को मानसिक स्वास्थ्य में दिखाया गया, उसकी काउंसलिंग की गई।
गेमिंग की आदत छुड़ाने के लिए परिवार को देना होगा समय
डॉ. दिनेश राठौर ने बताया कि गेमिंग की आदत छुड़ाने के लिए बच्चों और युवाओं के लिए परिवार को समय देना होगा। उसकी दिनचर्या को व्यस्त रखना होगा। दोस्तों के साथ समय बिताकर भी इस आदत से बाहर निकला जा सकता है। खेलकूद व अन्य गतिविधियों में शामिल होना चाहिए। जो लती हो गए हैं, उन्हें मनोचिकित्सक को दिखाना चाहिए। मनोचिकित्सक दवा देने के साथ काउंसलिंग करते हैं। मरीज, परिवार व मनोचिकित्सक के संयुक्त प्रयास से गेमिंग की आदत छुड़ाई जा सकती है।
ऑनलाइन गेमिंग की लत बच्चों और युवाओं को मानसिक रूप से बीमार कर रही है। वह अकेले रहना चाहते हैं, पढ़ाई में मन नहीं लगता, उससे कतराते हैं। स्कूल और कॉलेज नहीं जाना चाहते हैं। काम में मन नहीं लगता। इस तरह के लक्षण किसी में दिखने पर मनोचिकित्सक से परामर्श प्राप्त करना चाहिए।
आगरा के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. दिनेश राठौर ने बताया कि संस्थान की ओपीडी हर माह 10 से 15 बच्चे व युवा (11 से 35 वर्ष तक) पहुंच रहे हैं। लोग इन्हें पढ़ाई के प्रति उदासीनता, कोई काम ठीक से न करने, गुमसुम रहने जैसी शिकायतें होने पर दिखाने के लिए लाते हैं।
गेमिंग पैसे भी लगाते हैं बच्चे
बातचीत में पता चला है कि बच्चे और युवा मोबाइल पर विभिन्न गेम्स खेलते हैं। गेम्स में पैसे भी लगाते हैं। कंपनियां पहले तो नि:शुल्क गेम्स ऑफर करती हैं। उसकी आदत बनने पर रुपये लगाने वाले गेम्स के प्रति आकर्षित करती हैं। उसमें रुपये लगाने होते हैं पर वापस नहीं होते। वहीं, कुछ गेम्स ऐसे हैं, जिनमें रुपये लगाने पर रुपये वापस भी मिलते हैं। इसका नशा जुए की तरह होता है। रुपये गंवाने पर लोग उधार ले रहे हैं।