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अष्टमी की भोर गोस्वामी समाज के लोग मंदिर परिसर में प्रवेश कर गए। लाडली जी के अवतरित होने से पूर्व उनकी जन्म की बधाई गान शुरू कर दिया। यह बधाई गायन जन्म तक चला। मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर गए गोस्वामीजनों ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ बृषभान नंदनी के मूल शांत किए।
मूल शांति के लिए 27 कुओं का जल, 27 पेड़ों की पत्ती, 27 तरह के मेवा, 27 फल, सोने-चांदी के मूल मूलनी और तेल से भरा कांसे का छाया पात्र का प्रयोग किया। उसके बाद हवन किया गया। मूल शांति और हवन का कार्यक्रम लगभग 4 बजे तक चला। इसके बाद लाडली जी के विग्रह को मंदिर के जगमोहन में अभिषेक के लिए लाया गया।
मंदिर के सेवायतों द्वारा दूध, शहद, घोघृत, बूरा, गुलाबजल, केसर आदि का पंचामृत बनाकर अभिषेक किया गया। अभिषेक के दौरान मंदिर में घंटा, घड़ियाल वाद्ययंत्र गुंजायमान हो रहे थे। हर कोई अभिषेक के दर्शनों को लालायित दिखा। समूचा मंदिर परिसर लाडली जी के जयकारों से गुंजायमान हो रहा था। वृषभान नंदनी के जन्म के दौरान सेवायत भी श्रद्धालुओं को खेल, खिलौने, मिठाई लुटाते हुए नजर आए।
दिनभर लाडली के जन्मोत्सव की धूम रही। चहुंओर लाडली के नाम के जयकारे लग रहे थे। श्रद्धालु अपनी आराध्य राधारानी के जन्मोत्सव की खुशी में आनंदित होकर भक्ति भाव में भावविभोर हो रहे थे। भक्ति की ऐसी रस वर्षा बह रही थी कि बरसाना में एक पल को तो ऐसा लग रहा था कि कही द्वापर में तो नहीं है।
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