UP Budget 2023: सरकार दे ध्यान, तो बिसावर के घुंघरू में पड़ जाए जान

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घंटी और घुंघरू

घंटी और घुंघरू
– फोटो : अमर उजाला

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प्रदेश सरकार का बजट 22 फरवरी को आ रहा है। इसको लेकर हाथरस के कारोबारियों व उद्यमियों को काफी उम्मीदें हैं। बिसावर के घुंघरू उद्योग के कारोबारियों को उम्मीद है कि अगर बजट में कुछ प्रावधान हो जाए तो घुंघरुओं की चमक बढ़ जाए। टैक्स की मार और सुरक्षा के अभाव में बिसावर में तैयार होने वाले घूंघरू की झंकार अब मंद होने लगी है। 

हालात ये है कि युवा पीढ़ी के लोग इस उद्योग को अपना रोजगार बनाने से भी पीछे हट रही है। कई सालों से इस कारोबार में लगे कारोबारी भी थक चुके हैं। इस उद्योग को संकट से उबारने के लिए लोगों को मदद बजट से आस लगी है।

जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत बिसावर की पहचान यहां बनने वाले घुंघरू से है, जिसकी चमक देश के कई राज्यों में दिखाई देती है। कई दशकों से बिसावर और आसपास के दर्जन भर से ज्यादा गांव में घुंघरू का कारोबार होता है। इससे व्यापारियों की जेब ही नहीं हजारों गरीबों का पेट भी भरता है। घर-घर महिला पुरुष बच्चे बुजुर्ग घुंघरू तैयार करने का काम मजदूरी पर करते हैं। फैक्टरी और दुकानदारों के माध्यम से माल ले जाकर ये काम किया जाता है।

पहले के मुकाबले घुंघरू कारोबार सिमट सा गया है। प्रतिस्पर्धा और आए दिन होने वाली लूटपाट की घटनाओं के कारण तमाम कारोबारी और मजदूर इस काम से तौबा कर चुके हैं। जनप्रतिनिधि भी कारोबार को सुरक्षा, मुकाम दिलाए जाने को लेकर बड़े-बड़े वादे तो करते हैं लेकिन आज तक कोई वादा पूरा नहीं हुआ। यहां तक कि बिसावर में अभी तक थाना नहीं बन सका है।

ऐसे तैयार होता है घुंघरू

सबसे पहले कच्चे माल के रूप में चांदी या गिलहट मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद आदि आसपास शहरों से मजदूरी पर तैयार करने के लिए लाई जाती है। उसके बाद इसकी गलाई करने के कारखानों में लाया जाता है। वहां इनकी मशीनों के द्वारा एक बड़ी रोड तैयार की जाती है। उसके बाद मशीन की रोड की तारपट्टी के रोलरों पर भेजा जाता है। यहां उन रोड को आंच रूपी भट्ठी पर तपाया जाता है।

मजदूर रोलरों में लगाकर लंबी पत्ती तैयार करते हैं। उन पत्तियों को प्रेस मशीन की डाई से कटिंग के लिए भेजा जाता है। यहां पर लगे डाई मशीन के मजदूरों के द्वारा घुंघरू के एक एक भाग को रवा के रूप में तैयार किया जाता है। घुंघरू को सुहागे, कुंदा डालकर दो भागों में जोड़ा जाता है। इसके बाद लोहे के पीपरों पर रखा जाता है और अंत में गैस मशीनों से झलाई की जाती है।

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सात दशक पहले हुई थी शुरुआत

घुंघरू से बनने वाली पायल की शुरुआत कस्बा बिसावर के गांव नगला शेखा में वर्ष 1950 में हुई थी। इसके बाद से यह कारोबार बढ़ता गया और आज यह कारोबार बिसावर, नगला छत्ती, नगला मदारी, घड़ी अंता, तसींगा, ताजपुर, विधीपुर, नगला शेखा, वनगढ़ आदि गांवों में फैला हुआ है। यह उद्योग हजारों लोगों की आजीविका का साधन बन गया है। 200 उधमी और करीब 25 हजार मजदूर इस उद्योग से जुड़े हुए हैं लेकिन लूटपाट और असुरक्षा के कारण यह कारोबार कमजोर पड़ता जा रहा है।

मथुरा, आगरा, जयपुर, गुजरात आदि शहरों में बिकते हैं घूंघरू बिसावर में तैयार होने बाली घूंघरू को मथुरा, आगरा, जयपुर, गुजरात, फिरोजाबाद आदि शहरों में ले जाकर बेचा जाता है। शहरों के आभूषण निर्माता इन्हें खरीदकर पायजेब से लेकर अन्य आभूषण तैयार करने में प्रयोग करते हैं। व्यवसाई कच्चे माल के रूप में चांदी और गिलहट आगरा और मथुरा से खरीदकर लाते हैं। बिसावर के घुंघरू की दूसरे शहरों में अच्छी खासी मांग होती है।

घुंघरू कारोबार सूक्ष्म लघु उद्योग में पास होना चाहिए। बिसावर में मजदूरी पर कार्य होता है। इसलिए टैक्स में छूट मिलनी चाहिए। सरकार को इस बिजनेस के लिए सरल ऋण उपलब्ध कराना चाहिए।– अरविंद चौधरी, कारोबारी

घुंघरू कारोबार के लिए सरकार को इस बजट में लोन की व्यवस्था करनी चाहिए। सुरक्षा के लिए कोतवाली की स्थापना बिसावर में होना बेहद जरूरी है। हमारा क्षेत्र घुंघरू कारोबार के नाम से ही जाना जाता है। -विजयपाल सिंह, कारोबारी

घुंघरू उद्योग के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता थाने को लेकर है जिससे व्यापारी वर्ग को सुरक्षा मिल सके। प्रदेश सरकार के बजट से काफी उम्मीदें हैं। – यतेंद्र चौधरी वनगढ़

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