UP Chunav 2022: सियासी सूरमा को नकारने वाली बलिया की इस सीट पर रोचक मुकाबला, यहां भाजपा का कभी नहीं खुला खाता

0
30

[ad_1]

सार

यूपी की वीआईपी सीटों में शुमार विधानसभा बलिया के बांसडीह को लेकर सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है। कभी शेर-ए-पूर्वांचल के नाम से जाने जाने वाले बच्चा पाठक को नकारने वाली इस विधानसभा में इस बार भी कड़ा मुकाबला है।

ख़बर सुनें

उत्तर प्रदेश का चुनावी माहौल जुबानी गर्माहट के साथ चरम पर है। लोग 10 मार्च को आने वाले परिणाम की ओर टकटकी लगाए हैं। प्रदेश की वीआईपी सीटों में शुमार विधानसभा बांसडीह को लेकर भी सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है। इतिहास पर नजर डाले तो आजादी के बाद से हुए अबतक के चुनावों में भाजपा यहां अपना खाता नहीं खोल पाई है। ऐसे में ये देखना भी दिलचस्प होगा कि पार्टी यहां इतिहास रच पाती है या नहीं।

कभी शेर-ए-पूर्वांचल के नाम से जाने जाने वाले बच्चा पाठक को नकारने वाली इस विधानसभा में इस बार भी कड़ा मुकाबला है। बच्चा पाठक ने सात बार इस विधानसभा का नेतृत्व किया था। वर्तमान में ये सीट सपा के खाते में है। इसी सीट से नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी की आवाज सदन में गूंजती है।

क्या नेता प्रतिपक्ष बचा पाएंगे कुर्सी
यही कारण है कि प्रदेश के सियासी गलियारों में बदलते तापमान का असर इस विधानसभा में भी दिखता है। इस विधानसभा चुनाव में यक्ष प्रश्न यह है कि क्या नेता प्रतिपक्ष इस बार भी अपनी सीट बचा पाएंगे या किसी और दल का झंडा यहां बुलंद होगा।

पिछली बार निर्दलीय प्रत्याशी रहीं केतकी सिंह इस बार भाजपा एवं निषाद पार्टी की संयुक्त प्रत्याशी के रूप में चुनावी अखाड़े में हैं। केतकी ने 2017 के चुनाव में भाजपा से बगावत करने के बाद 49,276 से अधिक मत प्राप्त करते हुए राजनैतिक पंडितों को चौंका दिया था।

रामगोविंद चौधरी 51201 मत प्राप्त करते हुए पहले स्थान पर रहे थे। वहीं भाजपा एवं सुभासपा के संयुक्त प्रत्याशी अरविंद राजभर को 40234 और पूर्व विधायक एवं बसपा प्रत्याशी शिवशंकर चौहान को 38745 मत हासिल हुए थे।

विधानसभा बांसडीह की बात करें तो 1951 में कांग्रेस पार्टी से शिवमंगल यहां से पहले विधायक चुने गए। 1957 में कांग्रेस से ही राम लछन, 1962 में कांग्रेस से शिवमंगल, 1967 में बीजेएस से बैद्यनाथ विधायक बने। 1969 में बच्चा पाठक पहली बार यहां से विधायक बने थे।

1985 में जनता दल और 1989 के चुनाव में भी जनता दल से विजयलक्ष्मी इस सीट पर विधायक रहीं, नहीं तो 1996 तक बच्चा पाठक यहां से सात बार विधायक रहे। इस सीट से आज तक भाजपा का खाता नहीं खुला है। 1996 के बाद भाजपा की सरकार बचाने के लिए बच्चा पाठक ने लोकतात्रिक मोर्चा क्या बनाया, इस सीट से जनता ने उन्हें भी नकार दिया।

2002 में सजपा से रामगोविन्द चौधरी, 2007 में बसपा से शिवशंकर चौहान विधायक बने। 2012 और 2017 में रामगोविन्द चौधरी फिर सपा से विधायक चुने गए। बांसडीह विधानसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ये सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। पूर्व मंत्री रह बच्चा पाठक ने आपातकाल विरोधी लहर में भी ये सीट कांग्रेस की झोली में डाली थी।

यह भी पढ़ें -  Agra News : ओडिशा से लग्जरी कारों में गांजा की तस्करी, पुलिस ने छह तस्करों को किया गिरफ्तार

इस बार कुल 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में आमने-सामने है, जिनमें रामगोविंद चौधरी, केतकी सिंह, पुनीत पाठक, मांती राजभर, लक्ष्मण, सुशांत, अजय शंकर, दयाशंकर वर्मा, ममता, संग्राम तोमर, प्रमोद पासवान, विनोद कुमार, स्वामीनाथ साहनी शामिल है।

बांसडीह विधानसभा में मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 4.03 लाख है। इनमें यादव मतदाताओं की संख्या लगभग 40 हजार, राजभर 35 हजार, ब्राह्मण 58 हजार, क्षत्रिय 60 हजार, चौहान 34000, अनुसूचित जाति 32 हजार, वैश्य 24हजार, कोइरी 25हजार, बिन्द/मल्लाह 24 हजार, मुस्लिम 10 हजार, अनुसूचित जनजाति 9 हजार के आसपास है।

इतिहास पर नजर डाले तो आजादी के बाद से हुए अबतक के चुनावों में भाजपा यहां अपना खाता नहीं खोल पाई है। ऐसे में ये देखना भी दिलचस्प होगा कि पार्टी यहां इतिहास रच पाती है या नहीं। सपा-सुभासपा गठबंधन के वोटों में बसपा प्रत्याशी मानती राजभर सेंध लगा रही हैं। केतकी पार्टी के परम्परागत वोटों के साथ अति पिछड़ों और निषाद पार्टी के जाति वोटरों पर दावा ठोंकती नजर आ रही है। कांग्रेस पुनीत पाठक और वीआईपी से अजय शंकर की मौजूदगी लड़ाई को दिलचस्प बना रही है।

 

इस चुनावी समर में एक नाम जिसकी बिना उम्मीदवारी सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है वो है पूर्व विधायक शिवशंकर चौहान। बसपा से पूर्व विधायक रह चुके शिवशंकर चौहान एक बार रामगोविन्द चौधरी को चुनावी दंगल में पटखनी दे चुके हैं। वर्ष 2017 के चुनाव में बतौर बसपा प्रत्याशी उन्होंने लगभग 38 हजार मत भी हासिल किए थे। फिलहाल वो भाजपा में है।

विस्तार

उत्तर प्रदेश का चुनावी माहौल जुबानी गर्माहट के साथ चरम पर है। लोग 10 मार्च को आने वाले परिणाम की ओर टकटकी लगाए हैं। प्रदेश की वीआईपी सीटों में शुमार विधानसभा बांसडीह को लेकर भी सियासी गलियारों में अटकलों का बाजार गर्म है। इतिहास पर नजर डाले तो आजादी के बाद से हुए अबतक के चुनावों में भाजपा यहां अपना खाता नहीं खोल पाई है। ऐसे में ये देखना भी दिलचस्प होगा कि पार्टी यहां इतिहास रच पाती है या नहीं।

कभी शेर-ए-पूर्वांचल के नाम से जाने जाने वाले बच्चा पाठक को नकारने वाली इस विधानसभा में इस बार भी कड़ा मुकाबला है। बच्चा पाठक ने सात बार इस विधानसभा का नेतृत्व किया था। वर्तमान में ये सीट सपा के खाते में है। इसी सीट से नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी की आवाज सदन में गूंजती है।

क्या नेता प्रतिपक्ष बचा पाएंगे कुर्सी

यही कारण है कि प्रदेश के सियासी गलियारों में बदलते तापमान का असर इस विधानसभा में भी दिखता है। इस विधानसभा चुनाव में यक्ष प्रश्न यह है कि क्या नेता प्रतिपक्ष इस बार भी अपनी सीट बचा पाएंगे या किसी और दल का झंडा यहां बुलंद होगा।

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here