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सार
राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र सिंह ने अमर उजाला से कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की सफलता के पीछे उनका विकास और गुजरात मॉडल बड़ा कारण था, लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री ने बिहार-उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार शुरू किया था, उन्हें यह याद आ गया था कि वे पिछड़ी जाति के हैं…
बिजनौर की वर्चुअल जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह प्रदेश की जनता को जातिवाद और जातिवादियों से सावधान रहने को कहा उससे ये लग रहा है कि वह पिछले चुनावों की तरह इस बार भी अपनी उसी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। लेकिन 2014, 2017 और 2019 की तरह क्या प्रधानमंत्री मोदी अपने कौशल की बदौलत इस बार भी जातीय समीकरणों को तोड़ पाएंगे? खासकर उस स्थिति में जब माना जा रहा है कि इस चुनाव में असली मुकाबला सपा के सामाजिक समीकरण और भाजपा के राष्ट्रवाद-हिंदुत्व के मुद्दे के बीच ही होने जा रहा है। अखिलेश यादव जातीय समीकरणों के सहारे ही भाजपा के राष्ट्रवाद को चुनौती देने के लिए तैयार हैं और बेहद सधी राजनीतिक चालें चलकर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।
अखिलेश का मजबूत चक्रव्यूह
अखिलेश यादव ने आरएलडी, सुभासपा, महान दल, एनसीपी और अपना दल (कमेरावादी) जैसे अलग-अलग दलों के साथ गठबंधन कर अपना सामाजिक समीकरण मजबूत करने का काम किया है। इससे गठबंधन का सामाजिक आधार व्यापक हो गया है। सरकार बनने के बाद यूपी में जातिगत जनगणना कराने का अखिलेश यादव का वादा भी पिछड़ों-दलित जातियों को आकर्षित कर सकता है।
हर वर्ग में भाजपा समर्थक
उत्तर प्रदेश भाजपा नेता शैलेंद्र शर्मा ने कहा कि उनकी पार्टी की राजनीति में हमेशा देश और जनता पहले नंबर पर होती है। किसी भी योजना का लाभ पहुंचाने में किसी भी व्यक्ति से जाति-धर्म-संप्रदाय के आधार पर भेद नहीं किया जाता। सरकार और पार्टी की इसी नीति का परिणाम है कि पीएम किसान सम्मान निधि, पीएम आवास योजना, राशन योजना, उज्जवला योजना या जनधन योजना का लाभ हर वर्ग के हर पात्र व्यक्ति को मिल रहा है।
भाजपा नेता के मुताबिक, सरकार की इसी नीति का परिणाम है कि हर समाज और हर वर्ग में उनकी पार्टी के समर्थक बन गए हैं जो जातीय सोच से बाहर निकलकर उन्हें समर्थन देते हैं। जबकि इसके पहले की सरकारें जाति के नाम पर तो उनसे वोट ले लेती थीं, लेकिन सत्ता पाने के बाद वे केवल अपने घर-परिवार का लाभ करने में जुट जाती थीं। उनके मुताबिक, इन सियासी दलों की चाल अब जनता को समझ में आ चुकी है, और प्रधानमंत्री सपा-बसपा की इसी चाल के प्रति जनता को सचेत कर रहे थे।
“पीएम स्वयं करते हैं जातिगत राजनीति”
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं जातिगत राजनीति करते हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने स्वयं को पिछड़े वर्ग का बेटा कहकर ही वोट मांगा था और इसका खूब प्रचार भी किया था। जबकि वे पिछड़ी जाति से नहीं थे और गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी जाति को पिछड़ी जाति में लाकर स्वयं को पिछड़ी जातियों का मसीहा घोषित कर लिया था।
सपा नेता ने कहा कि आज अखिलेश यादव के गठबंधन को व्यापक सामाजिक समर्थन मिलता देख भाजपा घबरा गई है। इसमें दरार डालने के लिए ही पीएम के जरिए इस तरह के बयान दिलवाए जा रहे हैं। लेकिन दलित-पिछड़ी जातियों ने देखा है कि किस तरह उनके आरक्षण व्यवस्था में छेड़छाड़ करने की कोशिश की गई है और हर संस्थान का निजीकरण कर उनका नुकसान किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पीएम की कोई अपील इस चुनाव में काम नहीं करने वाली और यह सच्चाई वे समझ चुके हैं, इसीलिए खराब मौसम का बहाना बनाकर वे बिजनौर में जनसभा को संबोधित करने का जोखिम नहीं उठा सके।
2014 की जीत में भी जातीय योगदान
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र सिंह ने अमर उजाला से कहा कि भारत जैसे देश में चुनाव बहुआयामी प्रकृति के होते हैं। यहां मतदाताओं के बीच इतनी विभिन्नता होती है कि सबको किसी एक खांचे में बांधना संभव नहीं होता, और इसीलिए राजनीतिक दल अलग-अलग तरह के वायदे कर सभी वर्गों को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की सफलता के पीछे उनका विकास और गुजरात मॉडल बड़ा कारण था, लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री ने बिहार-उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार शुरू किया था, उन्हें यह याद आ गया था कि वे पिछड़ी जाति के हैं। उन्होंने पटना के गांधी मैदान में खूब जोरशोर से खुद को पिछड़े वर्ग का बेटा कहकर प्रचारित किया था।
यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में मिली भाजपा की जीत के पीछे हिंदुत्व के साथ-साथ उसके सामाजिक समीकरणों को भी दिया जा सकता है। भाजपा ने अपना दल, सुभासपा और अन्य दलों को साथ लेकर अपना आधार बेस बढ़ा लिया था, जिसका उसे चुनावी लाभ मिला। आज की तारीख में यही समीकरण समाजवादी पार्टी के पक्ष में दिख रहा है। उसे इसका लाभ अवश्य मिलेगा।
जाति तोड़ने की कोशिश
पीएम मोदी ने कुंभ के दौरान दलित कार्यकर्ताओं का पैर धुलकर जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया था। वाराणसी में काशी में भी उन्होंने सफाई कर्मचारियों के साथ बैठकर, उनके साथ भोजन कर अपनी इसी सोच को आगे बढ़ाया था। अमित शाह और योगी आदित्यनाथ भी लगातार इसी तरह से इन वर्गों में अपनी पैठ बनाने का काम कर रहे हैं। भाजपा नेताओं की इन कोशिशों से एक सामाजिक समरसता का संदेश जा रहा है और उसे इसका लाभ मिल सकता है।
क्या कहा पीएम ने?
प्रधानमंत्री ने बिजनौर की जनसभा को वर्चुअल तरीके से संबोधित करते हुए लोगों को जातिवाद से सावधान रहने को कहा। उन्होंने कहा कि कुछ दल जाति के नाम पर उनसे वोट लेते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद केवल अपने घर-परिवार को लाभ पहुंचाने का काम करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारों-इशारों में सपा-बसपा पर हमला करते हुए कहा कि अपनी तिजोरी भरने के चक्कर में गरीबों के घर राशन नहीं पहुंचने दिया जाता था, उनका घर नहीं बनने दिया जाता था, लेकिन जब से यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार सत्ता में आई है, उसका पूरा प्रयास रहा है कि समाज के सभी वर्गों को सभी योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ मिले।
विस्तार
बिजनौर की वर्चुअल जनसभा में प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह प्रदेश की जनता को जातिवाद और जातिवादियों से सावधान रहने को कहा उससे ये लग रहा है कि वह पिछले चुनावों की तरह इस बार भी अपनी उसी रणनीति के तहत काम कर रहे हैं। लेकिन 2014, 2017 और 2019 की तरह क्या प्रधानमंत्री मोदी अपने कौशल की बदौलत इस बार भी जातीय समीकरणों को तोड़ पाएंगे? खासकर उस स्थिति में जब माना जा रहा है कि इस चुनाव में असली मुकाबला सपा के सामाजिक समीकरण और भाजपा के राष्ट्रवाद-हिंदुत्व के मुद्दे के बीच ही होने जा रहा है। अखिलेश यादव जातीय समीकरणों के सहारे ही भाजपा के राष्ट्रवाद को चुनौती देने के लिए तैयार हैं और बेहद सधी राजनीतिक चालें चलकर भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं।
अखिलेश का मजबूत चक्रव्यूह
अखिलेश यादव ने आरएलडी, सुभासपा, महान दल, एनसीपी और अपना दल (कमेरावादी) जैसे अलग-अलग दलों के साथ गठबंधन कर अपना सामाजिक समीकरण मजबूत करने का काम किया है। इससे गठबंधन का सामाजिक आधार व्यापक हो गया है। सरकार बनने के बाद यूपी में जातिगत जनगणना कराने का अखिलेश यादव का वादा भी पिछड़ों-दलित जातियों को आकर्षित कर सकता है।
हर वर्ग में भाजपा समर्थक
उत्तर प्रदेश भाजपा नेता शैलेंद्र शर्मा ने कहा कि उनकी पार्टी की राजनीति में हमेशा देश और जनता पहले नंबर पर होती है। किसी भी योजना का लाभ पहुंचाने में किसी भी व्यक्ति से जाति-धर्म-संप्रदाय के आधार पर भेद नहीं किया जाता। सरकार और पार्टी की इसी नीति का परिणाम है कि पीएम किसान सम्मान निधि, पीएम आवास योजना, राशन योजना, उज्जवला योजना या जनधन योजना का लाभ हर वर्ग के हर पात्र व्यक्ति को मिल रहा है।
भाजपा नेता के मुताबिक, सरकार की इसी नीति का परिणाम है कि हर समाज और हर वर्ग में उनकी पार्टी के समर्थक बन गए हैं जो जातीय सोच से बाहर निकलकर उन्हें समर्थन देते हैं। जबकि इसके पहले की सरकारें जाति के नाम पर तो उनसे वोट ले लेती थीं, लेकिन सत्ता पाने के बाद वे केवल अपने घर-परिवार का लाभ करने में जुट जाती थीं। उनके मुताबिक, इन सियासी दलों की चाल अब जनता को समझ में आ चुकी है, और प्रधानमंत्री सपा-बसपा की इसी चाल के प्रति जनता को सचेत कर रहे थे।
“पीएम स्वयं करते हैं जातिगत राजनीति”
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी स्वयं जातिगत राजनीति करते हैं। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने स्वयं को पिछड़े वर्ग का बेटा कहकर ही वोट मांगा था और इसका खूब प्रचार भी किया था। जबकि वे पिछड़ी जाति से नहीं थे और गुजरात का मुख्यमंत्री रहते हुए अपनी जाति को पिछड़ी जाति में लाकर स्वयं को पिछड़ी जातियों का मसीहा घोषित कर लिया था।
सपा नेता ने कहा कि आज अखिलेश यादव के गठबंधन को व्यापक सामाजिक समर्थन मिलता देख भाजपा घबरा गई है। इसमें दरार डालने के लिए ही पीएम के जरिए इस तरह के बयान दिलवाए जा रहे हैं। लेकिन दलित-पिछड़ी जातियों ने देखा है कि किस तरह उनके आरक्षण व्यवस्था में छेड़छाड़ करने की कोशिश की गई है और हर संस्थान का निजीकरण कर उनका नुकसान किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पीएम की कोई अपील इस चुनाव में काम नहीं करने वाली और यह सच्चाई वे समझ चुके हैं, इसीलिए खराब मौसम का बहाना बनाकर वे बिजनौर में जनसभा को संबोधित करने का जोखिम नहीं उठा सके।
2014 की जीत में भी जातीय योगदान
वहीं, राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र सिंह ने अमर उजाला से कहा कि भारत जैसे देश में चुनाव बहुआयामी प्रकृति के होते हैं। यहां मतदाताओं के बीच इतनी विभिन्नता होती है कि सबको किसी एक खांचे में बांधना संभव नहीं होता, और इसीलिए राजनीतिक दल अलग-अलग तरह के वायदे कर सभी वर्गों को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं।
उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी की सफलता के पीछे उनका विकास और गुजरात मॉडल बड़ा कारण था, लेकिन जैसे ही प्रधानमंत्री ने बिहार-उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार शुरू किया था, उन्हें यह याद आ गया था कि वे पिछड़ी जाति के हैं। उन्होंने पटना के गांधी मैदान में खूब जोरशोर से खुद को पिछड़े वर्ग का बेटा कहकर प्रचारित किया था।
यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में मिली भाजपा की जीत के पीछे हिंदुत्व के साथ-साथ उसके सामाजिक समीकरणों को भी दिया जा सकता है। भाजपा ने अपना दल, सुभासपा और अन्य दलों को साथ लेकर अपना आधार बेस बढ़ा लिया था, जिसका उसे चुनावी लाभ मिला। आज की तारीख में यही समीकरण समाजवादी पार्टी के पक्ष में दिख रहा है। उसे इसका लाभ अवश्य मिलेगा।
जाति तोड़ने की कोशिश
पीएम मोदी ने कुंभ के दौरान दलित कार्यकर्ताओं का पैर धुलकर जातिवाद पर कड़ा प्रहार किया था। वाराणसी में काशी में भी उन्होंने सफाई कर्मचारियों के साथ बैठकर, उनके साथ भोजन कर अपनी इसी सोच को आगे बढ़ाया था। अमित शाह और योगी आदित्यनाथ भी लगातार इसी तरह से इन वर्गों में अपनी पैठ बनाने का काम कर रहे हैं। भाजपा नेताओं की इन कोशिशों से एक सामाजिक समरसता का संदेश जा रहा है और उसे इसका लाभ मिल सकता है।
क्या कहा पीएम ने?
प्रधानमंत्री ने बिजनौर की जनसभा को वर्चुअल तरीके से संबोधित करते हुए लोगों को जातिवाद से सावधान रहने को कहा। उन्होंने कहा कि कुछ दल जाति के नाम पर उनसे वोट लेते हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद केवल अपने घर-परिवार को लाभ पहुंचाने का काम करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इशारों-इशारों में सपा-बसपा पर हमला करते हुए कहा कि अपनी तिजोरी भरने के चक्कर में गरीबों के घर राशन नहीं पहुंचने दिया जाता था, उनका घर नहीं बनने दिया जाता था, लेकिन जब से यूपी में योगी आदित्यनाथ सरकार सत्ता में आई है, उसका पूरा प्रयास रहा है कि समाज के सभी वर्गों को सभी योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ मिले।
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