हाईकोर्ट का फैसला: सक्षम पति पत्नी के भरण-पोषण करने से नहीं कर सकता इनकार

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक सक्षम पति पत्नी का भरण पोषण करने से इंकार नहीं कर सकता। वह यह तर्क नहीं दे सकता है कि वह इस स्थिति में नहीं है कि वह भरण पोषण कर सके। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने जौनपुर के वैभव सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया।

मामले में पति ने तलाक लेने के लिए दाखिल वाद में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पारिवारिक अदालत द्वारा पारित आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। यह धारा ऐसे पति या पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के अवार्ड का प्रावधान करती है, जिसके पास उसकी सहायता करने और कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है।

मामले में पति ने परिवार अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। परिवार अदालत ने पति को रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। प्रतिवादी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के लिए प्रति माह 3000 रुपये के साथ-साथ पांच हजार रुपये अदालती कार्रवाई के खर्च के लिए भुगतान करने का आदेश दिया था।

उसने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि वह बेरोजगार है और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और प्रतिवादी पत्नी की स्वतंत्र आय है। क्योंकि, वह अपने पिता के साथ एक मेडिकल स्टोर चला रही है, जो एक डॉक्टर है। कोर्ट ने कहा कि यह एक पुरुष की सामाजिक, कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी के खर्च का वहन करे। जिससे कि उसकी स्थिति सही बनी रहे। ब्यूरो

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक सक्षम पति पत्नी का भरण पोषण करने से इंकार नहीं कर सकता। वह यह तर्क नहीं दे सकता है कि वह इस स्थिति में नहीं है कि वह भरण पोषण कर सके। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने जौनपुर के वैभव सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया।

मामले में पति ने तलाक लेने के लिए दाखिल वाद में हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पारिवारिक अदालत द्वारा पारित आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। यह धारा ऐसे पति या पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के अवार्ड का प्रावधान करती है, जिसके पास उसकी सहायता करने और कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है।

मामले में पति ने परिवार अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। परिवार अदालत ने पति को रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। प्रतिवादी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के लिए प्रति माह 3000 रुपये के साथ-साथ पांच हजार रुपये अदालती कार्रवाई के खर्च के लिए भुगतान करने का आदेश दिया था।

उसने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि वह बेरोजगार है और उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और प्रतिवादी पत्नी की स्वतंत्र आय है। क्योंकि, वह अपने पिता के साथ एक मेडिकल स्टोर चला रही है, जो एक डॉक्टर है। कोर्ट ने कहा कि यह एक पुरुष की सामाजिक, कानूनी और नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी के खर्च का वहन करे। जिससे कि उसकी स्थिति सही बनी रहे। ब्यूरो

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