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उन्नाव। खाद किल्लत के बीच जिले में डीएपी का स्टॉक शून्य हो गया है। जिससे जनपद में खाद संकट खड़ा हो गया है। अधिकारियों का दावा है कि अब तक 14 हजार एमटी डीएपी का वितरण कराया जा चुका है लेकिन, इसके बाद भी मांग कम नहीं हो रही है। अब किसानों के सामने महंगी दरो पर दुकानों से खाद खरीदने की मजबूरी है।
इस बार अक्तूबर माह में जोरदार बारिश हुई थी। इससे कई दिन तक खेतों में पानी भरा था। उस समय किसान आलू व सरसों की बुआई नहीं कर पाए थे। खेत सूखने में करीब 15 दिन लग गए। जिसके चलते नवंबर की शुरुआत में बुआई शुरू हुई। शुुरुआत में किसानों को इन फसलों के लिए डीएपी की जरूरत पड़ी। बाद में जब गेहूं की बुआई शुरू हुई तो फिर डीएपी की मांग बढ़ गई।
एक ही माह में अलग-अलग फसलों के लिए किसानों को डीएपी लेनी पड़ी। जिससे मांग काफी बढ़ गई। कृषि विभाग के अधिकारी भी मांग बढ़ने का अंदाजा नहीं लगा सके। डीएपी की रैक आते ही तत्काल समितियों से खाद उठ गई। नतीजतन आधे नवंबर में ही डीएपी का संकट खड़ा हो गया।
इफ्को के क्षेत्रीय अधिकारी मानवेंद्र सिंह ने बताया कि 2600 एमटी डीएपी का मांगपत्र भेजा गया है। 18 से 19 नवंबर के बीच रैक आने की उम्मीद है। आने वाले समय में डीएपी का संकट और गहरा सकता है क्योंकि, अभी तक 60 प्रतिशत क्षेत्र में ही गेहूं की बुआई हुई है।
-फतेहपुर चौरासी ब्लॉक की नौ समितियों में खाद न होने से किसानों को परेशानी उठानी पड़ रही है। फतेहपुर चौरासी गढ़ी साधन समिति के सचिव शिवपाल, बबुरिहा के सचिव रामनरेश व जाजामाऊ के सचिव महेंद्र सिंह ने बताया कि कहीं भी डीएपी नहीं है।
-असोहा ब्लॉक के गोसाईंखेड़ा, चौपई, पहासा, समाधा, सोहो, बेहटा, मुबारकपुर व भादिन समिति में खाद नहीं है।
-पुरवा के पासाखेड़ा, मिर्जापुर सुम्हारी, चमियानी, बेहटा भवानी, पकराबुजुर्ग, तुसरौर, दरेहटा व सिजनी सोहरामऊ में डीएपी नहीं है।
-बिछिया के ओरहर समिति में डीएपी नहीं है। मुर्तजानगर में सचिव का स्वास्थ्य खराब होने से वितरण नहीं हो पा रहा है।
-मौरावां के हिलौली, करदहा, अकोहरी, गुलरिहा, मौरावां, खेरवा, खजुहाखेड़ा में डीएपी नहीं है।
जिला कृषि अधिकारी कुलदीप मिश्रा का कहना है कि इस बार अक्तूबर में बेमौसम की बारिश हो गई थी। जिससे उस समय आलू व सरसों की बुआई नहीं हो पाई थी। किसानों ने खेत सूखने पर नवंबर में बुआई शुरू की। गेहूं की र्बुआई शुरू होने पर फिर डीएपी की मांग बढ़ गई। एक माह में तीन फसलों के लिए डीएपी की जरूरत पड़ी तो मांग में अप्रत्याशित उछाल आ गया। प्राइवेट कंपनियों की खाद मिलने से राहत मिली है।
उन्नाव। खाद किल्लत के बीच जिले में डीएपी का स्टॉक शून्य हो गया है। जिससे जनपद में खाद संकट खड़ा हो गया है। अधिकारियों का दावा है कि अब तक 14 हजार एमटी डीएपी का वितरण कराया जा चुका है लेकिन, इसके बाद भी मांग कम नहीं हो रही है। अब किसानों के सामने महंगी दरो पर दुकानों से खाद खरीदने की मजबूरी है।
इस बार अक्तूबर माह में जोरदार बारिश हुई थी। इससे कई दिन तक खेतों में पानी भरा था। उस समय किसान आलू व सरसों की बुआई नहीं कर पाए थे। खेत सूखने में करीब 15 दिन लग गए। जिसके चलते नवंबर की शुरुआत में बुआई शुरू हुई। शुुरुआत में किसानों को इन फसलों के लिए डीएपी की जरूरत पड़ी। बाद में जब गेहूं की बुआई शुरू हुई तो फिर डीएपी की मांग बढ़ गई।
एक ही माह में अलग-अलग फसलों के लिए किसानों को डीएपी लेनी पड़ी। जिससे मांग काफी बढ़ गई। कृषि विभाग के अधिकारी भी मांग बढ़ने का अंदाजा नहीं लगा सके। डीएपी की रैक आते ही तत्काल समितियों से खाद उठ गई। नतीजतन आधे नवंबर में ही डीएपी का संकट खड़ा हो गया।
इफ्को के क्षेत्रीय अधिकारी मानवेंद्र सिंह ने बताया कि 2600 एमटी डीएपी का मांगपत्र भेजा गया है। 18 से 19 नवंबर के बीच रैक आने की उम्मीद है। आने वाले समय में डीएपी का संकट और गहरा सकता है क्योंकि, अभी तक 60 प्रतिशत क्षेत्र में ही गेहूं की बुआई हुई है।
-फतेहपुर चौरासी ब्लॉक की नौ समितियों में खाद न होने से किसानों को परेशानी उठानी पड़ रही है। फतेहपुर चौरासी गढ़ी साधन समिति के सचिव शिवपाल, बबुरिहा के सचिव रामनरेश व जाजामाऊ के सचिव महेंद्र सिंह ने बताया कि कहीं भी डीएपी नहीं है।
-असोहा ब्लॉक के गोसाईंखेड़ा, चौपई, पहासा, समाधा, सोहो, बेहटा, मुबारकपुर व भादिन समिति में खाद नहीं है।
-पुरवा के पासाखेड़ा, मिर्जापुर सुम्हारी, चमियानी, बेहटा भवानी, पकराबुजुर्ग, तुसरौर, दरेहटा व सिजनी सोहरामऊ में डीएपी नहीं है।
-बिछिया के ओरहर समिति में डीएपी नहीं है। मुर्तजानगर में सचिव का स्वास्थ्य खराब होने से वितरण नहीं हो पा रहा है।
-मौरावां के हिलौली, करदहा, अकोहरी, गुलरिहा, मौरावां, खेरवा, खजुहाखेड़ा में डीएपी नहीं है।
जिला कृषि अधिकारी कुलदीप मिश्रा का कहना है कि इस बार अक्तूबर में बेमौसम की बारिश हो गई थी। जिससे उस समय आलू व सरसों की बुआई नहीं हो पाई थी। किसानों ने खेत सूखने पर नवंबर में बुआई शुरू की। गेहूं की र्बुआई शुरू होने पर फिर डीएपी की मांग बढ़ गई। एक माह में तीन फसलों के लिए डीएपी की जरूरत पड़ी तो मांग में अप्रत्याशित उछाल आ गया। प्राइवेट कंपनियों की खाद मिलने से राहत मिली है।
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