उम्मीद की मशाल: कानपुर में भी फिल्म थ्री ईडियट्स के फुनसुख वांगडू जैसे शिक्षक, खेल-खेल में सिखा रहे भौतिकी विज्ञान

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सार

प्रो. वर्मा रसोई घर में भी विज्ञान ढूंढ लेते हैं। चिमटे में धागे को बांधकर तरंग के नियम बताना, कुकर का प्रेशर पता करना, चकले-बेलन की मदद से वृत्त की परिधि जानना उनकी शिक्षा को और भी रुचिकर बनाता है।

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फिल्म थ्री ईडियट्स का वो रैंचो तो याद ही होगा। मस्तमौला, बेफिक्र जिसे न नौकरी की चिंता और न ही किताबी ज्ञान की। चिंता थी तो इस बात की कि उसके साथी और दूसरे छात्र कैसे किताबी ज्ञान छोड़कर व्यवहारिकता को अपनाएं। रैंचो जब फुनसुख वांगडू के रूप में सामने आता है तो कॉलेज के दिनों में देखे सपने पूरे करने में जुटा होता है।

वह बच्चों को खेल-खेल में विज्ञान का पंडित बनाने में लगा रहता है। इससे मिलती-जुलती कहानी है आईआईटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर और पद्मश्री से सम्मानित एचसी वर्मा की। वह भी बच्चों को खेल-खेल में भौतिकी विज्ञान में माहिर बना रहे हैं। वह भी निशुल्क। कल्याणपुर नानकारी में बने सोपान आश्रम में जब वे अपनी कक्षा शुरू करते हैं तो बच्चों की लाइन लग जाती है।

यही जुनून ही प्रो. वर्मा को सबसे अलग ले जाकर खड़ा कर देता है। बच्चों के लिए उम्मीद की मशाल बनकर सामने आए प्रो. वर्मा ने 2001 में शिक्षा सोपान कार्यक्रम शुरू किया। ईंट गारा करने वाले मजदूरों, गांवों के बच्चों से अपने अभियान की शुरुआत की। धीरे-धीरे हजारों बच्चे उनके इस कार्यक्रम से जुड़ गए।
जब सभी बच्चों तक पहुंचना मुश्किल हुआ तो उन्होंने दूसरे शिक्षकों को साथ में जोड़ा और प्रशिक्षित किया। मौजूदा समय में 100 लोगों की कोर टीम के साथ देशभर से करीब 5000 शिक्षक उनसे जुड़े हैं। छात्रों में प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने अन्वेषिका की भी शुरुआत की। अब उनके दोनों अभियान शिक्षा सोपान और अन्वेषिका पूरे देश में पहचान बना चुके हैं।

विज्ञान को समर्पित सोपान आश्रम
प्रो. वर्मा ने करीब छह साल पहले नानकारी के पास करीब दो एकड़ जमीन पर सोपान आश्रम का निर्माण कराया। यहां छात्रों को शिक्षा, संस्कार और स्वावलंबन सिखाया जाता है। सोपान आश्रम में अन्वेषिका की मदद से करीब 1200 प्रयोग तैयार हैं। रिसर्च लैब भी है। दूरदराज के स्कूल भी अपने बच्चों को सोपान आश्रम की विजिट कराने लाते हैं। शिक्षा सोपान में फर्स्ट संडे क्लब होता है। इसमें दूरदराज से शिक्षक आते हैं। पहले विज्ञान के नियमों पर चर्चा होती है और फिर प्रो. वर्मा प्रयोगों पर चर्चा करते हैं।
चिमटे-कुकर में विज्ञान, जलेबी में भी घुला विज्ञान
प्रो. वर्मा रसोई घर में भी विज्ञान ढूंढ लेते हैं। चिमटे में धागे को बांधकर तरंग के नियम बताना, कुकर का प्रेशर पता करना, चकले-बेलन की मदद से वृत्त की परिधि जानना उनकी शिक्षा को और भी रुचिकर बनाता है। उन्होंने बताया कि जलेबी बनने से खाने तक की प्रक्रिया में भी विज्ञान है। जलेबी की मदद से ऊष्मा का संवहन, डूबने-तैरने का सिद्धांत, ऑक्सीकरण (रासायनिक अभिक्रिया), दाब परिवर्तन, बॉयलिंग, दहन (पूर्ण दहन, अपूर्ण दहन), जीभ के विभिन्न भाग में स्वाद के सूचक आदि के बारे में बताया।

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छात्रों के लिए होते हैं टेस्ट
अन्वेषिका सचिव अमित वाजपेयी ने बताया कि छात्रों के लिए नेशनल अन्वेषिका एक्सपेरिमेंटल स्किल टेस्ट होता है। इसमें पूरे देश से छात्र हिस्सा लेते हैं। पिछली बार कक्षा नौ से एमएससी तक के 35 हजार छात्रों ने आवेदन किया था। 100 विजेताओं को चुना जाता है। उन्होंने कहा कि जिन छात्रों को विज्ञान में रुचि हैं, वे सीधे सोपान आश्रम या उनकी वेबसाइट www.shikshs-sopan.org पर संपर्क कर सकते हैं।
फिजिक्स की गीता है प्रो. वर्मा की किताब
प्रो. वर्मा ने आईआईटी में 1995 से 2017 तक सेवाएं दी हैं। विज्ञान से इंटरमीडिएट करने वाला या जेईई की तैयारी करने वाला शायद ही कोई छात्र होगा, जिसने प्रोफेसर वर्मा की लिखी किताब कॉन्सेप्ट ऑफ फिजिक्स न पढ़ी हो। अमित वाजपेयी कहते हैं कि छात्रों के बीच उनकी किताब फिजिक्स की गीता के रूप में मशहूर है। देश ही नहीं विदेश में भी उनकी किताब का नाम है।

प्रो. वर्मा ने बदल दी मेरी जिंदगी
कन्नौज के एक गांव का हूं, जहां बहुत कम बच्चे स्कूल जाते थे। सरस्वती शिशु मंदिर में मेरा दाखिला कराया गया। वहां प्रोफेसर वर्मा से मुलाकात हुई। उन्होंने मेरी प्रतिभा को देखते हुए साइंस में आगे बढ़ने की सलाह दी। उनके समर कैंप में शामिल होता रहा, जिससे विज्ञान के प्रति मेरी रुचि बढ़ती गई। इसके बाद आईआईटी गोवा में दाखिला हुआ। आज बेंगलूरू में मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं। यह कहना गलत नहीं होगा अगर वर्मा सर न होते तो शायद आज इस मुकाम पर न पहुंचता। – रोहित कुमार, कन्नौज

नंबर गेम
100 शिक्षकों की कोर टीम है प्रोफेसर वर्मा की
5000 कुल शिक्षक जुड़े हैं उनके अभियान से
1200 प्रयोग तैयार हैं सोपान आश्रम में

विस्तार

फिल्म थ्री ईडियट्स का वो रैंचो तो याद ही होगा। मस्तमौला, बेफिक्र जिसे न नौकरी की चिंता और न ही किताबी ज्ञान की। चिंता थी तो इस बात की कि उसके साथी और दूसरे छात्र कैसे किताबी ज्ञान छोड़कर व्यवहारिकता को अपनाएं। रैंचो जब फुनसुख वांगडू के रूप में सामने आता है तो कॉलेज के दिनों में देखे सपने पूरे करने में जुटा होता है।

वह बच्चों को खेल-खेल में विज्ञान का पंडित बनाने में लगा रहता है। इससे मिलती-जुलती कहानी है आईआईटी कानपुर के पूर्व प्रोफेसर और पद्मश्री से सम्मानित एचसी वर्मा की। वह भी बच्चों को खेल-खेल में भौतिकी विज्ञान में माहिर बना रहे हैं। वह भी निशुल्क। कल्याणपुर नानकारी में बने सोपान आश्रम में जब वे अपनी कक्षा शुरू करते हैं तो बच्चों की लाइन लग जाती है।

यही जुनून ही प्रो. वर्मा को सबसे अलग ले जाकर खड़ा कर देता है। बच्चों के लिए उम्मीद की मशाल बनकर सामने आए प्रो. वर्मा ने 2001 में शिक्षा सोपान कार्यक्रम शुरू किया। ईंट गारा करने वाले मजदूरों, गांवों के बच्चों से अपने अभियान की शुरुआत की। धीरे-धीरे हजारों बच्चे उनके इस कार्यक्रम से जुड़ गए।

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