केशव प्रसाद मौर्य : ओबीसी चेहरा और संघ से करीबी ने दिलाई डिप्टी सीएम की कुर्सी, इस बयान से मचा था घमासान

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केशव प्रसाद मौर्य की सांगठनिक क्षमता और जुझारूपन के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) से उनकी करीबी ने ही उन्हें एक बार फिर से उपमुख्यमंत्री की कुर्सी दिलवा दी। विधानसभा चुनाव के पूर्व श्री कृष्ण जन्मभूमि को लेकर दिए गए बयान ‘अब मथुरा की तैयारी’ ने उनकी राजनीतिक पूंजी और समृद्ध कर दिया।

 

 


उनका यह बयान पूरे चुनाव में खासा सुर्खियों में भी रहा। बीजेपी के पोस्टर में उन्हें जिस तरह से तवज्जो दी गई, उसे लेकर यही माना जा रहा था कि इस बार भी सरकार उन्हें बड़ा पद सौंपेगी। शुक्रवार को लखनऊ के इकाना स्टेडियम में यह हुआ भी। 

भाजपा के पोस्टर में भी मिली जगह

इस बार विधानसभा चुनाव में भाजपा के पोस्टर में पीएम मोदी के साथ सीएम योगी और केशव प्रसाद मौर्य को भी जगह दी गई। विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में सीएम योगी के बाद सर्वाधिक चुनावी रैलियां केशव मौर्य ने ही कीं। इस वजह से वह अपने विधान सभा क्षेत्र में प्रचार के लिए कम समय दे सके। केशव की यह हार भले ही थी, लेकिन प्रदेश में दोबारा प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने में उनका अहम योगदान रहा।

 


इसके पूर्व पिछले विधानसभा चुनाव में भी उनके प्रदेश अध्यक्ष होने के दौरान भाजपा ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 300 से ज्यादा सीटें जीती थीं। उनके इसी कौशल को देखते हुए उन्हें योगी सरकार पार्ट वन में डिप्टी सीएम बनाया गया। विधानसभा चुनाव में सिराथू सीट पर पल्लवी से शिकस्त मिलने के बावजूद यह माना जा रहा था कि चूंकि केशव यूपी भाजपा में पिछड़ी जाति का बड़ा चेहरा हैं, इसलिए उनको फिर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। पार्टी नेतृत्व ने केशव पर भरोसा जताते हुए उन्हें दोबारा डिप्टी सीएम बना दिया है।  

संघ में अच्छी पैठ का भी मिला पुरस्कार 

वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंहल की संस्तुति पर भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य को फूलपुर से प्रत्याशी बनाया। तब उन्होंने उस चुनाव में पहली बार पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू की संसदीय सीट से कमल खिलवा दिया। यहां वह रिकार्ड 3.40 लाख मतों से जीते। इसके पूर्व 2012 में केशव प्रसाद ने सपा की लहर में भी सिराथू विधानसभा सीट भाजपा के खाते में डाली।

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2017 में प्रदेश अध्यक्ष होते हुए उन्होंने पार्टी को यूपी में अभूतपूर्व सफलता दिलवाई। केशव की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में भी खासी पैठ है। पहले प्रदेश अध्यक्ष और उसके बाद डिप्टी सीएम बनने के बाद भी वह लगातार संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों के संपर्क में रहे। विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आने के बाद संघ का भी स्पष्ट संदेश था कि उन्हें सरकार में एक बार फिर से अहम जिम्मेदारी दी जाए और ऐसा हुआ भी।

मंदिर आंदोलन में भी निभाई सक्रिय भूमिका

केशव ने राम जन्म भूमि और गो रक्षा के साथ हिंदू हित में किए गए कई आंदोलनों में भाग लिया। इसके लिए वे जेल भी गए। बीते सात वर्षों के दौरान प्रदेश में वह पार्टी के सबसे बड़े पिछड़े वर्ग के नेता बनकर उभरे। केशव वर्ष 2004 में इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा के उपचुनाव में माफिया अतीक अहमद के खिलाफ भी चुनाव लड़ चुके हैं।

चाय बेचते हुए सीखा राजनीति का ककहरा 

केशव प्रसाद मौर्य को सफलता विरासत में नहीं मिली। पीएम मोदी की तरह उनका बचपन भी संघर्ष के बीच ही बीता। पिता श्याम लाल के साथ उन्होंने सिराथू कस्बे में चाय बेची। लंबे समय तक उन्होंने सुबह अखबार भी बांटा। 53 वर्षीय केशव की मां का नाम धनपत्ती देवी और पत्नी का नाम राजकुमारी है। उनके दो पुत्र हैं। उन्होंने  प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा आदर्श उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सिराथू से ग्रहण की। दसवीं व बारहवीं की शिक्षा दुर्गा देवी इंटर कालेज ओसा मंझनपुर से की थी। आगे चलकर उन्होंने हिंदी साहित्य सम्मेलन से साहित्य रत्न की भी डिग्री हासिल की।

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