[ad_1]
सांकेतिक तस्वीर
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
नगर निकाय चुनाव के नतीजों ने राजनीतिक समीकरणों की स्थिति आईने की तरह साफ कर दी है। मुस्लिम संशय में रहा और सीटवार कहीं कम तो कहीं ज्यादा बंटा दिखा। वहां भी इधर-उधर गया, जहां बसपा के दलित-मुस्लिम फैक्टर को मजबूत माना जा रहा था।
यही वजह रही कि अर्ध शहरी क्षेत्र मानी जाने वाली नगर पंचायतों में भी सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस को मिलाकर जितनी सीटें मिलीं, उससे कहीं ज्यादा कामयाबी अकेले भाजपा ने हासिल की। चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो नगर पंचायत चुनाव में प्रमुख विपक्षी पार्टियों सपा, बसपा, रालोद और कांग्रेस को अध्यक्ष पद की कुल 137 सीटें मिलीं।
जबकि, भाजपा के 191 नगर पंचायत अध्यक्ष जीते। इसी तरह से नगर पालिका परिषदों में इन दलों के 62 प्रत्याशी जीते, वहीं भाजपा अकेले 89 पर विजयी हुए। नगर निगम चुनाव को लेकर तो यह कहा जा सकता है कि संघ परिवार का पहले से ही बड़े शहरों में दबदबा रहा है।
कर्नाटक चुनाव में भाजपा की पराजय के बावजूद राजधानी बंगलुरू की सीटों पर उसे अच्छी सफलता मिली। लेकिन, अर्ध शहरी क्षेत्र तो सपा और बसपा जैसी पार्टियों की राजनीति के लिए काफी मुफीद माने जाते हैं। फिर वहां भी समूचा विपक्ष इतने पीछे क्यों रहा।
[ad_2]
Source link