जाति-पाँति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई- प्रेमभूषण महराज

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अक्षत टाइम्स संवाददाता, उन्नाव, 30 नवम्बर। मनुष्य मात्र की दिमागी कसरत है जाति-पाँति के भेद। भगवान ने कभी भी, कहीं भी जात-पात भेद को बढ़ावा देने की बात नहीं की है। श्रीरामचरितमानस में इस बात का बार-बार प्रमाण आया है। भगवान ने केवट जी, शबरी जी और निषाद जी को जो सौभाग्य प्रदान किया वह अपने आप में यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भगवान कभी भी भगत में जात-पात का भेद नहीं देखना चाहते हैं। यह बात साकेत धाम श्री रामलीला मैदान में नौ दिवसीय श्रीराम कथा के द्वितीय दिन कथा व्यास प्रेमभूषण महाराज ने व्यासपीठ से कथा प्रसंग के दौरान कही।

श्री रामकथा के माध्यम से भारतीय और पूरी दुनिया के सनातन समाज में अलख जगाने के लिए सुप्रसिद्ध श्री राम कथा मर्मज्ञ प्रेमभूषण महाराज ने कहा कि धरती के किसी भी मनुष्य के लिए भगवान का गुणगान करने के लिए जाति और कुल का कोई महत्व नहीं होता है। हमारे सनातन सद्ग्रन्थों में यह बार-बार बताया गया है कि जो कोई भी चाहे प्रभु को जप ले और अपना जीवन धन्य कर ले। कोई भी गा ले, फल अवश्य मिलेगा।

उन्होने कहा कि मनुष्य का पुनर्जन्म उसकी अपनी ही किसी एक ज्ञानेंद्रिय के विकारों के कारण ही होता है। हमारी पांच ज्ञानेंद्रियां हमको भटकाती रहती हैं। जब हमारी ज्ञानेंद्रियां भगवतोन्मुख होने लगती हैं तभी हमारा कल्याण होना शुरू हो जाता है। जब हम नित्य भगवत दर्शन करते हैं, भगवान का दर्शन करते हैं तो हमारी जिह्वा भगवान में रम जाती है। महाराज जी ने कहा कि हमें जीवन में कुछ देर शांत बैठने का भी अभ्यास करना चाहिए। जब हम धीरे-धीरे इसका अभ्यास करते हैं तो हमें अपने अंदर से ऊर्जा का स्रोत पता चलने लगता है।

कहा कि भारत की भूमि देवभूमि है, धर्म की भूमि है। यहां धर्म का पालन करने वाले ही सदा सुखी रहते हैं और अधर्म पथ पर चलने वाले लोगों को दुख भोगने ही पड़ते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में सनातन धर्म और परंपरा के साथ कई तरह के खिलवाड़ की घटनाएं हो रही है जो चिंता का विषय है। हमारी संस्कृति धर्म पर आधारित है जैसे तैसे नहीं चलती है। धर्म और परंपराओं का सब विधि से पालन होना चाहिए और तभी समाज का कल्याण संभव है।

महाराज श्री ने कहा कि मनुष्य अपने परिवार के लोगों के लिए ही जीवन में धन उपार्जन करने के लिए गलत कार्य करता है। लेकिन उसे यह सोचने की आवश्यकता होती है कि कोई इसके फल में उसका साथ देने वाला नहीं है फल तो उसको स्वयं अकेले ही खाना पड़ता है। बेईमानी का संग्रह टिकता नहीं है और ना ही उससे जीवन में कोई सुखी हो पाता है। अगर मनुष्य को जीवन में सुख चाहिए तो वह उसे सिर्फ अपने सत्कर्म से ही प्राप्त हो सकता है। अपने परिश्रम से अर्जित धन से जो व्यक्ति अपना जीवन व्यतीत करता है वही सुखी रह पाता है।

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पूज्यश्री ने कहा कि भगवान अविकारी हैं और मनुष्य अर्थात जीव विकारों से परिपूर्ण है। भगवान और मनुष्य में यही मूल अंतर है। अपने कर्मों के माध्यम से जीव अगर अपने विकारों से रहित हो जाता है या विकारों को कम करना शुरू कर देता है तो वह भगवान के तुल्य होने लगता है। निरंतर सतकर्मों में रहने वाला व्यक्ति ही विकारों से छुटकारा पाता है। पूज्यश्री मानव मात्र के लिए यह उचित है कि वह कहीं भी विकारों की न चर्चा करें और ना ही किसी से भी विकारों की चर्चा सुने। रामचरितमानस में युवाचार्य लक्ष्मण जी ने निषादराज को यह संदेश विस्तार से बताया था।

भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के बाद के प्रसंगों की चर्चा करते हुए पूज्य महाराज श्री ने कहा कि भगवान को केवल और केवल प्रेम ही प्यारा है बार-बार मानस जी में इसका इसकी चर्चा आई है। यह जरूरी नहीं है कि भगवान भी हम से प्रेम करें हमें भगवान से अवश्य प्रेम करना चाहिए अगर हम भगवान से प्रेम की अपेक्षा करते हैं तो यह व्यापार हो जाएगा लेनदेन का व्यापार। भगवान से बदले में कुछ चाहना तो व्यापार ही है।

प्रेमभूषण जी महाराज ने कहा कि जानबूझ कर किया गया अपकर्म या पाप मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता है और उसका फल हर हाल में भोगना ही पड़ता है। अगर ऐसा नहीं होता तो लोग रोज-रोज पाप करते और गंगा जी में नहा कर पाप धो लेते। फिर तो धरती पर कोई पापी बचता ही नहीं। सनातन सदग्रंथों में हर बात की व्याख्या की गई है, हमें इन पर विश्वास रखते हुए जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

पूज्य महाराज श्री ने कहा कि किसी ने प्रश्न किया था कि जब राम जी को पता ही था कि उनके वन जाते ही पिताजी का निधन हो जाएगा तो वह वन क्यों गए ? एक तरह से उन्हें पितृ हत्या का पाप लगा होगा। लेकिन बात बिल्कुल इससे अलग है क्योंकि मनु जी के रूप में यही दशरथ जी ने मांगा था। मनु जी ने कहा था कि जब हमारा पुत्र बन कर आवें तो आपमें हमारा जीव पिता की तरह प्रेम हो। आपके बिना मेरा जीवन भी न रहे। कुछ श्री ने कहा कि मनुष्य मांगने के समय तो विचार करता ही नहीं है कि किससे कब क्या मांगना है ? कैसा मांगना है ? दशरथ जी के साथ वही हुआ जो उन्होंने पूर्व जन्म में भगवान से मांगा था। उपस्थित श्रोताओं ने महाराज जी के द्वारा गाए गए के भजनों का भी खूब आनंद लिया।

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